चंपकवन के घने जंगल में हर साल 'संपन्न मेला' बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह मेला पशु-पक्षियों के मेलजोल, आपसी समझ और एकता को बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित किया जाता है। मेला न केवल मनोरंजन का साधन होता है, बल्कि जंगल के सभी जीव एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझने का प्रयास भी करते हैं।
इस मेले के दौरान शेरसिंह महाराज की घोषणा रहती है कि कोई भी जीव किसी दूसरे पर हमला नहीं करेगा और सभी अपनी पसंद के भोजन का आनंद लेंगे। सभी प्राणी अपनी तरफ से महाराज को उपहार देकर अपनी एकता और प्रेम का संदेश देते हैं। मेले की सबसे बड़ी विशेषता होती है महाराज की ओर से दी गई दावत, जिसमें हर प्राणी की पसंद का खास ख्याल रखा जाता हैं।
कोयल का सुर और गर्व
इस बार मेले में मनोरंजन के लिए अलग-अलग प्रतियोगिताएं और प्रस्तुतियां आयोजित की गईं। जब कोयल रानी का नाम पुकारा गया, तो वह गर्व से मंच पर पहुंची। अपनी मीठी आवाज में गीत गाकर उसने सभी का दिल जीत लिया। जंगल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
लेकिन इसी दौरान, कोयल ने मादा कौआ का मजाक उड़ाते हुए कहा, "अब आप मादा कौआ से गाना सुनिए, शायद आपका जायका बदल जाए।" यह सुनकर सभी हंस पड़े, लेकिन मादा कौआ के दिल को गहरी चोट पहुंची।
मादा कौआ का जवाब
अपमान सहना मादा कौआ के लिए कठिन था। वह मंच पर आई और बोली, "कोयल, तुम्हारे गाने में सुर है, पर तुम्हारे शब्दों में घमंड और कटुता है। क्या तुम यह भूल गई हो कि तुम अपने अंडे पालने के लिए हमें ही सहारा बनाती हो?"
मादा कौआ ने कोयल की हकीकत सबके सामने रखी। उसने बताया कि कोयल अपने अंडे कौए के घोंसलों में रखती है, ताकि वह उन्हें से सके और बच्चों को पाल-पोस सके। मादा कौआ का त्याग सुनकर कोयल स्तब्ध रह गई।
कोयल का पछतावा
मादा कौआ की बात सुनकर कोयल को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने तुरंत माफी मांगते हुए कहा, "मैंने अपने सुर और गाने के गर्व में तुम्हारे त्याग और महानता को नकारा। तुम्हारी मेहनत और समर्पण का मोल नहीं समझा। मुझे क्षमा करें।"
महाराज शेरसिंह ने इस अवसर पर कहा, "यह घटना हमें सिखाती है कि घमंड और दूसरों का अपमान हमें कमजोर बनाते हैं। हमें हर जीव के योगदान को समझना चाहिए और एकता के महत्व को स्वीकार करना चाहिए।"
मेले का संदेश
इस मेले ने न केवल मनोरंजन और उत्सव का आनंद दिया, बल्कि एक गहरी सीख भी दी। यह सिखाया कि हर जीव की अपनी भूमिका और महत्व है। कोयल और मादा कौआ के बीच का संवाद इस बात का प्रतीक है कि आपसी समझ और सम्मान से ही सच्ची एकता पनपती हैं।
चंपकवन मेला केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि जीवन के अनमोल मूल्यों को समझने और साझा करने का अवसर है। यह हमें सिखाता है कि सम्मान, त्याग और एकता के बिना जीवन अधूरा हैं।