स्वामी विवेकानंद का शिष्टाचार: एक रेल यात्रा की कहानी

स्वामी विवेकानंद का शिष्टाचार: एक रेल यात्रा की कहानी
Last Updated: 2 दिन पहले

स्वामी विवेकानंद, भारतीय समाज के एक महान संत, योगी और विचारक थे। उनकी गहरी आत्मज्ञान और जीवन के प्रति दृष्टिकोण ने केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया। उनके जीवन में अनेक घटनाएँ हैं, जो उनके विचारों और दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। एक ऐसी ही घटना उनकी रेल यात्रा से जुड़ी है, जिसमें उन्होंने शिष्टाचार की सच्ची भावना को समझाया और हमें यह सिखाया कि सच्चे शिष्टाचार की पहचान शब्दों में नहीं, बल्कि कार्यों में होती है।

कहानी

स्वामी विवेकानंद एक बार ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। उनकी सीट के सामने एक अंग्रेज महिला अपने छोटे से बच्चे के साथ बैठी थी। यात्रा के दौरान, एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी और स्वामी विवेकानंद ने कुछ ताजे संतरे खरीदे। उन्होंने संतरे महिला के बच्चे को दे दिए, जो खुशी से संतरा छीलने लगा।

लेकिन जैसे ही बालक संतरा छीलने में व्यस्त हुआ, महिला ने अचानक अपने बच्चे को गुस्से में थप्पड़ मार दिया और संतरा उसके हाथ से गिरकर नीचे गिर गया। स्वामी विवेकानंद यह देखकर हैरान रह गए और उन्होंने शांतिपूर्वक महिला से पूछा, "आपने उसे थप्पड़ क्यों मारा?"

महिला गुस्से में बोली, "क्योंकि इसने आपको 'धन्यवाद' नहीं कहा। शिष्टाचार का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है।"

स्वामी विवेकानंद ने हलके से मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "शिष्टाचार केवल शब्दों में नहीं, बल्कि हृदय की भावना में होना चाहिए। अगर हम बिना शर्त दूसरों को प्रसन्नता देने का उद्देश्य रखते हैं, तो धन्यवाद की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। सच्चा शिष्टाचार तब होता है जब हम किसी से कुछ पाने की उम्मीद नहीं करते, और ही अपनी मदद के लिए किसी की सराहना की अपेक्षा रखते हैं।"

महिला की सोच में बदलाव

स्वामी विवेकानंद के इस उत्तर ने महिला को झकझोर दिया। उसने महसूस किया कि शिष्टाचार केवल औपचारिकता नहीं है। अगर हम दूसरों के साथ ईमानदारी से व्यवहार करते हैं, बिना किसी स्वार्थ या उम्मीद के, तो यही सच्चा शिष्टाचार है। उसका ध्यान इस तथ्य पर गया कि एक साधारण शब्द 'धन्यवाद' कहना किसी के साथ असम्मान नहीं है, बशर्ते हम अपने दिल से दूसरों को मदद दें।

स्वामी विवेकानंद की यह घटना हमें यह सिखाती है कि

शिष्टाचार का असली मतलब शब्दों में नहीं, बल्कि दिल की गहराई में छुपी भावना में होता है। हम जो भी कार्य करें, वह बिना किसी स्वार्थ या पुरस्कार की इच्छा के हो। सच्चा शिष्टाचार तब होता है जब हम अपने कार्यों के द्वारा दूसरों को खुशी दें, बिना किसी जवाब की उम्मीद किए। हमें यह समझना होगा कि आभार और शिष्टाचार का वास्तविक अर्थ कभी भी सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं रहता।

स्वामी विवेकानंद का यह दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि हमारे जीवन में साधारण, निस्वार्थ कार्यों की महानता होती है। उनके विचार और कार्यों ने केवल हमें बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा दी, बल्कि समाज में शिष्टाचार और आदर्श व्यवहार की दिशा में भी हमें मार्गदर्शन किया।

इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि स्वामी विवेकानंद का जीवन केवल उच्च विचारों से भरा हुआ नहीं था, बल्कि वह अपने व्यवहार से भी हमें जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सिखाते थे। सच्चा शिष्टाचार वह है, जिसमें हमारे कार्यों का उद्देश्य दूसरों की भलाई और खुशी हो, और यह बिना किसी उम्मीद के किया जाए।

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