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हिरण्यकश्यप के वध के लिए भगवान विष्णु को लेने पड़े तीन रूप, जानिए पूरी कथा

हिरण्यकश्यप के वध के लिए भगवान विष्णु को लेने पड़े तीन रूप, जानिए पूरी कथा

इन दिनों 'महावतार नरसिम्हा' नाम की फिल्म ने सिनेमाघरों में जबरदस्त हलचल मचा रखी है। इस फिल्म के चलते एक बार फिर से भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की चर्चा जोरों पर है। लोग इस अवतार से जुड़ी पौराणिक कथाओं को जानने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। लेकिन बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि हिरण्यकश्यप के वध के लिए भगवान विष्णु को एक नहीं बल्कि तीन अलग-अलग अवतार लेने पड़े थे।

कौन था हिरण्यकश्यप और क्यों बना दैत्यों का राजा

हिरण्यकश्यप और उसका भाई हिरण्याक्ष असल में बैकुंठ लोक के द्वारपाल जय और विजय थे। इन दोनों का काम था कि कोई भी बिना अनुमति के भगवान विष्णु से मिलने न जा सके। एक बार ब्रह्मा जी के चार मानस पुत्र सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार भगवान विष्णु से मिलने वैकुंठ पहुंचे, लेकिन जय और विजय ने उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया। इस बात से नाराज होकर चारों ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि वे अगले तीन जन्मों तक राक्षस रूप में धरती पर जन्म लेंगे और भगवान विष्णु के हाथों मारे जाएंगे।

श्राप के कारण राक्षस कुल में जन्म लिया

श्राप के प्रभाव से जय और विजय ने पहले जन्म में हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में धरती पर जन्म लिया। इन दोनों का जन्म महर्षि कश्यप और दिति के घर हुआ था। धार्मिक मान्यता के अनुसार, दिति ने एक अनुचित समय पर महर्षि कश्यप से संतान प्राप्त करने की इच्छा जाहिर की थी और उन्हें मना करने के बाद भी अपना आग्रह नहीं छोड़ा। इसी कारण उनके गर्भ से दो राक्षसों का जन्म हुआ।

हिरण्याक्ष का अंत वराह अवतार में

हिरण्याक्ष ने समुद्र में पृथ्वी को डुबा दिया था और देवताओं को परेशान करने लगा था। तब भगवान विष्णु ने वराह रूप में अवतार लिया और समुद्र में उतरकर धरती को बाहर निकाला। इसके बाद भगवान ने हिरण्याक्ष का वध किया। यह अवतार भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माना जाता है और इसे वराह अवतार कहा जाता है।

हिरण्यकश्यप का आतंक और भक्त प्रह्लाद की कहानी

हिरण्यकश्यप ने अपने भाई की मृत्यु के बाद और भी ज्यादा अत्याचार शुरू कर दिए थे। उसने खुद को ईश्वर घोषित कर दिया और पूरे राज्य में यह फरमान जारी कर दिया कि केवल उसी की पूजा की जाएगी। जो भी उसका आदेश नहीं मानता, उसे मृत्यु दंड दिया जाता। उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था और हर परिस्थिति में भगवान विष्णु की भक्ति करता था। हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के कई प्रयास किए लेकिन हर बार प्रह्लाद बच गया।

नरसिंह अवतार में हुआ हिरण्यकश्यप का अंत

आखिरकार हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे से पूछा कि तेरा भगवान कहां है। प्रह्लाद ने जवाब दिया कि वह सर्वत्र है। तब हिरण्यकश्यप ने एक खंभे की ओर इशारा कर पूछा, क्या वह उसमें भी है। जैसे ही उसने खंभे पर वार किया, वहां से भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार प्रकट हुआ। यह अवतार आधा नर और आधा सिंह था, जो न दिन था, न रात, न जमीन थी न आसमान, और न कोई हथियार था। नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से गोदकर उसे मार डाला।

दूसरे जन्म में बने रावण और कुंभकरण

श्राप के अनुसार जय और विजय को तीन जन्मों तक राक्षस कुल में जन्म लेना था। अगले जन्म में हिरण्यकश्यप ने रावण और हिरण्याक्ष ने कुंभकरण के रूप में जन्म लिया। रावण महर्षि विश्रवा और कैकसी के पुत्र थे। इस जन्म में भी उन्होंने देवताओं को परेशान किया और भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम के हाथों मारे गए।

तीसरे जन्म में बने शिशुपाल और दंतवक्र

श्राप का तीसरा और अंतिम चरण द्वापर युग में पूरा हुआ। इस बार जय ने शिशुपाल और विजय ने दंतवक्र के रूप में जन्म लिया। शिशुपाल का जन्म चेदि नरेश के यहां हुआ था और वह भगवान श्रीकृष्ण का रिश्तेदार था। शिशुपाल ने बचपन से ही श्रीकृष्ण का विरोध किया और उन्हें अपमानित करने की कोशिश की। जब युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उसने श्रीकृष्ण को गालियां दीं, तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया।

दंतवक्र भी भगवान श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था और उसने युद्ध में उनसे टकराने की कोशिश की। अंततः उसका भी वध श्रीकृष्ण के हाथों हुआ और इस तरह श्राप की अंतिम कड़ी भी पूरी हुई।

श्राप से मुक्ति और वैकुंठ की वापसी

तीन जन्मों तक असुर रूप में भगवान विष्णु के हाथों वध होने के बाद जय और विजय को उनके श्राप से मुक्ति मिली। इसके बाद वे पुनः बैकुंठ लौट गए और अपने पूर्व स्थान पर विष्णु जी की सेवा में लग गए। इन तीन जन्मों की कथाएं यह बताती हैं कि किस तरह से भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए समय-समय पर अवतार लिया और अधर्म का अंत किया।

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