भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल से जुलाई 2025 के बीच गंदे और क्षतिग्रस्त नोटों की संख्या 41% घटकर 5.96 अरब रह गई है। डिजिटल ट्रांजैक्शन और यूपीआई भुगतान में तेजी से नकद उपयोग कम हुआ है, जिससे अर्थव्यवस्था में नकदी पर निर्भरता घट रही है।
Digital Transactions: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने खुलासा किया है कि अप्रैल से जुलाई 2025 के बीच बाजार से कुल 5.96 अरब गंदे और क्षतिग्रस्त नोट वापस लिए गए, जबकि 2024 की इसी अवधि में यह संख्या 8.43 अरब थी। यह गिरावट करीब 41% की रही। रिपोर्ट बताती है कि डिजिटल भुगतान, खासकर यूपीआई लेन-देन में तेजी, लोगों की जागरूकता और नकद उपयोग में कमी ने नोटों की बर्बादी पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाई है। इससे स्पष्ट है कि देश की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे कैशलेस मॉडल की ओर बढ़ रही है।
डिजिटल भुगतान ने घटाई नकद पर निर्भरता
देशभर में डिजिटल ट्रांजैक्शन और यूपीआई (UPI) पेमेंट्स की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। इससे न केवल लेन-देन आसान हुआ है, बल्कि लोगों की नकदी पर निर्भरता भी घट रही है। पहले जहां लोग रोज़मर्रा के छोटे-मोटे भुगतान के लिए नकद का अधिक इस्तेमाल करते थे, वहीं अब ज्यादातर लोग डिजिटल माध्यम चुन रहे हैं।
यही कारण है कि नोटों का तेज़ी से चलन घटा है और गंदे या क्षतिग्रस्त नोटों की संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है।
नोटों की बर्बादी पर लगी रोक
अक्सर देखा गया था कि लोग नोटों पर लिख देते थे, उन्हें मोड़कर रखते थे या ग़लत तरीके से इस्तेमाल करते थे। इन कारणों से नोट जल्दी खराब हो जाते थे और रिज़र्व बैंक को हर साल बड़ी संख्या में ऐसे नोटों को बाजार से बाहर करना पड़ता था।
लेकिन अब डिजिटल भुगतान की ओर बढ़ते रुझान, लोगों की जागरूकता और केंद्रीय बैंक की सख़्ती ने इस समस्या को काफी हद तक कम कर दिया है।
चार महीने में कितने नोट हुए बंद
रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच 500 रुपये के 3.10 अरब, 200 रुपये के 85.63 करोड़, 100 रुपये के 2.27 अरब और 50 रुपये के 70 करोड़ नोट चलन से बाहर किए गए थे।
वहीं 2025 की इसी अवधि में ये आंकड़े घटकर 500 रुपये के 1.81 अरब, 200 रुपये के 56.27 करोड़, 100 रुपये के 1.07 अरब और 50 रुपये के 65 करोड़ नोट रह गए।
इन आंकड़ों से साफ है कि डिजिटल लेन-देन ने नकदी के इस्तेमाल को तेजी से कम कर दिया है।
अर्थव्यवस्था में कैशलेस रुझान मजबूत
नोटों की कम होती खपत से साफ है कि देश धीरे-धीरे कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। जहां पहले बाजार में लेन-देन का बड़ा हिस्सा नकद पर आधारित था, वहीं अब डिजिटल विकल्पों ने उसकी जगह ले ली है।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में यह रुझान और तेज़ हो सकता है और गंदे व क्षतिग्रस्त नोटों की संख्या और भी कम होगी।