सुधार की राह: एक प्रेरणादायक कहानी

सुधार की राह: एक प्रेरणादायक कहानी
Last Updated: 11 घंटा पहले

सुधार की राह- अंकित बहुत ही शरारती और झगड़ालू लड़का था। पढ़ाई-लिखाई में उसका जरा भी मन नहीं लगता था। जब देखो, तब वह सबके साथ लड़ता-झगड़ता रहता।

सुधार की राह

अंकित एक बहुत ही शरारती और झगड़ालू लड़का था। उसे पढ़ाई-लिखाई में बिल्कुल रुचि नहीं थी और वह अक्सर दूसरों के साथ लड़ाई-झगड़ा करता रहता था। उसकी शैतानियों और झगड़ों की शिकायतें सुनकर उसके माता-पिता बेहद परेशान हो गए थे। उन्होंने कई बार अंकित को समझाया कि उसे अपनी शरारतें बंद करके पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन उसकी बातों का उस पर कोई असर नहीं होता था। इस बीच, अंकित के पापा का ट्रांसफर एक दूसरे शहर में हो गया। नया शहर होने के कारण वे अकेले ही गए, किसी और को साथ नहीं ले गए। जाते समय उन्होंने अंकित को समझाया, "घर में मम्मी अकेली हैं, उनका ख्याल रखना, उन्हें ज्यादा परेशान मत करना और इधर-उधर घूमने से बचना।" उस समय तो अंकित ने पापा की बातों पर हामी भर दी, लेकिन जैसे ही पापा चले गए, उसका डर भी गायब हो गया। अब वह पहले से भी ज्यादा आवारा और लापरवाह हो गया। मम्मी से उसका डर पहले ही कम था, लेकिन अब तो उसने उन्हें पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया। इसके अलावा, उसकी दोस्ती कुछ ऐसे लड़कों से हो गई जो धनी और आवारा थे। वे सब मिलकर दिनभर इधर-उधर घूमते और मस्ती करते रहे।एक दिन, जब अंकित की मम्मी ने देखा कि वह पहले से भी अधिक बिगड़ गया है, तो उनका दिल बहुत दुखी हुआ।

उन्होंने अंकित को समझाते हुए कहा, "बेटा, तेरे पापा तुझसे कितनी उम्मीदें रखते हैं कि तू पढ़ाई करके एक काबिल इंसान बनेगा। लेकिन तू उनकी उम्मीदों को खत्म करने पर तुला है। याद रख, दोस्ती सिर्फ सुख में साथ देने वालों से होती है, दुख में नहीं।" फिर उन्होंने कहा, "इससे पहले कि तू किसी मुसीबत में फंस जाए और तेरे पापा की इज्जत पर असर पड़े, यह सब छोड़ दे।"मम्मी के समझाने का अंकित पर कोई असर नहीं हुआ। अंततः तंग आकर उन्होंने उसे समझाना छोड़ दिया, यह सोचते हुए कि जब उसके पापा घर आएंगे, तब वो शिकायत करेंगे। लेकिन जब भी पापा आते, अंकित पूरी तरह सीधा हो जाता और शरारतें छोड़ देता, जिससे पापा को उसकी हरकतों का कभी पता नहीं चला।

बुराई का अंत हमेशा बुरा ही होता है।

लेकिन बुराई का अंत हमेशा बुरा ही होता है। एक दिन, अंकित अपने दोस्तों के साथ पान के खोखे के पास खड़ा था। उसी समय, दो लड़के मोपेड पर आए और उनकी मोपेड अंकित के दोस्त के पैर से हल्की-सी टकरा गई। इससे अंकित का दोस्त गुस्से में चिल्लाया, "क्या देख नहीं सकता? मेरी चप्पल गंदी कर दी। इसे धुएगा कौन, तेरा बाप?" बाप का नाम सुनते ही मोपेड वाले लड़के को गुस्सा गया। उसने कहा, "हम तो इंसानियत से बात कर रहे थे, लेकिन तुम तो बाप तक पहुंच गए।" अंकित को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने लड़के को घूंसा मार दिया। इसके बाद अंकित ने पान के खोखे में रखी लोहे की रॉड उठाई और मोपेड वाले लड़के के सिर पर मार दी। रॉड लगते ही लड़का बेहोश होकर गिर पड़ा। यह सब देखकर अंकित के सारे दोस्त वहां से खिसक गए। अंकित घबराया और चुपचाप वहां से निकलने की कोशिश करने लगा, लेकिन तभी पुलिस गई और उसे पकड़कर थाने ले गई। जब मम्मी को पता चला कि अंकित को पुलिस पकड़कर ले गई है, तो उनके होश उड़ गए।

उन्होंने अपने पड़ोसी मिस्टर गुप्ता से मदद मांगी और थाने पहुंचीं। वहां उन्होंने देखा कि अंकित को पुलिस ने इस कदर पीटा था कि वह बेहोश पड़ा था। गुप्ता अंकल की मदद से मम्मी ने उसे थाने से छुड़वाया और अस्पताल में भर्ती करवाया। अगले दिन सुबह जब अंकित को होश आया, तो उसने मम्मी और गुप्ता अंकल को अपनी तरफ चिंतित नजरों से देखते पाया। उसे कल की घटना याद गई, और वह शर्म से भर गया। गुप्ता अंकल ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, जो कुछ हुआ, उसे भूल जाओ। मुझे पता है कि तुम्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा है, लेकिन अब पछतावे का क्या फायदा?" गुप्ता अंकल की बातें सुनकर अंकित की आंखें भर आईं। उसने रुंधे गले से कहा, "आप सही कह रहे हैं, अंकल। दोस्तों के प्रभाव में मैं अच्छाई और बुराई का फर्क भूल गया था। अब मुझे समझ गया है कि सच्ची दोस्ती केवल सुख में साथ होती है, दुख में नहीं।" अंकित की यह बातें सुनकर उसकी मम्मी ने उसे गले लगा लिया और बोलीं, "बेटा, अगर कोई सुबह का भूला शाम को घर लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते।"

 इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि

जीवन में सही और गलत का फर्क समझना बेहद जरूरी है। दोस्ती में केवल मस्ती और आनंद नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और समझदारी भी होनी चाहिए। साथ ही, माता-पिता की बातों का महत्व समझना और उनके अनुभवों से सीख लेना हमारे विकास के लिए आवश्यक है। गलत निर्णय लेने पर उसके परिणाम भयानक हो सकते हैं, इसलिए हमें सोच-समझकर ही कदम उठाना चाहिए। सच्ची मित्रता वह होती है, जो मुश्किल समय में भी हमारे साथ खड़ी रहे। इस प्रकार, सही रास्ते पर चलकर हम अपने और दूसरों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

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