शेखचिल्ली के घर पर बेकार बैठे रहने से उसकी मां बेहद परेशान थी। एक दिन उसने सोचा कि क्यों न शेख को व्यापार के लिए भेजा जाए, जिससे कुछ आमदनी हो जाए और वह बेकार भी न रहे। इसी मकसद के साथ उसकी मां अपनी जमा पूंजी लेकर बाजार से मखमल के कपड़े का थान खरीद लाई। कपड़े की थान खरीदने के बाद उसकी मां ने शेख से कहा कि वो इसे नगर के बड़े बाजार में बेच आए। शेखचिल्ली की मां ने उसे खास हिदायत देते हुए कहा कि बाजार में इस थान की कीमत इसके वास्तविक मूल्य से 2 पैसे ऊपर ही बताना। मां की बात गांठ बांधकर शेख कपड़े का थान लेकर नगर के बाजार की ओर चल पड़ा।
नगर के बड़े बाजार में पहुंचकर उसने एक जगह कपड़े का थान रख दिया और ग्राहक के मिलने का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद एक आदमी शेख के पास आया और थान की कीमत पूछने लगा। मूर्ख शेखचिल्ली को मां की कही बात याद आई तो उसने शख्स से कहा, “दाम का क्या है जनाब, आप बस थान के वास्तविक मूल्य से 2 पैसे ऊपर दे दीजिएगा।” शेखचिल्ली की बात सुनकर वह शख्स समझ गया कि वह मूर्ख है, इसलिए उसने तुरंत जेब से 4 पैसे निकालकर मखमल के कपड़े के थान के ऊपर रख दिए। शेख ने भी खुशी-खुशी वह पैसे उठाए और कपड़े का थान शख्स को बेचकर घर की ओर चल पड़ा।
घर लौटते हुए शेखचिल्ली ने रास्ते में देखा कि एक शख्स बड़े-बड़े तरबूज बेच रहा था। उसने कभी तरबूज नहीं देखे थे, तो वह आश्चर्यचकित हो गया और फल विक्रेता से पूछने लगा कि ‘यह क्या है?’ शेखचिल्ली का सवाल सुनकर फल विक्रेता को यह समझने में देर न लगी कि वह पक्का कोई महामूर्ख ही है। फल विक्रेता ने सोचा क्यों न उसे बेवकूफ बनाया जाए, तो वह शेख से कहने लगा कि यह कोई ऐसी-वैसी चीज नहीं है, बल्कि हाथी का अंडा है। फल विक्रेता की बात सुनकर शेखचिल्ली बहुत प्रभावित हुआ और उसने 2 पैसा देकर वह तरबूज खरीद लिया, जबकि उस समय एक तरबूज का भाव 1 पैसा हुआ करता था।
शेखचिल्ली यह सोचने लगा कि इससे हाथी का बच्चा निकलेगा और उसके बड़े होने पर वह हाथी को बेचकर बहुत पैसे कमाएगा। ये सोचते हुए खुश होकर वह घर की ओर चल पड़ा। वह तरबूज हाथ में उठाए आधे रास्ते ही पहुंचा था कि अचानक से उसका पेट खराब हो गया। आसपास खाली व सुनसान जगह देखकर वह एक पत्थर पर तरबूज को रखकर खुद झाड़ियों के पास पेट हल्का करने चला गया। अचानक झाड़ियों से उसने देखा कि एक गिलहरी तरबूज के पास से कूद कर बाहर निकली और तरबूज पत्थर से नीचे गिर कर फट गया। शेखचिल्ली को लगा कि वह गिलहरी कोई और नहीं, बल्कि तरबूज से निकला हाथी का बच्चा है।
इतना सोचकर वह गिलहरी को पकड़ने के लिए उसकी ओर दौड़ा, लेकिन गिलहरी तब तक फुर्ती से भाग चुकी थी। ये सोचकर कि हाथी का बच्चा हाथ से निकल गया शेखचिल्ली हाथ मलता रह गया और दुखी होकर घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में शेखचिल्ली को बड़े जोरों की भूख लगने लगी, तो वह हलवाई की दुकान पर रूक गया और उसने खाने के लिए समोसे खरीद लिए। जैसे ही उसने समोसे का एक टुकड़ा मुंह में डाला एक कुत्ता उसके सामने आकर भौंकने लगा। उसे लगा कि कुत्ता जरूर भूखा होगा, तो उसने बाकी बचा समोसा कुत्ते के सामने डाल दिया। कुत्ते ने पलक झपकते ही पूरा समोसा खा लिया और शेखचिल्ली भूखा ही घर की ओर चल पड़ा।
