विक्रमादित्य ने फिर से बेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर डाला और चलना शुरू कर दिया। बेताल ने भी अपनी कहानी सुनानी शुरू कर दी। बहुत समय पहले की बात है। माणिक्यपुर के विशाल राज्य पर राजा पुण्य व्रत का राज्य था। दयालु और बुद्धिमान होने के कारण प्रजा को बहुत प्यारे थे। एक बहुत ही साथी राजा थे। अपने युद्ध कौशल से उन्होंने कई राज्यों पर जीत का झंडा फहराया था। राजा को शिकार में बहुत आनंद आता था।
एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलने गए। एक बहुत सुंदर चितकबरे हिरण का पीछा करते-करते वह जंगल में काफी अंदर तक चले गए। अचानक हिरण उनकी नजरों से ओझल हो गया पर राजा अपना रास्ता भूल कर जंगल में भटकने लगे। घंटों जंगल में घूमने के बाद भी उन्हें रास्ता नहीं मिला। अंधेरा घिरने लगा था। राजा का भूख, प्यास और थकान के कारण बुरा हाल हो गया था। वे अपने घोड़े से नीचे उतरे ही थे कि अचानक उन्हें हाथ में लालटेन लिए हुए कोई अपनी और आता दिखाई दिया।
सावधान राजा ने तुरंत अपनी तलवार निकाल ली। वे किसी भी अनहोनी से निबटने के लिए अब तैयार थे। फिर उन्हें लगा कि वह आदमी उनकी मदद करना चाहता है। पास आकर उसने कहा,” महाराज, मुझे लगता है कि आप अपना रास्ता भूल गए हैं।” “ तुम सही कह रहे हो”। राजा ने उत्तर दिया। उसने फिर कहा, ” मैं आपके लिए भोजन और पानी लाया हूं। आप बहुत थक गए हैं। अभी आराम कीजिए। सुबह हम लोग रास्ता ढूंढ लेंगे।
उस युवक के अनुरोध पर राजा ने उसका लाया भोजन और पानी ले लिया। भोजन कर जैसे ही वह पेड़ के नीचे लेटे, उन्हें नींद ने अपने आगोश में ले लिया। अगली सुबह जागने पर राजा ने उस युवक को हाथ में छड़ी लेकर पहरा देते हुए देखा। राजा ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसका नाम पूछा। युवक ने उत्तर दिया, “ महाराज, मेरा नाम प्रताप है।” राजा ने फिर पूछा, “ क्या तुम मेरे दरबार में रहकर मेरी सेवा करना चाहोगे?”
प्रताप ने अपनी स्वीकृति दे दी। उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। वे दोनों रास्ता ढूंढते हुए महल चले आए और प्रताप महल में दरबारी के रूप में राजा की सेवा करने लगा। काफी समय बीत गया। प्रसन्न और संतुष्ट प्रताप ने 1 दिन वापस जंगल में उसी जगह जाने का निर्णय किया, जहां पहली बार तो राजा से मिला था। वहां पहुंचने पर उसे एक सुंदर लड़की दिखाई दी। उसे देखते ही वह उसकी सुंदरता पर कायम हो गया और उससे विवाह करने की अपनी इच्छा उसके सामने रख दी।
उसके प्रस्ताव को सुनकर लड़की ने कहा, “ आप कल आए, तब मैं आपको अपना निर्णय बताऊंगी।” प्रताप वापस चला गया पर सारी रात उसी लड़की के बारे में सोचता रहा। उसे एक पल के लिए भी नींद नहीं आई। सुबह उसने राजा के पास जाकर उन्हें सारी बात सच-सच बता दी। राजा और प्रताप दोनों साथ-साथ जंगल पहुंचे। वह कन्या प्रतीक्षा कर रही थी। उसे राजा के आने का अनुमान ही नहीं था। राजा को सामने देखकर उसने कहा, “ महाराज, कृपया आप मुझसे शादी कर अपनी रानी बनाएं।
कन्या की बात सुनकर राजा और प्रताप दोनों को ही झटका सा लगा। प्रताप ने उत्तर दिया, “ महाराज, यह कन्या रानी बनने के लिए उपयुक्त है। यदि आपकी इच्छा इससे विवाह करने की है, तो आप जरूर कर ले। मैं आपके लिए अपना प्यार छोड़ सकता हूं।” प्रताप की स्वामी भक्ति से प्रसन्न राजा ने मुड़कर उस कन्या से कहा, “ इस युवक को तुमसे प्रेम है। अपने दरबारी द्वारा चुनी गई महिला से मैं कभी भी विवाह नहीं कर सकता और वह भी प्रताप जैसे स्वामी भक्त सेवक प्रताप तुम्हारा बहुत ध्यान रखेगा। तुम उससे विवाह कर सभी राजसी ठाठ का आनंद उठाओगी।”
विवाह का मुहूर्त निकलवा कर राजा ने प्रताप और कन्या का विवाह धूमधाम से करवा दिया। दोनों सुख पूर्वक रहने लगे। कहानी खत्म कर बेताल ने प्रश्न पूछा, “महाराज बताइए, दोनों में कौन अधिक उदार था। राजा या उसका दरबारी?” राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, “ राजा और उनका दरबारी दोनों ही बराबर के उदार थे। राजा के लिए प्रताप अपने प्रेम का बलिदान देने को तैयार था, जबकि राजा ने उस प्रताप को ठुकरा दिया क्योंकि उनके दरबारी ने अपने लिए उस कन्या को चुना था। राजा चाहता तो एक शासक होने के कारण आसानी से उस कन्या से विवाह कर सकता था। राजा नैतिक मूल्यों में बहुत विश्वास करता था। एक राजा की शोभा भी इसी में है और इस कारण राजा की उदारता बड़ी है।” बेताल सही उत्तर पाकर प्रसन्न हो गया और खुद को राजा से छुड़ाकर हवा में उड़ता हुआ पेड़ पर जाकर लटक गया।