जंगल में एक बार भेड़िया कई दिनों से बीमार था और शिकार करने में असमर्थ था। उसकी भूख ने उसे मजबूर कर दिया और वह शिकार की तलाश में निकल पड़ा। कुछ ही दूरी पर उसने नदी किनारे एक भेड़ को पानी पीते देखा। भेड़िया को देखते ही मुंह में पानी आ गया और वह सोचने लगा, "अगर यह भेड़ मेरी भूख को शांत कर दे, तो मेरी कई दिनों की भूख मिट जाएगी। लेकिन मेरी हालत इतनी खराब है कि इसे पकड़ने की ताकत नहीं है।"
चालाक योजना
तभी भेड़िया को एक योजना सूझी। वह भेड़ के पास गया और बड़े ही दयनीय स्वर में बोला, "भेड़ भाई, मैं कई दिनों से बीमार हूं और बहुत कमजोर हो गया हूं। क्या तुम मेरे लिए नदी से पानी ला सकती हो? तुम्हारी बहुत मेहरबानी होगी। मेरी तबियत आज बहुत खराब है, पानी पीकर मैं थोड़ा ठीक हो जाऊं, फिर शिकार की तलाश में जा सकूंगा।"
भेड़ ने भेड़िया की बातों को सुनकर उसे दयालु समझा और सोचा, "यह बेचारा बीमार है, इसे मदद दी जानी चाहिए।" वह पानी लाने के लिए नदी की ओर मुड़ी, लेकिन रास्ते में उसे अचानक एक ख्याल आया, "क्या यह भेड़िया मुझे फंसाने की चाल तो नहीं चला रहा?"
समझदारी से लिया गया कदम
भेड़ ने अपनी समझदारी का इस्तेमाल करते हुए पानी लाने का नाटक किया और कुछ दूर जाकर रुक गई। फिर उसने भेड़िया से कहा, "अगर तुम्हें सच में भूख लगी है, तो मैं जंगल से कुछ घास लेकर आती हूं। घास खाकर तुम थोड़ा मजबूत हो सकोगे, फिर अपनी शिकार की ताकत पाओगे।"
यह सुनकर भेड़िया गुस्से में आ गया और उसने चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हें लगता है कि मैं घास खाने वाला जानवर हूं? मैं मांस खाता हूं! तुम मुझे मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हो!"
भेड़ को अब यकीन हो गया कि भेड़िया उसकी जान का दुश्मन बन चुका है। उसने तुरंत नदी के दूसरी ओर भागकर अपनी जान बचाई। भेड़िया भड़कते हुए उसे भागते हुए देखता रहा, लेकिन कमजोरी के कारण वह उसका पीछा नहीं कर सका।
कहानी से मिली सीख
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें चालाक और स्वार्थी लोगों से सावधान रहना चाहिए। उनकी बातों में आकर हमें अपनी समझदारी नहीं खोनी चाहिए। भेड़ ने अपनी सूझबूझ और सतर्कता से भेड़िया की साजिश को नाकाम किया और अपनी जान बचाई। हमें भी जीवन में सतर्क और समझदार रहना चाहिए, ताकि किसी भी मुश्किल परिस्थिति में हम सही निर्णय ले सकें और खुद को सुरक्षित रख सकें।