सोनार वन में एक सनकी शेर राजा के रूप में शासन कर रहा था। उसका नाम था लंपट सिंह। वह बहुत ही गुस्सैल और मूर्खतापूर्ण फैसले लेने वाला था। कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता था जब वह जंगल के जानवरों के लिए परेशानी का कारण न बनता। लंपट सिंह का रवैया हमेशा अराजक और उग्र रहता था। उसकी आदतें और सनक जंगल के बाकी जानवरों के लिए असहनीय हो गई थीं।
लंपट सिंह का मंत्री भोलू खरगोश था, जो बहुत ही बुद्धिमान और समझदार था। भोलू ने कई बार राजा से उसकी आदतों को सुधारने की विनती की थी, लेकिन किसी न किसी कारण वह हर बार नकारा कर दिया जाता था। भोलू जंगल के बाकी जानवरों की तरह लंपट सिंह की तानाशाही से तंग आ चुका था।
मिठाई की लालच चीटियों की आक्रमण योजना
एक दिन लंपट सिंह को अचानक मिठाई खाने का मन हुआ। उसने तुरंत अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे उसे मिठाई लाकर दें। कुछ ही देर में सेवकों ने राजमहल में स्वादिष्ट मिठाइयाँ पहुंचा दीं। लंपट सिंह ने पेट भरकर मिठाई खाई और कुछ ही देर में नींद में सो गए, बिना मुंह धोए।
मिठाई की मीठी महक हवा में फैल गई, और यह महक चीटियों तक पहुंची। जैसे ही चीटियों ने यह महक सूंघी, उनका दल लंपट सिंह की ओर बढ़ने लगा। परंतु, एक बुजुर्ग दादी चीटी जो लंपट सिंह के स्वभाव से भली-भांति परिचित थी, उसने सबको चेतावनी दी, "अगर लंपट सिंह जाग गए तो हमें बुरी सजा मिल सकती है, इसलिए हमें खतरनाक कदम नहीं उठाना चाहिए।"
लेकिन चीटियाँ मिठाई की लालच में थीं। एक छोटी सी चीटी, जिसके मुँह से पानी टपक रहा था, बोली, "दादीजी, चिंता मत करो, हम इतनी सफाई से मिठाई खा लेंगे कि महाराज को पता भी नहीं चलेगा। अगर वह जाग भी गए तो हम तुरंत भाग जाएंगे।"
शेर का गुस्सा लंपट सिंह की दहाड़ और चीटियों की सजा
चीटियाँ लंपट सिंह की मूंछों पर मिठाई खाने लगीं, और इसी दौरान कुछ चीटियाँ शेर के नाक में भी घुस गईं। इससे शेर को जोर की छींक आई और उसकी नींद टूट गई। लंपट सिंह ने अपनी दहाड़ मारी और चीटियाँ भागने लगीं। उसकी दहाड़ सुनकर कई चीटियाँ डर के मारे मरीं और बाकी चीटियाँ भाग निकलीं।
गुस्से से भरकर लंपट सिंह ने अपने मंत्री भोलू खरगोश को बुलाया और आदेश दिया, "जाकर पूरे वन में यह एलान कर दो कि कल से एक भी चींटी इस वन में न दिखे। सभी चीटियाँ आज शाम तक यह वन छोड़ दें।"
भोलू ने इसका विरोध किया, "महाराज, यह एक छोटी सी गलती है, और इसके लिए इतनी बड़ी सजा उचित नहीं है।" लेकिन लंपट सिंह ने उसकी एक न सुनी।
भोलू की बुद्धिमत्ता और समस्या समाधान
भोलू खरगोश ने समझ लिया कि अब उसे शेर को समझाने से कुछ नहीं होने वाला। वह सीधा चीटियों तक गया और उन्हें लंपट सिंह के आदेश के बारे में बताया। चीटियाँ और बाकी जानवर बहुत गुस्से में थे। सभी ने लंपट सिंह की तानाशाही पर अपना विरोध व्यक्त किया।
अब भोलू ने एक चाल चली। उसने चीटियों से कहा, "हम कुछ ऐसा उपाय निकालते हैं, जिससे हम चीटियों को इस वन से न जाने के लिए मना सकें और साथ ही लंपट सिंह से भी छुटकारा पा सकें।"
भोलू का पाताल लोक का प्लान
भोलू ने फिर एक बहुत ही चतुर उपाय निकाला। उसने सभी जानवरों से कहा कि उन्हें चीटियों के जाने के बाद लंपट सिंह को पाताल लोक भेजने का तरीका अपनाना चाहिए। अगले दिन भोलू लंपट सिंह के पास गया और उसे बताया, "महाराज, आपकी दी हुई सजा के बाद चीटियाँ पाताल लोक में जाकर शरण ले आई हैं, वहां उन्हें न खाने की चिंता है और न ही कोई काम करने की। सब लोग आराम कर रहे हैं।"
लंपट सिंह को इस बात का लालच हुआ और वह पाताल लोक का राजा बनने की इच्छा रखने लगा। भोलू ने उसे विश्वास दिलाया कि वह उसे पाताल लोक ले जाएगा।
लंपट सिंह का अंत एक चतुर योजना
रात को भोलू, लंपट सिंह को लेकर पाताल लोक जाने के लिए निकला। भोलू ने उसे एक कुएं के पास पहुंचा दिया और कहा, "यह पाताल लोक का रास्ता है, आप इसमें उतर जाइए, सभी लोग आपका इंतजार कर रहे हैं।"
लंपट सिंह ने खुशी-खुशी कुएं में कूदकर अपनी नई शुरुआत की उम्मीद की। लेकिन जैसे ही वह कुएं में गिरा, भोलू ने बताया, "महाराज! यह पाताल लोक नहीं, यमलोक जाने का रास्ता है।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि
अन्याय का अंत होता है: जब कोई शासक या व्यक्ति अत्याचार करता है, तो उसे अंततः सजा मिलती है।
बुद्धिमत्ता की ताकत: समझदारी और चतुराई से किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
सहयोग की शक्ति: सामूहिक प्रयास और सही रणनीति से कोई भी संकट हल किया जा सकता है।