प्रेरक कहानी: सोने की कलम और अनमोल सीख

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गांव के छोटे से घर में रहने वाला नीरज एक बेहद होनहार छात्र था। उसके पिता सुरेश किसान थे, जो बड़ी मेहनत से परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे। नीरज को पढ़ाई से बहुत लगाव था, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उच्च शिक्षा का सपना अधूरा लग रहा था। गांव के स्कूल के गुरुजी, श्यामलाल जी, नीरज की प्रतिभा से भली-भांति परिचित थे। 

एक दिन वे उसके घर आए और बोले, “बेटा, तुम्हारी मेहनत और लगन देखकर मैं चाहता हूँ कि तुम शहर जाकर पढ़ाई करो। यह देखो, मेरे पास एक सोने की कलम है। जब मैं युवा था, तो मेरे गुरु ने मुझे यह दी थी और कहा था कि इसे किसी योग्य छात्र को देना। अब यह कलम मैं तुम्हें सौंप रहा हूँ। इसे मेरे मित्र के पास ले जाओ, वह तुम्हें आवश्यक धनराशि दे देंगे।”

नीरज और उसके माता-पिता आश्चर्यचकित थे। लेकिन गुरुजी के समझाने पर नीरज शहर जाने के लिए तैयार हो गया।
शहर में नीरज ने कड़ी मेहनत की और वर्षों बाद एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक बन गया। उसकी उपलब्धियों के चर्चे पूरे देश में होने लगे। मगर व्यस्त जीवन में वह अपने गांव और गुरुजी को भूल गया।

एक दिन नीरज को खबर मिली कि गुरुजी बहुत बीमार हैं। वह तुरंत गांव पहुंचा। वहां देखा कि गुरुजी बहुत कमजोर हो चुके थे। उन्हें देखते ही नीरज की आँखों में आँसू आ गए। उसने कहा, “गुरुजी, आपकी दी हुई सोने की कलम ने मेरी किस्मत बदल दी। मैं अब वह कलम लौटाने आया हूँ।” गुरुजी मुस्कुराए और बोले, “बेटा, यह कलम सोने की नहीं थी, बल्कि यह विश्वास और परिश्रम की पहचान थी। 

मैंने सोने की कलम की कहानी इसलिए बनाई ताकि तुम अपनी शिक्षा को मूल्यवान समझो और अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में मेहनत करो। असली सोना तुम्हारी मेहनत और ईमानदारी है। अब मेरा आशीर्वाद यही है कि तुम और भी बच्चों को आगे बढ़ने का अवसर दो।”नीरज को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने गांव में एक विद्यालय खोलने का निश्चय किया और कई गरीब बच्चों को शिक्षा देने लगा। वह जान गया था कि असली संपत्ति ज्ञान होती है, न कि किसी सोने की वस्तु में छिपी कोई कीमत।

सीख: मेहनत और सच्ची नीयत से किया गया प्रयास ही असली सोने की कलम की तरह मूल्यवान होता है।

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