मंदिर के पास एक झोपड़ी में एक साधु रहता था। एक दिन एक चूहा वहां घुस गया और साधु के भोजन को चुराना शुरू कर दिया। साधु ने खाना छिपाकर रखने की कोशिश की, पर चूहा फिर भी उसे ढूंढ लेता था। एक दिन एक विद्वान पंडित साधु से मिलने आया। साधु ने एक डंडी पकड़ी हुई थी ताकि वह चूहे को मार सके। बातचीत के दौरान पंडित ने देखा कि साधु का ध्यान उसकी बातों में नहीं है। गुस्से में पंडित ने कहा, “लगता है तुम्हें मुझसे बात करने में कोई रुचि नहीं है। तुम किसी अन्य ख्याल में व्यस्त हो। मुझे यहां से चले जाना चाहिए।”
साधु ने पंडित से माफी मांगी और चूहे की समस्या बताई। उन्होंने कहा, “देखो उस चूहे को! मैं भोजन की मटकी कितनी भी ऊपर लटकाऊं, वह हमेशा उसे ढूंढ लेता है। यह मुझे हफ्तों से परेशान कर रहा है।” पंडित ने साधु की परेशानी समझी और कहा, “चूहा इतना ऊंचा इसलिए कूद सकता है क्योंकि वह बहुत ताकतवर और आत्मविश्वासी है। जरूर उसने कहीं भोजन इकट्ठा कर रखा होगा। हमें वह जगह ढूंढनी होगी।” दोनों ने मिलकर चूहे का पीछा किया और उसके बिल का पता लगा लिया। वहां खोदकर उन्होंने सारा खाना हटा दिया।
खाना ना होने के कारण चूहा कमजोर हो गया। उसने फिर से खाना इकट्ठा करने की कोशिश की, लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास भी कम होने लगा। उसने फिर साधु की झोपड़ी में घुसकर मटके से खाना चुराने की कोशिश की, पर इस बार वह ऊपर तक छलांग नहीं लगा पाया। साधु ने उसे बांस की डंडी से मारा। घायल चूहा अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया और फिर कभी नहीं लौटा।
कहानी से मिलती है यह शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि शत्रु को परास्त करने के लिए उसकी ताकत को कम करो।