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गुरु पूर्णिमा 2025: गुरु की महिमा और पावन पर्व का आध्यात्मिक महत्व

गुरु पूर्णिमा 2025: गुरु की महिमा और पावन पर्व का आध्यात्मिक महत्व

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोच्च है। गुरु वह दीप है जो अंधकार को चीर कर हमें ज्ञान का प्रकाश देता है। गुरु केवल शिक्षा नहीं देता, वह जीवन जीने की कला सिखाता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और 2025 में यह शुभ दिन 10 जुलाई को पड़ रहा है।

गुरु पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय

वर्ष 2025 में गुरु पूर्णिमा 9 जुलाई (बुधवार) को मनाई जाएगी।

  • पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 8 जुलाई 2025, रात 8:13 बजे
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 जुलाई 2025, रात 10:10 बजे
  • गुरु पूजन का शुभ समय: 9 जुलाई को प्रात: 4:30 से दोपहर 12:00 बजे तक

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?

गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन आदिगुरु महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का विभाजन कर चार भागों में प्रस्तुत किया और महाभारत सहित 18 पुराणों की रचना की। उन्होंने ब्रह्मज्ञान को जनसामान्य के लिए सुलभ बनाया। इसी कारण से उन्हें 'व्यास भगवान' कहा गया और उनके जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

गुरु का वास्तविक स्वरूप क्या है?

गुरु केवल एक व्यक्ति नहीं होता, वह चेतना है। गुरु वह शक्ति है जो अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाती है। गुरु की महिमा इतनी विशाल है कि उसका वर्णन करना भी सीमित शब्दों में असंभव है।

गुरु के भीतर छह वृत्तियां होती हैं:

  1. गणेश वृत्ति – स्थिर बुद्धि, विवेक और निर्णय क्षमता।
  2. गौरी वृत्ति – श्रद्धा और करुणा का प्रतीक।
  3. गंगा वृत्ति – स्वयं को नीचे करके शिष्य को ऊपर उठाना।
  4. गौ वृत्ति – सरलता, सहनशीलता और वात्सल्य।
  5. गगन वृत्ति – विस्तार और विशाल दृष्टिकोण।
  6. गुणग्राही वृत्ति – अच्छाई को हर जगह से ग्रहण करने की योग्यता।

गुरु के विभिन्न रूप

भारतीय दर्शन में गुरु के कई रूप माने गए हैं:

  1. परमगुरु: जैसे भगवान शिव, जो अदृश्य होते हुए भी समस्त सृष्टि का संचालन करते हैं।
  2. सदगुरु: वह गुरु जो हमारे जीवन में साक्षात उपस्थित रहता है, मार्गदर्शन करता है और हमें ईश्वर तक पहुंचाता है।
  3. जगद्गुरु: वह गुरु जिसका ज्ञान केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सार्वभौमिक होता है — जैसे श्रीकृष्ण, आदि शंकराचार्य।
  4. धर्मगुरु: जो धर्म का मार्ग सिखाते हैं, लेकिन इनमें भय और अनुशासन भी सम्मिलित होता है।
  5. कुलगुरु: जो कुल परंपरा में प्रतिष्ठित होते हैं, जैसे शुक्राचार्य या समुद्र देवता।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

  • यह दिन आत्मविश्लेषण का होता है — क्या हम अपने गुरु की कृपा के योग्य हैं?
  • इस दिन शिष्य संकल्प लेता है कि वह गुरु की सीख का पालन करेगा।
  • यह दिन उस परंपरा को नमन करने का है जो सदियों से गुरु-शिष्य संबंध को जीवित रखे हुए है।

गुरु की कृपा का रहस्य

गुरु को समझ पाना संभव नहीं। वह अबूझ हैं, अदृश्य हैं, लेकिन उनकी कृपा शिष्य के जीवन में प्रत्यक्ष होती है।
गुरु न केवल शिष्य के बाहरी जीवन को संवारते हैं, बल्कि उसकी आत्मा को भी आलोकित करते हैं।
गुरु का प्रेम, श्रद्धा और स्नेह बिना किसी अपेक्षा के होता है। वह शिष्य की गलतियों पर भी करुणा रखते हैं और उसे बार-बार नया अवसर देते हैं।

गुरु पूर्णिमा आत्मचिंतन, कृतज्ञता और अध्यात्मिक उन्नति का पर्व है। इस दिन हम अपने जीवन में गुरु के महत्व को स्वीकारते हैं और उनकी शिक्षाओं को अपनाने का संकल्प लेते हैं। गुरु ही वह दीपक हैं जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। इसलिए इस पावन दिन पर गुरु के चरणों में श्रद्धा अर्पित करना ही सच्चा पूजन है।

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