सोहन के पिता गाँव के सबसे बड़े ज़मींदार थे। सोहन का जीवन भव्यता और ऐश्वर्य से भरा हुआ था। घर में हर चीज़ उपलब्ध थी और नौकरों की लंबी फौज थी, जो उसकी हर इच्छा का ख्याल रखती थी। सोहन ने कभी अपने हाथ से कुछ करने का सोचा ही नहीं। वह मानता था कि ज़मींदार का बेटा ऐसा कैसे कर सकता है। जब सोहन को शहर के एक प्रसिद्ध विद्यालय में दाखिला मिला, तो उसे होस्टल में रहना पड़ा। यह उसके लिए एक नया अनुभव था। होस्टल में कोई नौकर नहीं था और सभी काम खुद करने की ज़रूरत थी। शुरुआत में सोहन को यह सब बहुत कठिन लगा। उसका कमरा हमेशा बिखरा रहता, किताबें इधर-उधर फैली रहतीं, और सफाई का तो उसने कभी विचार नहीं किया।
एक दिन, जब सोहन कक्षा से लौटा, तो उसने देखा कि उसका कमरा साफ-सुथरा था। कपड़े व्यवस्थित थे और फर्श चमक रहा था। यह देखकर वह हैरान रह गया। अगली सुबह, जब वह वापस आया, तो कमरा फिर से साफ था। उसकी जिज्ञासा बढ़ी और उसने तय किया कि वह इस रहस्य का पता लगाएगा।
तीसरे दिन, सोहन ने कक्षा से जल्दी लौटने का निर्णय लिया। दरवाजे के पास पहुँचते ही उसने देखा कि प्रधानाचार्य जी झाड़ू लगा रहे हैं। यह दृश्य देखकर वह दंग रह गया। उसने कभी नहीं सोचा था कि विद्यालय के प्रधानाचार्य एक विद्यार्थी के कमरे की सफाई कर सकते हैं।
प्रधानाचार्य जी ने मुस्कराते हुए कहा, "क्या हुआ बेटा? तुम इस तरह क्यों देख रहे हो?"
सोहन ने झिझकते हुए पूछा, "गुरुजी, आप मेरे कमरे में झाड़ू क्यों लगा रहे हैं? यह तो नौकर का काम है।"
प्रधानाचार्य जी ने समझाया, "बेटा, शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं है। मेरा कर्तव्य है कि मैं तुम्हारे सर्वांगीण विकास में मदद करूँ। तुम यह मत समझो कि यह काम छोटा है। जब तुम अपने काम खुद करोगे, तब तुम अपने अंदर आत्मविश्वास महसूस करोगे।"
सोहन को यह सुनकर गहरा आत्मग्लानि हुआ। उसने कहा, "गुरुजी, मुझे माफ कर दें। मैं अपनी झूठी शान में पड़ा हुआ था। अब से मैं अपने काम खुद करूँगा। आपने मुझे सिखाया है कि आत्मनिर्भरता क्या होती है।"
प्रधानाचार्य जी ने उसे गले लगाते हुए कहा, "यही शिक्षा का असली उद्देश्य है।"
आत्मनिर्भरता का सफर
उस दिन से, सोहन ने अपने सभी काम खुद करने का निर्णय लिया। उसने अपनी किताबों को व्यवस्थित करना शुरू किया और रोज़ अपने कमरे की सफाई करने लगा। धीरे-धीरे, उसका आत्मविश्वास बढ़ने लगा। उसने समझा कि मेहनत करने से किसी की इज़्ज़त कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती है।
वह अपनी सीख को अपने सहपाठियों के साथ भी साझा करने लगा। उसने अपने दोस्तों को प्रेरित किया कि वे भी अपने काम खुद करें। एक दिन, सोहन ने सभी के लिए एक कार्यशाला आयोजित की, जहाँ उसने उन्हें सिखाया कि कैसे छोटे-छोटे काम करने से बड़ी जिम्मेदारियों का सामना किया जा सकता है।
एक नई शुरुआत
एक दिन विद्यालय में एक विशेष समारोह हुआ। प्रधानाचार्य जी ने सोहन को सम्मानित किया और कहा, "सोहन ने हमें यह सिखाया है कि आत्मनिर्भरता और मेहनत ही सच्ची महानता है। हम सबको अपने काम खुद करने चाहिए।"
सोहन की आँखों में गर्व के आँसू थे। उसने समझा कि आत्मनिर्भरता सिर्फ एक गुण नहीं, बल्कि जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
कहानी से सीख
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि आत्मनिर्भरता, मेहनत और जिम्मेदारी का पालन करने से ही हम जीवन में सफल हो सकते हैं। हमें कभी भी अपने काम को छोटे या बड़े के रूप में नहीं देखना चाहिए। अनुशासन और आत्मसम्मान से जीवन जीना हमें असली महानता की ओर ले जाता है। आत्मनिर्भर बनना, खुद पर विश्वास करना और दूसरों को प्रेरित करना ही असली सफलता है।