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किशोर कुमार: एक महान हस्ती जिन्होंने संगीत और अभिनय में अमर छाप छोड़ी

किशोर कुमार: एक महान हस्ती जिन्होंने संगीत और अभिनय में अमर छाप छोड़ी
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भारतीय सिनेमा और संगीत की दुनिया में कई महान कलाकार हुए हैं, लेकिन कुछ हस्तियां ऐसी होती हैं जो अपने बहुमुखी प्रतिभा और अद्भुत व्यक्तित्व के कारण सदाबहार बन जाती हैं। किशोर कुमार ऐसी ही एक महान हस्ती थे, जिन्होंने न केवल पार्श्वगायन में अपनी आवाज का जादू चलाया बल्कि अभिनय, निर्देशन और संगीत निर्माण में भी अपनी अलग पहचान बनाई। उनका व्यक्तित्व और कार्यशैली आज भी फिल्मों और संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित है।

प्रारंभिक जीवन और संघर्ष

किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा शहर में हुआ था। उनका मूल नाम आभास कुमार गांगुली था। परिवार में वे चार भाई-बहनों में चौथे नंबर पर थे। किशोर कुमार ने अपनी जड़ों से कभी दूर नहीं हुए, और अक्सर अपनी जन्मभूमि खंडवा का गर्व से उल्लेख किया करते थे। बचपन में गरीबी और संघर्ष के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनके पास पैसों की कमी थी, लेकिन उनकी हिम्मत और सकारात्मक सोच ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

उनकी पढ़ाई के दौरान कॉलेज की कैंटीन से उधार लेकर खाना खरीदने की आदत थी। यह छोटी-छोटी घटनाएं उनके व्यक्तित्व की छवि को स्पष्ट करती हैं — एक सरल, सहज और निडर इंसान जो मुश्किल समय में भी संगीत और हंसी को अपने साथ रखता था।

अभिनय और संगीत की शुरुआत

किशोर कुमार ने 1946 में फ़िल्म ‘शिकारी’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। उस समय उनके बड़े भाई अशोक कुमार बॉलीवुड के सफल अभिनेता थे। किशोर कुमार को शुरुआत में गायक के रूप में पहचान नहीं मिली थी। उनकी पहली गाने की कोशिश 1948 में फिल्म ‘जिद्दी’ में हुई, लेकिन यह सफलता की सीढ़ी नहीं बन सकी। वे एक्टिंग और गायकी दोनों में मेहनत करते रहे। 1951 में वे फिल्म ‘आंदोलन’ के हीरो बने, लेकिन फिल्म असफल रही।

उनका बड़ा ब्रेक 1954 में बिमल राय की फिल्म ‘नौकरी’ में एक बेरोजगार युवक की भूमिका से आया, जिसने दर्शकों के दिलों में उनकी अभिनय प्रतिभा को जगह दिलाई। बाद में ‘चलती का नाम गाड़ी’ जैसी फिल्मों ने उन्हें अभिनेता के रूप में और भी लोकप्रिय बना दिया।

गायकी की जादुई दुनिया

किशोर कुमार को संगीत के क्षेत्र में जो पहचान मिली, वह उनकी अनूठी आवाज और भावपूर्ण गायकी के कारण थी। उन्होंने हिंदी के साथ-साथ तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, उड़िया और उर्दू जैसी कई भाषाओं में गाने गाए। उन्होंने लगभग 16,000 से अधिक गाने गाकर एक रिकॉर्ड कायम किया, जो आज भी किसी के लिए आसान नहीं है।

उनके गाने सिर्फ संगीत नहीं थे, बल्कि भावों का समंदर थे। चाहे वह रोमांटिक गाना हो या हास्य गीत, हर अंदाज में किशोर कुमार की आवाज दर्शकों के दिलों को छू जाती थी। उन्होंने एस.डी. बर्मन, आर.डी. बर्मन जैसे महान संगीतकारों के साथ मिलकर ऐसी धुनें दीं, जो सदाबहार बन गईं। ‘तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना’, ‘फंटूश’ का ‘दुखी मन मेरे’, ‘झूमरू’ जैसे गाने आज भी लोगों के जेहन में बसे हुए हैं।

