बहुत समय पहले की बात है, एक अद्भुत घटना ने पूरे महल को हिलाकर रख दिया। राजा मानसिंह, जो अपनी महारानी से बहुत प्रेम करते थे, ने उनके जन्मदिन पर एक बहुत कीमती हार बनवाया था। वह हार इतना सुंदर था कि उसकी तारीफें चारों ओर होने लगीं। महारानी ने भी हार पाकर राजा का धन्यवाद किया और इसे अपनी सबसे कीमती धरोहर माना।
लेकिन अगले ही दिन जब महारानी ने हार पहनने के लिए संदूक खोला, तो हार गायब था। यह देखकर महारानी बहुत घबराई और उन्होंने तुरंत राजा से मदद मांगी। राजा ने तुरन्त ही महल के सबसे चतुर दरबारी चतुर सिंह को बुलाया।
चतुर सिंह की चतुराई हार की खोज की शुरुआत
राजा मानसिंह ने चतुर सिंह से कहा, "चतुर सिंह, हमारे महल से हार चोरी हो गया है। तुम्हें इसे ढूंढने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।"
चतुर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, "महाराज, चिंता मत करें, मैं जल्द ही इसका पता लगाऊंगा।"
चतुर सिंह ने सभी महल कर्मचारियों को दरबार में बुलाया और खुद एक जादुई गधे के साथ दरबार में पहुंचे। राजा ने हैरान होकर पूछा, "चतुर सिंह, यह गधा क्यों लाए हो? चोरी का हार इससे क्या लेना-देना?"
चतुर सिंह ने जवाब दिया, "महाराज, यह कोई साधारण गधा नहीं है। यह गधा जादुई है और चोर की पहचान करने में सक्षम है।"
गधे की पूंछ पर इत्र लगाकर चतुर सिंह ने किया खुलासा
चतुर सिंह ने गधे की पूंछ पर इत्र लगाया और सभी कर्मचारियों से कहा कि वे एक-एक करके गधे की पूंछ पकड़ें और कहें, "महाराज, मैंने चोरी नहीं की है।" सभी सेवक यह काम करते गए, लेकिन एक सेवक ऐसा था जिसने गधे की पूंछ नहीं पकड़ी। चतुर सिंह ने फिर उन सभी के हाथों को सूंघा और कहा, "महाराज, यही चोर है।"
राजा मानसिंह हैरान होकर बोले, "तुम इतनी यकीन से कैसे कह सकते हो, चतुर सिंह?"
चतुर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, "महाराज, मैंने गधे की पूंछ पर इत्र लगाया था। सभी निर्दोष सेवकों ने गधे की पूंछ पकड़ी, इसलिए उनके हाथों में इत्र की खुशबू आ रही है, लेकिन चोर ने डर के मारे गधे की पूंछ नहीं पकड़ी, इसलिए उसके हाथ से कोई खुशबू नहीं आई।"
महारानी का खोया हुआ हार मिल गया
यह सुनकर सभी लोग हैरान रह गए। राजा मानसिंह ने तुरंत चोर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया और हार को सुरक्षित वापस लाया।
राजा ने चतुर सिंह की बुद्धिमानी की सराहना की और कहा, "चतुर सिंह, तुमने बहुत ही चतुराई से चोर को पकड़ लिया। महारानी का हार वापस मिल गया है।"
महारानी ने खुश होकर कहा, "चतुर सिंह, तुम्हारी चतुराई ने हमारी सबसे कीमती धरोहर हमें वापस दिलाई। धन्यवाद!"
चतुर सिंह ने जवाब दिया, "महाराज, यह मेरी जिम्मेदारी थी। सत्य और बुद्धिमानी से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है।"
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि
घमंड से दूर रहना चाहिए और सच्चाई के रास्ते पर चलकर हर समस्या का समाधान किया जा सकता है। बुद्धिमानी और चतुराई से कोई भी कठिनाई दूर की जा सकती है।