परिवार केवल खून के रिश्ते से नहीं, बल्कि त्याग और प्रेम के अटूट धागों से बंधा होता है। यह कहानी है एक ऐसी बहन की, जिसने अपने भाई की खुशियों के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। यह सिर्फ एक कथा नहीं, बल्कि हर उस बहन का प्रतिबिंब है, जो अपने परिवार के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है।
संघर्षों से भरा बचपन
माता-पिता के असमय चले जाने के बाद कविता और अमित की दुनिया बदल गई। कविता ने अपने छोटे भाई को माँ-बाप दोनों का प्यार देने का फैसला किया। वह दिन-रात मेहनत कर घर चलाने लगी, ताकि अमित की पढ़ाई में कोई बाधा न आए। जब अमित की कॉलेज की फीस भरने का समय आया, तो कविता ने ऑफिस से एडवांस लिया। खुद की जरूरतों को दरकिनार कर, वह हर दिन ऑफिस के बाद एक अतिरिक्त काम भी करने लगी। उसे बस एक ही सपना था—अमित एक दिन बड़ा अफसर बने और उसके सारे संघर्ष सफल हो जाएं।
सपनों की उड़ान और बहन का बलिदान
समय बीता, और कविता के संघर्ष रंग लाए। अमित को एक बड़ी कंपनी में मैनेजर की नौकरी मिल गई। अब वह आर्थिक रूप से सक्षम था। उसने कविता से कहा, "अब आपको काम करने की जरूरत नहीं, दीदी। अब मैं आपकी जिम्मेदारी उठाऊंगा।" कविता ने मुस्कुराकर नौकरी छोड़ दी और घर संभालने लगी। पर उसकी खुशियों का यह दौर ज्यादा लंबा नहीं चला।
जब नए रिश्ते आए, तो पुराने दरकने लगे
अमित की शादी अल्का से हुई। शुरू में सबकुछ ठीक था, लेकिन अल्का की माँ ने धीरे-धीरे उसके मन में यह बात बैठा दी कि कविता इस घर में बोझ बन रही है। धीरे-धीरे, अल्का का व्यवहार बदलने लगा। उसने अमित के सामने तो बहन की सेवा करने का दिखावा किया, लेकिन जब वह घर पर नहीं होता, तो छोटी-छोटी बातों पर कविता से झगड़ने लगी।
साजिश का जाल
एक दिन अल्का ने अमित से कहा, "दीदी को अपनी ज़िंदगी बसाने के बारे में सोचना चाहिए। आखिर वह हमारी ज़िम्मेदारी कब तक बनी रहेंगी?" अमित को यह सुनकर गुस्सा आया, "दीदी ने अपना पूरा जीवन मेरे लिए समर्पित कर दिया। मैं उनके बिना कुछ नहीं।" जब अमित को अपने पक्ष में करना असंभव हो गया, तो अल्का ने एक खतरनाक साजिश रची। उसने कविता को मंदिर चलने के लिए कहा और वहां प्रसाद में ज़हर मिला दिया।
नई पहचान, नया जीवन
ज़हर खाने के बाद कविता बेहोश हो गई। अल्का उसे वहीं छोड़कर घर लौट आई और अमित से कह दिया कि कविता तीर्थ यात्रा पर गई है। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मंदिर के पुजारी ने कविता की जान बचा ली। लेकिन सदमे के कारण उसकी याददाश्त चली गई। अब वह अपनी पुरानी ज़िंदगी भूलकर मंदिर में सेवा कार्य करने लगी।
भाई की खोज और पुनर्मिलन
अमित अपनी बहन की तलाश में दर-दर भटकता रहा। एक दिन, वह उसी मंदिर में पहुंचा, जहां वह थककर बैठा था। तभी एक लड़की की आवाज़ आई—
"भैया, भंडारा शुरू हो रहा है, आइए भोजन कर लीजिए।"
अमित ने चौंककर उस आवाज़ की तरफ देखा— वह कविता थी!
पुजारी ने पूरी सच्चाई बताई। अमित ने बहन से घर चलने की गुहार लगाई, लेकिन कविता ने कहा, "भाई, मुझे सब याद आ गया है। लेकिन अब मैं तुम्हारे घर वापस नहीं जाऊंगी। भाभी को मेरा वहां रहना पसंद नहीं।"
त्याग और प्रेम की परीक्षा
अमित फूट-फूटकर रो पड़ा, "दीदी, अगर आप घर नहीं चलेंगी, तो मैं भी यहीं रहूंगा।" कविता अपने भाई के प्यार के आगे हार गई। लेकिन उसने एक शर्त रखी, "तुम भाभी पर गुस्सा नहीं करोगे।" घर लौटते ही अल्का का चेहरा पीला पड़ गया। वह डरी हुई थी। उसने कविता के पैरों में गिरकर माफी मांगी। कविता ने मुस्कुराकर कहा, "रिश्ते गलती से नहीं, माफी से बचाए जाते हैं।" कुछ समय बाद, कविता ने शादी कर ली और अपने नए जीवन की शुरुआत की।
सीख: सच्चा प्रेम और त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता। परिवार में प्रेम, विश्वास और माफी की शक्ति सबसे बड़ी होती है। रिश्ते कमजोर नहीं होते, बस हमें उन्हें समझदारी से निभाना होता है।