भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा है कि पिछले कई दशकों से इस महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय निकाय में स्थायी सदस्यता में बदलाव की मांग को टाला जाता रहा है। भारतीय प्रतिनिधि ने परिषद के असमान संरचना को इंगित करते हुए कहा कि 1965 के बाद से, संयुक्त राष्ट्र में केवल मामूली बदलाव हुए हैं जबकि वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, और सुरक्षा परिदृश्य में बड़ा बदलाव आ चुका हैं।
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता में सुधार को लेकर भारत ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत पी. हरीश ने कहा कि सुरक्षा परिषद के मौजूदा ढांचे में ‘मामूली फेरबदल’ से महत्वपूर्ण सुधारों को टालने का जोखिम है, जिससे एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों के कम प्रतिनिधित्व की समस्या अनिश्चित काल के लिए अटकी रह सकती हैं।
पी. हरीश ने यह भी कहा कि 1965 के बाद से UNSC में केवल अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई है, लेकिन स्थायी सदस्यों में कोई बदलाव नहीं हुआ। उन्होंने "अंतर-सरकारी वार्ता" (IGN) प्रक्रिया की धीमी गति की भी आलोचना की, जिसमें बातचीत का ठोस ढांचा या समय-सीमा का अभाव है। हरीश ने UNSC में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और स्थायी सदस्यों में विस्तार की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि परिषद वर्तमान वैश्विक वास्तविकताओं के अनुरूप अधिक संतुलित और प्रभावी हो सके।
भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने कहा कि...
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की मांग पर भारत ने दो प्रमुख बातों पर ध्यान देने की अपील की है। भारत के स्थायी प्रतिनिधि, पी. हरीश ने कहा कि सबसे पहले, सदस्य देशों को UNSC में अपने सुधार मॉडल प्रस्तुत करने के लिए अनिश्चित अवधि तक इंतजार करने की स्थिति में नहीं आना चाहिए। भारत का मानना है कि जानकारी की न्यूनतम सीमाएं रखनी चाहिए, ताकि वास्तविक और ठोस प्रगति हो सके। दूसरा, हरीश ने आगाह किया कि कन्वर्जेंस के आधार पर एक समेकित मॉडल विकसित करने के प्रयास में इसे सबसे कम सामान्य डिनॉमिनेटर तक लाने की होड़ नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे महत्वपूर्ण सुधार तत्वों जैसे कि स्थायी श्रेणी में विस्तार और एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों के कम प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के मुद्दे अधिक समय तक अधर में लटक सकते हैं।
भारत का मानना है कि ऐसे सुधारों की जरूरत है जो सभी क्षेत्रों का संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करें। भारत लंबे समय से इस सुधार की पैरवी कर रहा है, और इस प्रक्रिया में ठोस प्रगति चाहता है। हरीश ने आईजीएन (अंतर-सरकारी वार्ता) की धीमी प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया, जो अभी तक संवाद और बयानों के आदान-प्रदान तक सीमित है और इसका कोई ठोस लक्ष्य या समय-सीमा तय नहीं हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हो सुधार- पी. हरीश
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की प्रक्रिया को लेकर भारत ने इस बार "यथास्थिति" बनाए रखने की प्रवृत्ति रखने वाले कुछ देशों के तर्कों पर सवाल उठाया है। भारत ने यह कहा कि ये देश आम सहमति का बहाना लेकर सुधार प्रक्रिया को धीमा करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने तर्क दिया कि इन देशों का यह कहना कि सभी मुद्दों पर पहले से ही "सभी को हर चीज पर सहमत होना चाहिए" सिर्फ पाठ-आधारित वार्ता शुरू करने से पहले "गाड़ी को घोड़े के आगे रखने" जैसा मामला हैं।
भारत का यह भी मानना है कि परिषद में सुधार, विशेष रूप से कम प्रतिनिधित्व वाले एशिया, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिकी देशों के संदर्भ में, पूरे संयुक्त राष्ट्र की वैधता और प्रभावशीलता के लिए बेहद जरूरी है। भारत, जो कि ग्लोबल साउथ का एक प्रमुख सदस्य है, इस बात पर जोर देता है कि प्रतिनिधित्व का मसला सिर्फ UNSC का नहीं, बल्कि पूरे संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता से जुड़ा हुआ हैं।
भारत ने की UNSC स्थायी सदस्यता की मांग
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की आवश्यकता पर लगातार जोर दिया है, इसे 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं माना है। भारत का तर्क है कि मौजूदा 15-सदस्यीय संरचना, जिसे 1945 में स्थापित किया गया था, आज की वैश्विक चुनौतियों और शक्ति संतुलन का प्रतिबिंब नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के "भविष्य के शिखर सम्मेलन" में अपने संबोधन में इस बात पर जोर दिया था कि सुरक्षा परिषद और अन्य वैश्विक संस्थानों में सुधार जरूरी है ताकि ये संस्थान वैश्विक शांति और विकास के लिए अधिक प्रासंगिक बन सकें। भारत का मानना है कि एक स्थायी सदस्यता के लिए उसका दावा मजबूत है, क्योंकि उसकी भूमिका वैश्विक शांति, सुरक्षा, और विकास में अहम रही है।
भारत की मांग है कि परिषद का विस्तार किया जाए ताकि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व मिल सके। इसके जरिए परिषद का वैधता और प्रभावशीलता बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। भारत के साथ-साथ ब्राजील, जापान, और जर्मनी (जी-4 देशों के रूप में) भी UNSC में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहे हैं, ताकि इन देशों को वैश्विक निर्णय प्रक्रियाओं में अधिक प्रभावी भूमिका मिल सके।