पेश है प्रसिद्ध और प्रेरणादायक कहानी, एकता में बल
किसी गांव में एक किसान रहता था। उसके चार पुत्र थे। किसान बहुत ही मेहनती था। यही कारण था कि उसके सभी पुत्र भी अपने हर काम को पूरी मेहनत और ईमानदारी से किया करते थे, लेकिन परेशानी यह थी कि किसान के सभी पुत्रों की आपस में बिल्कुल भी नहीं बनती थी। वो सभी छोटी-छोटी बात पर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। अपने पुत्रों के इस झगड़े को लेकर किसान बहुत परेशान रहता था। किसान ने कई बार अपने पुत्रों को इस बात के लिए समझाने का प्रयास किया, लेकिन उसकी बातों का चारों भाइयों पर कोई असर नहीं होता था। धीरे-धीरे किसान बूढ़ा हो चला, लेकिन उसके पुत्रों के आपसी झगड़ों का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। ऐसे में एक दिन किसान ने एक तरकीब निकाली और पुत्रों के झगड़े की इस आदत को दूर करने का मन बनाया। उसने अपने सभी पुत्रों को आवाज लगाई और अपने पास बुलाया।
किसान की आवाज सुनते ही सभी पुत्र अपने पिता के पास पहुंच गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनके पिता ने उन सभी को एक साथ क्यों बुलाया है। सभी ने पिता से उन्हें बुलाने का कारण पूछा। किसान बोला- आज मैं तुम सभी को एक काम देने जा रहा हूं। मैं देखना चाहता हूं कि तुम में से कौन ऐसा है, जो इस काम को बखूबी कर सकता है। सभी पुत्रों ने एक सुर में कहा- पिता जी आप जो काम देना चाहते है, दीजिए। हम उसे पूरी मेहनत और ईमानदारी से करेंगे। बच्चों के मुंह से यह बात सुनकर किसान ने अपने बड़े बेटे से कहा, ‘जाओ और बाहर से कुछ लकड़ियां उठाकर लाओ’। किसान ने अपने दूसरे बेटे से एक रस्सी लाने को कहा। पिता के बोलते ही बड़ा बेटा लकड़ियां लाने चला गया और दूसरा बेटा रस्सी लाने के लिए बाहर की ओर दौड़ा।
थोड़ी देर बाद दोनों बेटे वापस आए और पिता को लकड़ियां और रस्सी दे दी। अब किसान ने अपने बेटों को बोला कि इन सभी लकड़ियों को रस्सी से बांधकर उनका गट्ठर बना दें। पिता के इस आदेश का पालन करते हुए बड़े बेटे ने सभी लकड़ियों को आपस में बांधकर गट्ठर बना दिया। गट्ठर तैयार होने के बाद बड़े बेटे ने किसान से पूछा- पिता जी अब हमें क्या करना है? पिता ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘बच्चों अब आपको इस लकड़ी के गट्ठर को दो भागों में अपने बल से तोड़ना है।’ पिता की यह बात सुनकर बड़ा बेटा बोला ‘यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है, मैं इसे मिनटों में कर दूंगा।’ दूसरे नंबर का बेटा बोला ‘इसमें क्या है, यह काम तो आसानी से हो जाएगा।’ तीसरे नंबर का बेटा बोला ‘यह तो मेरे सिवा कोई नहीं कर पाएगा।’ चौथा बेटा बोला ‘यह तुम में से किसी के भी बस का काम नहीं है, मैं तुम सब में सबसे बलवान हूं, मेरे सिवा यह काम और कोई नहीं कर सकता।’
