गांव के दो दोस्त, अर्जुन और विक्रम, एक छोटे से कस्बे में रहते थे। दोनों बेहद मेहनती थे, लेकिन गरीबी ने उनके सपनों को सीमित कर दिया था। आगे की पढ़ाई न कर पाने की वजह से दोनों के पास ज्यादा अवसर नहीं थे। परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए वे किसी बड़े शहर में जाकर कुछ करने का मन बना चुके थे।
नया सफर, नई उम्मीदें
अर्जुन और विक्रम शहर की ओर निकल पड़े। वहां पहुंचकर दोनों ने कई जगह नौकरी ढूंढी, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली। जब महीनेभर की तलाश के बाद भी उन्हें कोई काम नहीं मिला, तो वे मायूस हो गए। एक दिन, स्टेशन पर बैठे वे घर लौटने का विचार कर रहे थे, तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति, मोहनलाल जी, उनके पास आए और उनकी उदासी का कारण पूछा। उन्होंने अपनी परेशानी बताई तो मोहनलाल जी बोले, "संघर्ष के बिना सफलता नहीं मिलती बेटा, हार मानने से पहले एक और मौका खुद को दो।"
नौकरी का पहला दिन
मोहनलाल जी की बात सुनकर दोनों ने उम्मीद नहीं छोड़ी और उनके साथ एक जूते-चप्पल बनाने वाली कंपनी में नौकरी कर ली। पहले ही दिन, मालिक ने दोनों को एक परीक्षा दी। अर्जुन और विक्रम को एक बैग भरकर जूते-चप्पल दिए गए और कहा गया कि उन्हें यह एक दूरदराज के गांव में बेचकर आना होगा।
सोच की परीक्षा
अर्जुन गांव में पहुंचा और देखा कि वहां कोई भी जूते-चप्पल नहीं पहनता था। उसने सोचा, "यहां कौन खरीदेगा? यह तो असंभव है।" हताश होकर वह बैग लेकर वापस कंपनी आ गया और मालिक से कहा कि वहां बिक्री संभव नहीं है। विक्रम भी उसी गांव में गया। उसने भी देखा कि कोई जूते-चप्पल नहीं पहनता, लेकिन उसने इस स्थिति को अलग नजरिए से देखा।
वह गांववालों के पास गया और उन्हें समझाया कि नंगे पैर चलने से उनके पैर खराब हो सकते हैं, जूते पहनने से वे सुरक्षित रहेंगे और उन्हें ज्यादा आराम मिलेगा। उसकी बातों से प्रभावित होकर लोगों ने जूते खरीद लिए, और कुछ ही घंटों में उसका पूरा बैग खाली हो गया।
सफलता का इनाम
विक्रम जब मालिक के पास पहुंचा तो उसने बताया कि गांववालों को और जूते-चप्पल चाहिए। मालिक मुस्कुराए और बोले, "तुमने सोच की असली ताकत को समझा है, इसलिए आज से तुम हमारी टीम के लीडर बनोगे!" वहीं, अर्जुन को यह समझ में आया कि उसकी हार का कारण उसकी नकारात्मक सोच थी। उसने भी विक्रम से सीख ली और आगे से हर समस्या को अवसर के रूप में देखना शुरू किया।
सीख
"दृष्टिकोण ही हमारी सफलता और असफलता तय करता है। बाधाओं को समस्या नहीं, अवसर के रूप में देखें, तभी सच्ची सफलता मिलेगी।"