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बाजार ऊंचा हो या नीचा, फर्क नहीं पड़ता, जानिए SIP निवेश की असली ताकत

बाजार ऊंचा हो या नीचा, फर्क नहीं पड़ता, जानिए SIP निवेश की असली ताकत

शेयर बाजार में निवेश करने वालों के बीच अक्सर यह सवाल उठता है कि सही समय क्या है। कई लोग सोचते हैं कि अगर बाजार ऊंचाई पर है तो निवेश नहीं करना चाहिए और अगर बाजार नीचे है तो यह बेहतर मौका है। लेकिन एक हालिया अध्ययन ने इस सोच को बदलने की ओर इशारा किया है। Motilal Oswal Mutual Fund की स्टडी से पता चलता है कि SIP यानी सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान में निवेश की शुरुआत कब की गई, इसका लंबी अवधि में बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। असल फर्क इस बात से पड़ता है कि आपने कितनी देर तक निवेश में बने रहना चुना।

हर माह थोड़ा-थोड़ा निवेश करता है SIP

SIP का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें हर महीने एक तय राशि निवेश की जाती है। इससे बाजार की उतार-चढ़ाव वाली चाल का असर कम हो जाता है। कभी बाजार ऊपर होता है तो कम यूनिट्स मिलती हैं और जब नीचे होता है तो ज्यादा यूनिट्स मिलती हैं। इसे ही रुपये की औसत लागत विधि यानी Rupee Cost Averaging कहा जाता है।

2000 से 2005 का दौर, जब डॉट कॉम का असर बाजार पर था

साल 2000 में डॉट कॉम बबल का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा। इस दौरान भारतीय बाजार भी बड़े उतार-चढ़ाव से गुजरा। 24 फरवरी 2000 को निफ्टी 500 का पीई रेशियो 37.26 था जो कि एक ऊपरी स्तर था। वहीं, 21 सितंबर 2001 को यह 11.58 तक गिर गया। यानी बाजार में बड़ी गिरावट आई थी।

लेकिन आश्चर्य की बात यह रही कि जिन्होंने फरवरी 2000 को SIP शुरू किया, उन्हें 15.47 प्रतिशत का सालाना रिटर्न मिला। वहीं, सितंबर 2001 को SIP शुरू करने वालों को 15.55 प्रतिशत का सालाना रिटर्न मिला। यानी बाजार की स्थिति चाहे कुछ भी रही हो, दोनों को लगभग बराबर फायदा हुआ।

2006 से 2010, जब मंदी और रिकवरी ने बारी-बारी से असर डाला

इस अवधि में बाजार ने एक ओर बड़ी तेजी देखी और फिर अचानक मंदी का दौर आया। खासतौर पर 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने बाजार को बुरी तरह झटका दिया।

जनवरी 2008 को SIP शुरू करने वालों को 13.97 प्रतिशत का सालाना रिटर्न मिला। वहीं, अक्टूबर 2008 में जब बाजार सबसे निचले स्तर पर था, उस वक्त SIP शुरू करने वालों को 14.36 प्रतिशत का सालाना रिटर्न मिला। अंतर मामूली था, जबकि बाजार की स्थिति बिल्कुल अलग थी।

2011 से 2015, जब भारत 'Fragile Five' में शामिल हुआ

2013 में भारत उन पांच देशों में शामिल किया गया जिन्हें आर्थिक रूप से कमजोर माना गया। इससे भारतीय शेयर बाजार को झटका लगा और विदेशी निवेशकों ने पैसा निकालना शुरू कर दिया। लेकिन 2014 में आम चुनावों और नई सरकार की उम्मीदों ने फिर से बाजार को रफ्तार दी।

इस समय जो निवेशक अगस्त 2013 में SIP से जुड़े, उन्हें 14.89 प्रतिशत का रिटर्न मिला। अगस्त 2015 को SIP शुरू करने वालों को 15.26 प्रतिशत का सालाना रिटर्न हासिल हुआ। यानी दोनों ही समय पर शुरुआत करने वालों को लगभग एक जैसा लाभ मिला।

लंबे समय तक निवेश करने से मिलता है फायदा

इन तमाम उदाहरणों से यह बात साफ होती है कि SIP का असली फायदा तभी मिलता है जब निवेशक धैर्य बनाए रखे और लंबे समय तक निवेश में बना रहे। स्टडी यह भी बताती है कि शेयर बाजार के ऊपरी या निचले स्तर पर SIP शुरू करने का कोई खास असर रिटर्न पर नहीं पड़ता, अगर निवेश लंबी अवधि के लिए किया गया हो।

SIP निवेशकों के लिए सबसे सुविधाजनक तरीका

SIP की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसी एक समय पर बड़ा पैसा लगाने की जरूरत नहीं होती। हर महीने एक छोटी रकम से निवेश की शुरुआत की जा सकती है। इसके अलावा, यह निवेश को अनुशासित बनाता है और निवेशक बाजार की उतार-चढ़ाव भरी चाल से घबराकर फैसला नहीं बदलता।

बाजार के अलग-अलग दौर में समान रिटर्न की कहानी

मोटिलाल ओसवाल की रिपोर्ट में तीन अलग-अलग आर्थिक समय की तुलना की गई  डॉट कॉम क्रैश और उसकी रिकवरी, वैश्विक मंदी और फिर से उभरता बाजार, और भारत का 'Fragile Five' में शामिल होना। इन तीनों समय में, अलग-अलग परिस्थितियों के बावजूद, SIP निवेशकों को लगभग एक जैसा सालाना रिटर्न मिला।

बाजार में समय तय करने से ज्यादा जरूरी है समय देना

रिपोर्ट से एक बात और सामने आती है कि बाजार के समय को पकड़ने की कोशिश करना अक्सर बेकार होता है। कई निवेशक यह सोचकर निवेश को टालते हैं कि अभी बाजार ऊंचा है, बाद में गिरने पर पैसा लगाएंगे। लेकिन इतिहास गवाह है कि ऐसे मौके कभी तय नहीं होते। SIP निवेश की खूबी ही यह है कि वह बाजार के हर दौर में आपका साथ देता है।

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