यह कहानी एक छोटे से गाँव की है, जो बंगाल के वीरभूमि जिले में स्थित था। गाँव में एक मेहनती युवक रामदेव रहता था, जो अपनी कठिनाइयों के बावजूद जीवन में कुछ अच्छा करने का सपना देखता था। एक दिन रामदेव ने सोचा कि वह जंगल के पास की उपजाऊ ज़मीन पर खेती करेगा, ताकि वह अपना पेट भर सके और गाँव के लोगों को भी मदद कर सके। लेकिन जंगल में रहने वाला एक आलसी भालू उसकी राह में रोड़ा बनकर खड़ा हो गया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है, और आलस्य से कभी कुछ हासिल नहीं होता।
रामदेव की खोज
रामदेव के माता-पिता की मृत्यु के बाद, वह अकेला था और रोज़ी-रोटी की चिंता उसे हमेशा सताती थी। एक दिन, वह जंगल में गया और वहाँ एक सुंदर नदी के किनारे पहुंचा। वहाँ का दृश्य अद्भुत था—हरे-भरे पेड़, रंग-बिरंगे फूल और ऊँचे पहाड़। उसने सोचा, "यह जगह खेती के लिए बहुत उपयुक्त है। यहाँ शलजम की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकता हूँ।" अगले दिन उसने शलजम के बीज लिए और खेती शुरू कर दी।
भालू से पहली मुलाकात
तभी एक बड़ा भालू आया और रामदेव से बोला, "यह मेरी जगह है, अगर तुम यहाँ खेती करने आए तो मैं तुम्हें सजा दूँगा।" रामदेव डरते हुए बोला, "भालू भाई, मैं मेहनत करके शलजम उगाऊँगा और तुम्हारे साथ आधी-आधी फसल बाँट लूंगा।"
भालू ने यह सुनकर चिढ़ते हुए कहा, "मैं मेहनत नहीं करता, मुझे केवल तैयार फसल चाहिए।" रामदेव ने उसे मनाने के लिए कहा, "ठीक है, आधी फसल तुम ले लो, लेकिन जड़ें मैं रखूँगा और तुम पत्ते ले लेना।" भालू को यह सौदा ठीक लगा, और उसने शहद खाने के बहाने अपने लिए आराम करना शुरू कर दिया।
पहली फसल का बंटवारा
कुछ समय बाद, शलजम की फसल तैयार हुई। रामदेव ने अपनी मेहनत से शलजम निकाले और भालू को पत्तियाँ दे दीं। भालू ने पत्तियाँ खाईं और गुस्से में बोला, "तुमने मुझे धोखा दिया! जड़ें तो मीठी हैं, जबकि पत्तियाँ तो कड़वी हैं!"
रामदेव मुस्कुराते हुए बोला, "भालू भाई, अगली बार मैं तुम्हें जड़ें दूँगा और पत्तियाँ मैं रखूँगा।"
दूसरी फसल और भालू की सीख
रामदेव ने अगली बार गेहूँ की फसल बोई। जब गेहूँ तैयार हुआ, तो भालू ने फिर जिद की कि वह जड़ें ही लेगा। रामदेव ने उसे सभी जड़ें दे दीं, और खुद अनाज रख लिया। भालू ने जड़ें खाईं, लेकिन वे कठोर और लकड़ी जैसी थीं। गुस्से में भालू ने रामदेव को धोखा देने का आरोप लगाया।
रामदेव हँसते हुए बोला, "भालू भाई, जब तुम मेहनत नहीं करते, तो तुम्हें सिर्फ कड़ा और फीका फल ही मिलेगा। मैं मेहनत करता हूँ, इसलिए मुझे मीठा फल मिलता है।"
अंतिम सबक मेहनत का स्वाद
भालू ने रामदेव की बात मानी और अगली बार शलजम की खेती में खुद भी मेहनत करने का निर्णय लिया। इस बार जब उसने मेहनत से उगी शलजम खाई, तो उसकी आँखों में खुशी की चमक थी। उसे समझ में आ गया कि मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि
मेहनत ही सफलता की कुंजी है। आलस्य और सुस्ती से कभी भी सच्ची खुशी और सफलता नहीं मिल सकती। जब हम कठिनाइयों से गुजरकर मेहनत करते हैं, तो न सिर्फ हमें जीवन में संतोष और सफलता मिलती है, बल्कि वह सफलता हमेशा मीठी होती है।