Sri Rajagopalachari: कौन थे श्री राजगोपालाचारी? जिन्हे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक और स्वतंत्र भारत के राजनीतिक मार्गदर्शक माना जाता था

Sri Rajagopalachari: कौन थे श्री राजगोपालाचारी? जिन्हे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक और स्वतंत्र भारत के राजनीतिक मार्गदर्शक माना जाता था
Last Updated: 10 दिसंबर 2024

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महान नेताओं ने भाग लिया, जिनमें से श्री राजगोपालाचारी का नाम आदर और सम्मान से लिया जाता है। भारतीय राजनीति में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, और उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। आइए जानते हैं कि श्री राजगोपालाचारी कौन थे और उनका भारतीय राजनीति में क्या योगदान था।

श्री राजगोपालाचारी का प्रारंभिक जीवन

श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, जिन्हें 'राजाजी' के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 10 दिसंबर 1878 को मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था। वे एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, विचारक, लेखक, और राजनीतिज्ञ थे। उनका परिवार एक उच्च वर्णीय ब्राह्मण परिवार से था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मद्रास में प्राप्त की थी। राजाजी की शिक्षा में उनकी गहरी रुचि थी, और उन्होंने कानून की पढ़ाई के बाद एक वकील के रूप में करियर शुरू किया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

राजाजी का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान था। वे महात्मा गांधी के नजदीकी सहयोगी थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य रहे। राजाजी ने महात्मा गांधी के विचारों को अपनाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। वे सविनय अवज्ञा आंदोलन (1929) और नमक सत्याग्रह (1930) जैसे आंदोलनों में भागीदार रहे। उनका यह मानना था कि भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग का अनुसरण किया जाना चाहिए।

राजाजी की राजनीति और प्रशासनिक सेवाएं

स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहने के साथ ही श्री राजगोपालाचारी ने भारतीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 1937 में मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री बने और 1947 में भारत के पहले गवर्नर जनरल के पद पर नियुक्त हुए। 1949 में वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत के गवर्नर जनरल के रूप में कार्यरत रहे और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियां बनाई।

कांग्रेस से अलग होने और स्वतंत्र राजनीति

राजाजी के राजनीतिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस छोड़ दी। उनका मानना था कि कांग्रेस अब विभाजन की ओर बढ़ रही है, और उन्होंने अपनी स्वतंत्र पार्टी "भारतीय राज्य पार्टी" का गठन किया। इसके बाद, वे भारतीय राजनीति में एक अलग दृष्टिकोण के साथ सक्रिय रहे।

राजाजी का साहित्यिक योगदान

राजाजी का साहित्यिक योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण था जितना उनका राजनीतिक जीवन। वे एक लेखक और विचारक थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म और समाज पर कई पुस्तकें लिखी। उनका लेखन भारतीय दर्शन और साहित्य का अद्भुत मिश्रण था, जो आज भी प्रासंगिक है।

समाज सुधारक के रूप में योगदान

राजाजी ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और अशुद्धियों के खिलाफ भी आवाज उठाई। वे समाज सुधारक थे और विशेष रूप से जातिवाद, छुआछूत और महिला सशक्तिकरण के पक्षधर थे। उनका मानना था कि भारत तभी प्रगति कर सकता है जब हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले और जातिवाद जैसी कुरीतियां समाप्त हों।

श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जीवन भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम के एक अहम अध्याय के रूप में दर्ज है। उनका जीवन संघर्ष, बलिदान और सेवा का प्रतीक है। उन्होंने अपनी नीतियों और विचारों के माध्यम से भारतीय समाज में बदलाव लाने का कार्य किया और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनका नाम भारतीय राजनीति में एक सम्मानजनक स्थान प्राप्त करेगा, और उनकी शिक्षाएं आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

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