अटल बिहारी वाजपेयी (1924–2018) भारतीय राजनीति के महान नेता, उत्कृष्ट कवि और वक्ता थे। उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री पद संभाला, भारतीय जनता पार्टी के विकास में अहम भूमिका निभाई और कूटनीति, साहित्य व समाज सेवा में अद्वितीय योगदान दिया।
Atal Bihari Vajpayee: अटल बिहारी वाजपेयी (25 दिसंबर 1924 – 16 अगस्त 2018) भारतीय राजनीति के ऐसे नायक थे, जिनकी छवि केवल एक राजनीतिज्ञ तक सीमित नहीं रही बल्कि वे एक उत्कृष्ट कवि, लेखक और वक्ता भी थे। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार सेवा दी, पहला कार्यकाल मात्र 13 दिनों का (1996), दूसरा 13 महीनों का (1998–1999) और तीसरा पूर्ण कार्यकाल 1999 से 2004 तक। वाजपेयी भारत के पहले गैर-कांग्रेस प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने पूर्ण कार्यकाल निभाया। वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सह-संस्थापक और वरिष्ठ नेता थे तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सक्रिय सदस्य भी रहे। उनके व्यक्तित्व में राजनीति, साहित्य और समाजसेवा का अद्भुत मेल दिखाई देता था।
संसदीय जीवन और राजनीतिक सफर
अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय संसद के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सदस्यों में से एक थे। उन्होंने पांच दशकों से अधिक समय तक संसद में कार्य किया, दस बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए। उन्होंने लखनऊ, ग्वालियर, नई दिल्ली और बलरामपुर निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया। 2009 में स्वास्थ्य संबंधी कारणों से उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया।
वे भारतीय जनता पार्टी से पहले भारतीय जनसंघ (BJS) के संस्थापक सदस्य और 1968 से 1972 तक इसके अध्यक्ष रहे। जनसंघ ने 1977 में जनता पार्टी के गठन में योगदान दिया और चुनाव जीतने के बाद वाजपेयी को विदेश मंत्री नियुक्त किया गया। बाद में 1980 में भाजपा की स्थापना हुई और वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
वाजपेयी का जन्म ग्वालियर, मध्य प्रदेश में कन्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक शिक्षक थे। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर, ग्वालियर से और उच्च शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज ऑफ़ एक्सीलेंस) से प्राप्त की। इसके बाद वे DAV कॉलेज, कानपुर से राजनीतिक विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल करने में सफल हुए।
सामाजिक और संगठनात्मक सक्रियता
वाजपेयी ने 12 वर्ष की आयु में RSS से जुड़कर अपनी सक्रिय सामाजिक सेवा की शुरुआत की। 1944 में उन्होंने आर्य कुमार सभा के महासचिव के रूप में कार्य किया। वे बाबासाहेब आपटे से प्रभावित होकर RSS के अधिकारियों के प्रशिक्षण शिविर में शामिल हुए और 1947 में प्रचारक बने। स्वतंत्रता संग्राम और भारत विभाजन के दौरान उन्होंने कई सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भाग लिया।
प्रारंभिक राजनीतिक करियर (1947–1975)
1947 में वाजपेयी को RSS ने भारतीय जनसंघ में कार्य करने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने 1957 में लोकसभा चुनाव में भाग लिया और बलरामपुर से चुने गए। उन्होंने अपने वक्तृत्व कौशल से नेहरू सहित कई वरिष्ठ नेताओं को प्रभावित किया। 1968 में वे जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और पार्टी की नीतियों और विचारधारा को सशक्त बनाने में योगदान दिया।
जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (1975–1995)
1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू होने पर वाजपेयी गिरफ्तार हुए। 1977 में आपातकाल के समाप्त होने के बाद जनता पार्टी के गठन में वे शामिल हुए और विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। 1980 में भाजपा के गठन के बाद वे इसके पहले अध्यक्ष बने। उन्होंने पार्टी की हिंदू राष्ट्रवादी छवि को संतुलित करते हुए गांधीवादी सामाजिक मूल्यों को भी अपनाया।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में भाजपा को केवल दो सीटें मिलीं। वाजपेयी ने अपने नेतृत्व में पार्टी को फिर से सशक्त किया और 1986 में वे राज्यसभा के सदस्य चुने गए। उनके प्रयासों से भाजपा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को राष्ट्रीय मंच पर लाकर 1989 के चुनावों में 86 सीटें जीतीं।
प्रधानमंत्री पद (1996, 1998–2004)
वाजपेयी का पहला कार्यकाल 1996 में मात्र 13 दिनों का था। इसके बाद 1998 में उन्होंने NDA गठबंधन के नेतृत्व में सत्ता संभाली। इस दौरान भारत ने पोखरण-II परमाणु परीक्षण किए और पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंधों में सुधार की दिशा में कई पहल की। लाहौर शिखर सम्मेलन और दिल्ली–लाहौर बस सेवा जैसी पहलों के माध्यम से उन्होंने क्षेत्रीय शांति की दिशा में कदम उठाए।
1999 में कर्गिल युद्ध के समय वाजपेयी ने भारतीय सेना का समर्थन करते हुए पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण क्षेत्र में किए गए घुसपैठ का सामना किया। इस युद्ध में भारतीय सेना ने लगभग 70% क्षेत्र को वापस हासिल किया। युद्ध के बाद उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति पेरवेज मुशर्रफ को भारत आमंत्रित किया और आगरा शिखर सम्मेलन के माध्यम से संबंधों में सुधार का प्रयास किया।
उनका तीसरा कार्यकाल 1999–2004 था। इस दौरान IC 814 विमान अपहरण जैसी चुनौतियों का सामना किया गया। वाजपेयी ने आतंकवाद के मुद्दों पर न केवल कड़ा रुख अपनाया, बल्कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति मजबूत की।
आर्थिक और अवसंरचनात्मक सुधार
वाजपेयी की सरकार ने निजी क्षेत्र और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया, सरकारी खर्च में कटौती की, अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित किया और कुछ सरकारी उपक्रमों का निजीकरण किया। उनके कार्यकाल में भारत की आर्थिक और अवसंरचनात्मक नींव को मजबूती मिली।
साहित्य और काव्य
वाजपेयी हिंदी कवि और लेखक भी थे। उनके कविता संग्रह और लेख भारतीय जनता के बीच लोकप्रिय रहे। उनकी भाषा और शैली में सरलता, गंभीरता और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता था। उनके वक्तृत्व कौशल ने उन्हें संसद और पार्टी दोनों में सम्मान दिलाया।
सम्मान और पुरस्कार
1992 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके जन्मदिन 25 दिसंबर को 'गुड गवर्नेंस डे' के रूप में घोषित किया। 2015 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
निजी जीवन और विरासत
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने निजी जीवन में संयम, सादगी और नैतिकता का पालन किया। उन्होंने राजनीति में रहते हुए भी व्यक्तिगत विवादों से दूर रहते हुए जनता की सेवा को प्राथमिकता दी। उनके निधन के बाद भारतीय राजनीति और समाज में एक खालीपन महसूस हुआ।
अटल बिहारी वाजपेयी केवल एक प्रधानमंत्री नहीं थे, बल्कि वे भारतीय राजनीति, कूटनीति, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान देने वाले नेता थे। उनके व्यक्तित्व में संयम, दूरदर्शिता और मानवीय संवेदनाएं झलकती थीं। उन्होंने भारतीय राजनीति में एक नई सोच, नैतिक नेतृत्व और स्थिरता का उदाहरण स्थापित किया। उनकी विरासत आज भी भारत के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में जीवित है।