एक छोटे से गांव की यह कहानी एक भले आदमी, दो बिल्लियों और दो बंदरों के बीच घटित होती है, जो हमें यह समझाने का प्रयास करती है कि समझदारी और साझेदारी की अहमियत कितनी है। यह कहानी जीवन के उन पहलुओं पर प्रकाश डालती है, जहां स्वार्थ और आपसी लड़ाई केवल नुकसान ही पहुंचाती हैं।
कहानी का आरंभ भले आदमी की नेकदिली
कहानी की शुरुआत होती है एक भले आदमी से, जो हर सुबह शिव मंदिर में पूजा करने जाता था। मंदिर के पास एक पेड़ के नीचे हमेशा दो बिल्लियां बैठी रहतीं। एक बिल्ली का रंग भूरा था, जबकि दूसरी का काला था। यह भला आदमी इन बिल्लियों के लिए रोज़ दो रोटियां रखता था, ताकि वे भूख से न मरे।
हालांकि, इन बिल्लियों में हमेशा रोटियों को लेकर झगड़ा होता। वे एक-दूसरे के साथ न केवल लड़ाई करतीं, बल्कि रोटियां आपस में बांटने की बजाय हर समय एक-दूसरे पर हमला करतीं। इस लड़ाई से वह दृश्य केवल हिंसा और कष्ट का बना रहता था।
बंदरों का शरारतपूर्ण हस्तक्षेप
बिल्लियों के लड़ाई का फायदा पास में बैठे दो शरारती बंदरों ने उठाया। मौका पाकर, वे चुपके से बिल्लियों की रोटियां लेकर भाग जाते और उनका मजा लेते। भला आदमी इस पूरी स्थिति को देखता रहा। उसने सोचा कि वह पुण्य कमाने के लिए बिल्लियों को रोटियां देता है, लेकिन इनकी आपसी लड़ाई देखकर वह महसूस करने लगा कि शायद उसकी यह नेकदिली गलत हो रही है।
आदमी का कठोर निर्णय
भला आदमी इस पूरी स्थिति से तंग आ चुका था और उसने एक दिन फैसला किया कि वह अब बिल्लियों को रोटियां नहीं देगा। इसके बजाय, उसने रोटियां बंदरों के लिए रखना शुरू कर दिया। दोनों बंदर मिलकर रोटियां खाते और बिल्लियों को देख कर चिढ़ाते। यह देखकर बिल्लियां असहाय महसूस करने लगीं।
कुछ दिन बाद, भला आदमी ने सोचा कि शायद अब बिल्लियों को समझ आ गई होगी और उन्होंने फिर से बिल्लियों के लिए दो रोटियां रख दीं। लेकिन जैसे ही बिल्लियां रोटियां देखती हैं, वे फिर से एक-दूसरे पर झपटने लगतीं।
बिल्लियों की आदतें और उनका सुधार न होना
भूरी बिल्ली ने काली बिल्ली से कहा, "दुनिया में ताकतवर का ही हक होता है। मैं तुमसे ताकतवर हूं, इसलिए रोटियां मेरी हैं।" काली बिल्ली ने जवाब दिया, "तुमसे ताकतवर कौन है? आओ, लड़कर देख लें।" फिर दोनों बिल्लियों के बीच एक भयंकर लड़ाई शुरू हो गई। लड़ाई इतनी बढ़ गई कि दोनों बिल्लियां थक गईं और रोटियां पाने की बजाय पूरी तरह से लहूलुहान हो गईं।
तभी पास से बंदरों का ठहाका सुनाई दिया। दोनों बिल्लियां यह देखती रहीं कि बंदर रोटियां लेकर मजे से खा रहे थे। भूखी भूरी बिल्ली ने थके हुए स्वर में कहा, "बंदरों, रोटियां लौटा दो। मैं भूखी मर रही हूं।" काली बिल्ली भी बोली, "मैं भी भूखी हूं। कृपया रोटियां लौटा दो।"
बंदरों से मिला कड़ा संदेश
तभी एक बंदर ने गंभीर स्वर में कहा, "तुम दोनों को यही सजा मिलनी चाहिए। आदमी ने तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए फिर से रोटियां रखी थीं, लेकिन तुमने फिर वही गलती की। जो केवल अपनी भूख देखते हैं और दूसरों की परवाह नहीं करते, उन्हें यही हश्र भुगतना पड़ता है।"
इसके बाद दोनों बंदर मजे से रोटियां खाते गए और बिल्लियां केवल देखते रह गईं।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि
समझदारी और साझेदारी का होना कितना जरूरी है। यदि हम स्वार्थी होकर सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं और दूसरों की परवाह नहीं करते, तो अंत में वही हमारी कमजोरी बनती है। रोटियां एक प्रतीक हैं, जो हमें यह समझाती हैं कि किसी चीज़ का सही इस्तेमाल तभी होता है जब हम उसे साझेदारी और समझदारी से साझा करें। बिल्लियों की तरह अगर हम सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में सोचें और एक-दूसरे के साथ मिलकर न चलें, तो हमारा अंत भी ऐसा ही हो सकता है जैसा इन बिल्लियों का हुआ।