ब्रह्मारण्य नामक घने जंगल में एक गजराज नाम का विशालकाय हाथी रहता था। गजराज की शक्ति और कद-काठी इतनी प्रभावशाली थी कि जंगल का हर जानवर उससे डरता और सम्मान भी करता था। हालांकि गजराज ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया, लेकिन उसका रौब इतना था कि सारे प्राणी दूर-दूर रहते थे।
गजराज का जीवन बहुत साधारण था। जब उसे भूख लगती, वह अपनी सूंड से पेड़ की डालियां तोड़कर पत्ते खा लेता और प्यास लगने पर तालाब के पास जाकर पानी पी लेता। जंगल में उसका एकछत्र साम्राज्य था। वह किसी का दुश्मन नहीं था, फिर भी जंगल के कुछ जानवरों को उसकी यह प्रतिष्ठा बर्दाश्त नहीं होती थी।
भेड़ियों की जलन और साजिश
जंगल के कुछ भेड़िये गजराज के खिलाफ साजिश रचने लगे। वे उसकी ताकत और दबदबे से ईर्ष्या करते थे और उसे रास्ते से हटाना चाहते थे। उनके मन में लालच था कि इतने बड़े हाथी का मांस उन्हें कई दिनों तक भोजन के लिए मिल जाएगा। लेकिन सवाल यह था कि इतने शक्तिशाली हाथी को मारा कैसे जाए?
तभी उनमें से एक चालाक भेड़िया खड़ा हुआ और बोला,
"शक्ति से तो हम गजराज को नहीं हरा सकते, लेकिन अपनी चालाकी और बुद्धिमत्ता से जरूर उसे खत्म कर सकते हैं।"
बाकी भेड़ियों को भेड़िये की यह योजना पसंद आई और उन्होंने उसकी चाल को अंजाम देने की अनुमति दे दी।
चालाक भेड़िया और गजराज का छलावा
अगले दिन वह चालाक भेड़िया गजराज के पास पहुंचा। भेड़िये ने गजराज को प्रणाम किया और बड़ी विनम्रता से बोला:
"महाराज, मैं जंगल के सारे जानवरों की तरफ से आपके पास आया हूं। जंगल में सबने मिलकर यह तय किया है कि आपको हमारा राजा बनाया जाए।"
गजराज ने आश्चर्य से पूछा
"कौन हो तुम? और यह राजा बनाने की बात क्यों कर रहे हो?"
भेड़िये ने अपनी बात को और मीठा बनाते हुए कहा
"महाराज, जंगल का राजा जंगल की शान होता है। लेकिन हमारे जंगल में अभी तक कोई राजा नहीं है। आपके जैसे बलशाली हाथी के अलावा और कौन इस पद का अधिकारी हो सकता है? जंगल के सभी प्राणियों ने आपका राज्याभिषेक करने का मुहूर्त निकाला है। अब बस आपकी स्वीकृति चाहिए।"
राजा बनने की बात सुनकर गजराज बहुत खुश हो गया। उसने बिना कुछ सोचे-समझे भेड़िये की बात मान ली और उसके साथ चल पड़ा।
राज्याभिषेक की ओर बढ़ते कदम
भेड़िया चतुराई से गजराज को जंगल के एक तालाब की ओर ले जाने लगा। वह कहता गया:
"महाराज, समय कम है। हमें जल्दी पहुंचना होगा ताकि मुहूर्त ना निकल जाए।"
भेड़िया तेजी से भाग रहा था, और गजराज अपने भारी शरीर के साथ उसके पीछे-पीछे चलने की कोशिश कर रहा था। जब वे तालाब के पास पहुंचे, तो भेड़िया हल्के शरीर के कारण तालाब को कूदकर पार कर गया। लेकिन गजराज जैसे ही तालाब में उतरा, वह दलदल में फंसता चला गया।
भेड़िये का असली चेहरा
गजराज ने खुद को दलदल में फंसा पाया और घबराकर भेड़िये को आवाज लगाई:
"भाई, मुझे मदद चाहिए। मैं इस दलदल में फंस गया हूं। मुझे बाहर निकालो।"
लेकिन भेड़िया अब अपना असली रंग दिखा चुका था। उसने ठहाका लगाते हुए कहा:
"मूर्ख गजराज! तुमने जैसे हम छोटे भेड़ियों पर भरोसा किया, अब उसका फल भुगतो। तुम्हारी कहानी यहीं खत्म होती है।"
इतना कहकर भेड़िया वहां से भाग गया और अपने साथियों को यह खुशखबरी देने चला गया।
गजराज की हार और जंगल की सीख
बेचारा गजराज दलदल में धंसता चला गया। उसकी विशाल शक्ति और रुतबा इस मौके पर किसी काम नहीं आए। उसने बिना सोचे-समझे भेड़िये की बातों पर भरोसा किया था और यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि
गजराज ने भेड़िये की मीठी बातों पर भरोसा करके जल्दबाजी में फैसला लिया, जिसका परिणाम उसकी मौत के रूप में सामने आया।
हमें किसी भी परिस्थिति में अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना चाहिए और अंधविश्वास या छलावे में नहीं फंसना चाहिए।