घर पहुंचकर उसने देखा कि उसकी मां घर पर मौजूद नहीं थी। उसने अपनी पत्नी को पूरी बात बताई कि कैसे उसके हाथ से हाथी का बच्चा निकल गया। उसकी बातें सुनकर शेखचिल्ली की पत्नी को बहुत गुस्सा आया और वह उससे लड़ने लगी। शेख की पत्नी कहने लगी कि अगर वह अपनी लापरवाही से हाथी के बच्चे को नहीं खोता तो वह एक दिन उस पर बैठकर सवारी करती। शेखचिल्ली और उसकी पत्नी आपस में झगड़ रहे थे कि शेखचिल्ली की मां घर लौट आई। दोनों को झगड़ते देख उसने लड़ने का कारण पूछा। शेख ने अपनी मां को पूरी बात बताई कि कैसे उसने मखमल के कपड़े के थान को बेचा और फिर रास्ते में हाथी का अंडा खरीदा। शेख की बातें सुनकर उसकी मां को बहुत गुस्सा आया और उसने उसे फटकारते हुए घर से बाहर निकाल दिया।
घर से निकलकर शेखचिल्ली गुस्से में चलते-चलते उसी हलवाई की दुकान के पास पहुंचा जहां से उसने समोसे खरीदे थे। उसने देखा कि वह कुत्ता अब भी वहीं बैठा था। कुत्ते को देखकर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और वह उसे मारने के लिए दौड़ा। कुत्ता हलवाई की दुकान के आगे से एक गली की ओर भागने लगा और शेख भी उसे मारने के लिए पीछे-पीछे दौड़ने लगा। भागते-भागते कुत्ता एक मकान के अंदर जा घुंसा जिसका दरवाजा खुला हुआ था। शेखचिल्ली भी उसके पीछे घर के अंदर घुस गया। कुत्ता दीवार फांदकर घर से बाहर निकल गया और शेखचिल्ली उसे ढूंढते हुए एक कमरे में जा पहुंचा। वो कमरा घर की मालकिन का था, जो उस वक्त वहां मौजूद नहीं थी। उसे कमरे में सोने-चांदी के आभूषणों से भरा एक छोटा संदूक दिखाई दिया, जो खुला हुआ था। उसने किसी को आसपास न पाकर एक कपड़े में सारे जेवरात डाल कर गठरी बना लीया और किसी के आने से पहले ही वहां से निकल गया।
उस मकान से आभूषण लेकर शेखचिल्ली सीधे अपने घर पहुंचा और अपनी मां को गठरी सौंपते हुए पूरी बात बताई। शेखचिल्ली की मां आभूषणों को देखकर बहुत खुश हो गई और फिर उसने वो गठरी अपने आंगन में एक गड्ढा खोदकर उसमें गाड़ दिया। शेखचिल्ली की मां उसकी मूर्खता से भली-भांति वाकिफ थी। उसने सोचा कि वह किसी को भी ये बात बता सकता है और वे चोरी के इल्जाम में पकड़े जा सकते हैं। इसलिए शेख की मां ने एक योजना बनाई और घर के एक नौकर को भेजकर बाजार से एक बोरा धान व मिठाइयां मंगवा ली। रात को जब शेखचिल्ली सो गया तो उसकी मां ने पूरे घर के आंगन में धान और मिठाईयों को बिखेर दिया। देर रात शेख को नींद से जगाते हुए उसकी मां ने कही कि देखो घर में धान और मिठाइयों की बारिश हुई है। बाहर आकर देखने पर शेखचिल्ली को उसकी मां की बातों पर यकीन हो गया और वह धान के बीच से मिठाइयां बिछकर खाने लगा।
वहीं, दूसरी ओर जिस शख्स की पत्नी के आभूषण शेखचिल्ली ने चुराए थे, उसने कोतवाल से शिकायत कर दी थी। मामले की जांच करते हुए कोतवाल और वह शख्स शेखचिल्ली के घर पहुंचे। कोतवाल ने शेखचिल्ली से चोरी के बारे में पूछा तो उसने चोरी की बात स्वीकार कर ली। शेखचिल्ली ने कोतवाल को बताया कि कैसे वह कुत्ते का पीछा करते हुए मकान के अंदर पहुंचा और वहां से चोरी किए आभूषणों को उसकी मां ने आंगन में गाड़ दिया। आगे उसने यह भी कहा कि आभूषणों को गाड़ने के बाद रात को धान और मिठाइयों की बारिश हुई। शेखचिल्ली की बातें सुनकर कोतवाल और शख्स को लगा कि वह मूर्ख है, इसलिए ऐसी बातें कर रहा है। शेखचिल्ली को पागल जानकर कोतवाल वहां से बिना कुछ तहकीकात किए ही चला गया। इस तरह से शेखचिल्ली की मां ने अपनी सूझबूझ से सभी को फंसने से बचा लिया। इसके बाद शेखचिल्ली की मां कईं दिनों तक एक-एक कर उन आभूषणों को बेचकर परिवार का खर्च चलाती रही।
इस कहानी से हमें दो सीख मिलती है, पहली यह कि हमें कभी किसी की बातों में नहीं आना चाहिए। दूसरी यह कि सूझबुझ से लिए गए फैसले से हर मुश्किल हल हो सकती है।