शाम का समय था, पार्क में हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी। अजय अपनी बेटी रिया के साथ बेंच पर बैठा था। रिया का चेहरा सुस्त था, आँखों में उदासी का अक्स साफ़ देखा जा सकता था। अजय ने उसे देखा और धीरे से पूछा, "क्या हुआ, बेटा? तुम आज इतनी उदास क्यों हो?"
एक दिल छू लेने वाला सफर
रिया ने आँखें झुका लीं और चुपचाप बैठी रही। फिर उसने गहरी सांस ली और कहा, "पापा, स्कूल में सबके पास नए मोबाइल थे, नए कपड़े थे, और नए खिलौने भी थे। मुझे लगता है, मैं किसी से कम हूं, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है।"
अजय ने उसकी बात ध्यान से सुनी और एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "रिया, क्या तुम जानती हो कि असली खुशी ये सारी चीज़ें नहीं होतीं?" रिया थोड़ा चौंकी, लेकिन उसने अपनी नजरें पिता की तरफ घुमाईं, वह कुछ और सुनने के लिए तैयार थी।
अजय ने अपनी बात जारी रखी, "जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तो मेरे पास ये सारी चीज़ें नहीं थीं। न मोबाइल था, न महंगे खिलौने। लेकिन मेरे पिता ने मुझे हमेशा यही सिखाया कि खुशी हमेशा उन छोटी-छोटी चीज़ों में होती है, जो हमारे पास होती हैं।"
रिया ने हैरान होकर पूछा, "पापा, आप यह क्या कह रहे हो? तो क्या हमें चीज़ों की बजाय किसी और चीज़ में खुशी तलाशनी चाहिए?"
अजय ने गहरी सांस ली और कहा, "बिलकुल! असली खुशी हमारे रिश्तों में है। जब हम एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं, जब हम एक-दूसरे के साथ हंसी मजाक करते हैं, जब हम एक-दूसरे के दुख-सुख बांटते हैं, तो वही असली खुशी होती है। और याद रखना, वक्त सबसे कीमती होता है, जो हम अपने परिवार के साथ बिताते हैं।"
फिर अजय ने रिया से कहा, "तुम्हें याद है, जब मैं तुम्हारी उम्र का था, मेरे पिता मुझे रोज़ शाम को पार्क में लेकर जाते थे। हम घंटों बातें करते, खेलते और हंसी मजाक करते थे। उस समय मेरे पास कोई महंगा खिलौना नहीं था, लेकिन उन पलो की यादें आज भी मेरे दिल में हैं।"
रिया की आँखों में एक चमक आई। उसने धीरे से कहा, "पापा, आप सही कह रहे हो। अब मैं समझ गई हूं कि चीज़ों से ज्यादा रिश्तों की अहमियत है।"
अजय ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "हां, बेटा! याद रखना, चीज़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता। जो चीज़ें हमें मिलती हैं, वे एक दिन खत्म हो जाती हैं, लेकिन हमारे रिश्ते, हमारे साथ बिताए गए समय, ये हमेशा हमारे साथ रहते हैं।"
रिया ने अपने पापा को गले लगा लिया और कहा, "पापा, मुझे खुशी है कि मेरे पास आप हैं।"
अजय ने रिया को गले में लपेटते हुए कहा, "और मुझे गर्व है कि मेरे पास तुम जैसी समझदार बेटी है।"
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि
असली खुशी भौतिक चीज़ों में नहीं, बल्कि रिश्तों और परिवार के साथ बिताए गए समय में होती है। बच्चों को यह समझाना ज़रूरी है कि सुख और संतोष का स्रोत बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि हमारे परिवार और अपनों के साथ बिताए गए अनमोल पलों से आता है।
इस कहानी के माध्यम से हम जान सकते हैं कि हमें अपने बच्चों को जीवन के असली मूल्य, रिश्तों की अहमियत और समय की क़ीमत सिखानी चाहिए।