फिर क्या था अपनी बातों को साबित करने में सभी जुट गए और एक बार फिर चारों भाइयों में झगड़ा शुरू हो गया। किसान बोला- ‘बच्चों मैंने तुम सबको यहां झगड़ा करने के लिए नहीं बुलाया हूँ, बल्कि मैं देखना चाहता हूं कि तुम में से कौन ऐसा है, जो इस काम को बखूबी कर सकता है। इसलिए, झगड़ा बंद करो और लकड़ी के इस गट्ठर को तोड़कर दिखाओ। सभी को इस काम के लिए बारी-बारी मौका दिया जाएगा।’ यह कहते हुए किसान ने सबसे पहले लकड़ी के गट्ठर को अपने सबसे बड़े बेटे के हाथ में थमा दिया। बड़े बेटे ने गट्ठर को तोड़ने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उसे तोड़ पाने में असफल रहा। असफल होने के बाद बड़े बेटे ने दूसरे नंबर के बेटे को वह लकड़ी का गट्ठर थमाते हुए कहा कि भाई मैंने प्रयास कर लिया यह काम मुझसे नहीं हो पाएगा, तुम ही कोशिश करके देख लो।
इस बार लकड़ी का गट्ठर दूसरे बेटे के हाथ में था। उसने भी उस गट्ठर को तोड़ने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन लकड़ी का गट्ठर नहीं टूटा। असफल होने के बाद उसने लकड़ी के गट्ठर को तीसरे नंबर के बेटे को दे दिया और कहा, यह काम बहुत कठिन है, तुम भी कोशिश कर लो। इस बार तीसरे नंबर के बेटे ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी, लेकिन लकड़ी का गट्ठर बहुत मोटा था। इस कारण अधिक बल लगाने पर भी वह उसे तोड़ नहीं पा रहा था। काफी मेहनत करने के बाद जब उससे भी यह नहीं हुआ, तो अंत में उसने लकड़ी के गट्ठर को सबसे छोटे बेटे के हाथ में दे दिया। अब छोटे बेटे की बारी थी अपनी ताकत आजमाने की। उसने भी काफी प्रयास किया, लेकिन वह भी सभी भाइयों की तरह उस लकड़ी के गट्ठर को तोड़ पाने में सफल नहीं हुआ। अंत में हारकर उसने लकड़ी के गट्ठर को जमीन पर पटक दिया और बोला- ‘पिता जी यह काम संभव नहीं है।’
किसान मुस्कुराया और बोला ‘बच्चों अब आप इस गट्ठर को खोलकर इसकी लकड़ियों को अलग कर लो और फिर उसे तोड़ने का प्रयास करो।’ चारों भाइयों ने ऐसा ही किया। इस बार सभी ने एक-एक लकड़ी अपने हाथों में ली और आसानी से उसे तोड़ दिया। किसान बोला- ‘बच्चों आप चारों भी इन्हीं लकड़ियों के समान हो। जब तक इन लकड़ियों की तरह साथ रहोगे, तब तक कोई भी तुम्हें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा, लेकिन अगर तुम लोग लड़ते-झगड़ते रहोगे, तो इन अकेली लकड़ियों की तरह आसानी से टूट जाओगे।’ किसान की यह बात सुनकर अब सभी बच्चों को समझ आ गया था कि पिता उन्हें क्या समझाना चाहते है। सभी पुत्रों ने अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी और वादा किया कि जीवन में फिर दोबारा कभी वे आपस में नहीं झगड़ेंगे।
हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि - अगर हम आपस में एकजुट होकर रहेंगे, तो कोई भी मुश्किल क्यों न आ जाए, उसका सामना साथ मिलकर आसानी से किया जा सकता है। वहीं, अगर हम एक दूसरे से लड़ेंगे और अलग-अलग रहेंगे, तो छोटी से छोटी तकलीफ भी जिंदगी पर भारी पड़ सकती है।
हमारा प्रयास है की इसी तरह से आप सभी के लिए भारत के अनमोल खजानों,जो की साहित्य कला कहानियों में मौजूद है उन्हें आप तक सरल भाषा में पहुंचाते रहें . ऐसे ही प्रेरणादायक कथा -कहानियों के लिए पढ़ते रहें subkuz.com