कहानी एक सभा की है, जहां गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर (Gurudev Rabindranath Tagore) अपने ज्ञान से भरे हुए विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे। यह सभा न केवल एक साधारण कार्यक्रम थी, बल्कि ज्ञान, प्रेरणा और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का केंद्र बन चुकी थी। सैकड़ों लोग, गुरुदेव की बातों को ध्यान से सुनने के लिए उपस्थित थे, और हर कोई उनके शब्दों से प्रभावित हो रहा था।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के निस्वार्थ आदर्श
जैसे-जैसे गुरुदेव अपना भाषण दे रहे थे, सभा में अचानक एक अप्रत्याशित घटना घटी। उनके पैर में एक चप्पल की कील घुस गई, और खून धीरे-धीरे बहने लगा। यह घटना इतनी चौंकाने वाली थी कि हर कोई सकते में आ गया। लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि इस पीड़ा के बावजूद, गुरुदेव ने न तो अपनी बातों को रोका और न ही अपनी आवाज़ में कोई कमजोरी महसूस होने दी। उनके चेहरे पर दर्द का कोई संकेत नहीं था। उनकी आवाज़ वैसी ही दृढ़ और प्रेरणादायक थी, जैसी शुरुआत में थी।
भाषण समाप्त होने के बाद, जब गुरुदेव अपनी जगह पर बैठे, तब सभा में मौजूद लोगों ने उनके पैरों में खून देखा। यह देख हर कोई हैरान रह गया। एक व्यक्ति साहस जुटाकर गुरुदेव से पूछ बैठा, "गुरुदेव, इतनी पीड़ा के बावजूद आपने अपना भाषण क्यों नहीं रोका?"
गुरुदेव ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "लोग तो यहां मेरी बातें सुनने आए हैं। मैं अपनी व्यक्तिगत पीड़ा से उनकी उम्मीदों को प्रभावित नहीं करना चाहता था। मेरा कर्तव्य था कि मैं उन्हें निराश न करूं और अपनी जिम्मेदारियों को निभाऊं।"
गुरुदेव की यह बात सुनकर वहां मौजूद हर व्यक्ति की आँखें नम हो गईं। उन्होंने गुरुदेव की महानता को महसूस किया और इस आदर्श को आत्मसात किया। गुरुदेव ने हमें यह सिखाया कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों और व्यक्तिगत समस्याओं के बावजूद, हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाना चाहिए।
गुरुदेव की यह कहानी हमें एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि
चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहिए। निजी पीड़ा और समस्याओं को अपने कार्यों में रुकावट बनने से रोकते हुए, हमें दूसरों के प्रति अपने दायित्व को प्राथमिकता देनी चाहिए। यही सच्चा आदर्श और समर्पण है। गुरुदेव का यह जीवनकाल एक प्रेरणा है, जो हमें बताता है कि सफलता सिर्फ बाहरी उपलब्धियों से नहीं, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को निभाने से मिलती हैं।