राजा मान सिंह का दरबार हमेशा ज्ञान, मनोरंजन और बुद्धिमानी का गढ़ माना जाता था। राजा के दरबार में एक व्यक्ति सबसे अधिक चर्चित और सम्मानित था, वह थे चतुर सिंह। उनकी चतुराई और हाजिरजवाबी की सभी सराहना करते थे। चतुर सिंह की समझदारी से दरबार में हमेशा शांति और समृद्धि बनी रहती थी। लेकिन एक दिन, जब चतुर सिंह बीमारी के कारण दरबार में उपस्थित नहीं हो पाए, तब महागुरु ने यह सवाल उठाया कि क्या दरबार बिना चतुर सिंह के सुरक्षित रह सकता है?
चतुर सिंह ने होशियारी कर के बचाया खजाना
महागुरु ने यह साबित करने के लिए एक चुनौती बनाई। उन्होंने दो चालाक चोरों को बुलाया और उन्हें यह शर्त दी कि अगर वे चतुर सिंह की चतुराई से बचकर राजा मान सिंह के खजाने को चुरा सकें, तो उन्हें पुरस्कार दिया जाएगा। चोरों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और खजाने को चुराने की योजना बनाने लगे।
लेकिन, चतुर सिंह को इस साजिश की भनक लग गई। उन्होंने अपनी चतुराई का परिचय देते हुए एक योजना बनाई। चतुर सिंह ने अपने घर के सभी कीमती सामान को एक ड्रम में रखा और उसे एक गहरे गड्ढे में छिपा दिया। इसके बाद, उन्होंने यह खबर फैला दी कि राजा का खजाना इसी गड्ढे में है।
रात के अंधेरे में, चोर चुपके से चतुर सिंह के घर पहुंचे और गड्ढे की ओर बढ़े। उन्हें लगा कि अब वे महागुरु की चुनौती को जीतने में सफल हो जाएंगे और खजाना चुराने में कामयाब हो जाएंगे। जैसे ही चोरों ने गड्ढा खोला, उन्हें वहां केवल पत्थर ही पत्थर मिले। अचानक चतुर सिंह और राजा के सिपाही वहां पहुंचे और चोरों को रंगे हाथ पकड़ लिया।
राजा मान सिंह ने चतुर सिंह की होशियारी की सराहना की और उन्हें पुरस्कृत किया। महागुरु को यह स्वीकार करना पड़ा कि चतुर सिंह जैसी चतुराई और होशियारी कहीं नहीं मिलती। वहीं, चोरों को उनके कृत्य के लिए दंडित किया गया।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि
सूझ-बूझ और धैर्य से बड़ी से बड़ी मुश्किल को भी हल किया जा सकता है। चतुर सिंह ने अपनी चतुराई से खजाने को सुरक्षित रखा और चोरों की साजिश को नाकाम किया। हमें हर परिस्थिति में अपनी बुद्धिमानी और चतुराई का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि हम किसी भी मुश्किल से बाहर निकल सकें।