पार्श्वगायक से महानायक तक का सफर

जब किशोर कुमार ने पार्श्वगायन में कदम रखा, तब उनके समकालीनों में मुकेश, मन्ना डे, मोहम्मद रफी जैसे दिग्गज गायकों का वर्चस्व था। इसके बावजूद उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी आवाज में एक जादू था जो कई बड़े अभिनेता जैसे देव आनंद, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के व्यक्तित्व के साथ इतनी गहराई से घुल गई कि सुनने वाला मानता ही नहीं था कि यह आवाज किसी और की हो।

किशोर कुमार ने केवल गायक ही नहीं, बल्कि एक सफल अभिनेता और निर्देशक के रूप में भी अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने 81 फिल्मों में अभिनय किया और 18 फिल्मों का निर्देशन किया। उनकी फिल्म ‘पड़ोसन’ में निभाया गया मस्त-मौला किरदार आज भी हास्य प्रेमियों के दिलों में अमर है।

व्यक्तिगत जीवन के उतार-चढ़ाव

किशोर कुमार का व्यक्तिगत जीवन भी उनकी फिल्मों और गीतों की तरह रंगीन और जटिल था। उन्होंने चार बार विवाह किया। उनकी पहली शादी बंगाली अभिनेत्री रुमा गुहा ठाकुरता से हुई, जो 1950 से 1958 तक चली। दूसरी पत्नी थीं मधुबाला, जिनसे उनका विवाह 1960 में हुआ। मधुबाला के स्वास्थ्य संबंधी कारणों और पारिवारिक मतभेदों के बावजूद यह रिश्ता उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। मधुबाला के निधन के बाद किशोर कुमार ने योगिता बाली से शादी की, जो थोड़े समय के लिए ही चली। अंत में उन्होंने लीना चंदावरकर से शादी की।

उनका व्यक्तिगत जीवन कठिनाइयों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने संगीत और अभिनय के जज़्बे को कमजोर नहीं होने दिया।

आपातकाल और सामाजिक प्रतिबद्धता

1975 के आपातकाल के दौरान किशोर कुमार ने सरकार के कई दबावों का सामना किया। उन्होंने सरकारी समारोह में हिस्सा लेने से मना कर दिया था, जिससे उनके गीतों पर आकाशवाणी में रोक लग गई और उनके घर आयकर विभाग के छापे पड़े। इसके बावजूद उन्होंने आपातकाल का समर्थन नहीं किया। यह उनकी स्वतंत्र सोच और सच्चाई के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण था।

संघर्ष से सफलता की कहानी

किशोर कुमार का सफर आसान नहीं था। जब वे अपने करियर की शुरुआत कर रहे थे, तब उनके परिवार के बड़े भाई और समकालीन कलाकार पहले से ही स्थापित थे। संगीत और फिल्म जगत में प्रतिस्पर्धा इतनी तीव्र थी कि नवोदित कलाकारों के लिए अपनी जगह बनाना कठिन था। लेकिन किशोर कुमार ने अपने जज़्बे, मेहनत और टैलेंट से हर बाधा को पार किया। उन्होंने अपनी आवाज को हर अभिनेता के व्यक्तित्व के अनुरूप ढाला और हर गीत को जीवंत बना दिया।

उनके प्रति सम्मान और विरासत

किशोर कुमार को आठ बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों से नवाजा गया, जो एक कीर्तिमान है। मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें लता मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया और बाद में उनके नाम पर 'किशोर कुमार पुरस्कार' की स्थापना की। उनकी गाने की शैली, अभिनय और जीवनशैली आज भी कई कलाकारों और संगीत प्रेमियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

किशोर कुमार सिर्फ एक कलाकार नहीं थे, बल्कि एक संपूर्ण कलाकार थे जिन्होंने अपनी बहुआयामी प्रतिभा से हिंदी सिनेमा और संगीत को अमर बनाया। उनकी आवाज़ में छुपा जादू, उनका अभिनय, उनका व्यक्तित्व और उनका संघर्ष हमें यह सिखाता है कि मेहनत और लगन से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। वे आज भी भारतीय संगीत और सिनेमा के इतिहास के महानायक हैं, जिनकी विरासत सदियों तक याद रखी जाएगी।

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