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Homebound रिव्यू: समाज को आईना दिखाती और दिल को छूती फिल्म

Homebound रिव्यू: समाज को आईना दिखाती और दिल को छूती फिल्म

फिल्म होमबाउंड (Homebound) में एक संवाद है—बदन पर वर्दी दिखती है न, तो सीने पर लिखा नाम नहीं पढ़ता कोई। एक बार हम सिपाही बन गए न, तो किसी के बाप में हिम्मत नहीं होगी हमें गालियां देने की।” यह केवल दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए बनाई गई डायलॉगबाजी नहीं है।

  • नाम: होमबाउंड
  • रेटिंग : 4/5 
  • कलाकार : ईशान खट्टर, विशाल जेठवा, जाह्नवी कपूर
  • निर्देशक : नीरज घेवन
  • रिलीज डेट : Sep 26, 2025
  • प्लेटफॉर्म : सिनेमाघर
  • भाषा : हिंदी

एंटरटेनमेंट न्यूज़: ईशान खट्टर, विशाल जेठवा और जाह्नवी कपूर (Janhvi Kapoor) स्टारर फिल्म होमबाउंड (Homebound) जल्द ही भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। फिल्म का रिव्यू सामने आया है, जो बताता है कि यह कहानी सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज को आईना दिखाती है और भावनाओं को सीधे छूती है।

होमबाउंड की कहानी

नीरज घेवन निर्देशित इस फिल्म की कहानी मापुर नामक सुदूर गांव में घटित होती है। जातिवाद और भेदभाव की त्रासदी से त्रस्त चंदन कुमार (विशाल जेठवा) और मोहम्मद शोएब (ईशान खट्टर) पुलिस भर्ती परीक्षा के लिए रेलवे स्टेशन आते हैं। वहीं उनकी मुलाकात सुधा भारती (जाह्नवी कपूर) से होती है। अंबेडकरवादी सुधा अपने समुदाय के लिए शिक्षा और गरिमा का महत्व समझती है और उन्हें आगे बढ़ाने की कोशिश करती है।

चंदन और शोएब दोनों के लिए पुलिस में भर्ती होना सम्मान और समानता पाने का अवसर है। प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल की परीक्षा में चंदन सफल हो जाता है, जबकि शोएब असफल होता है। इससे उनकी दोस्ती में दरार आ जाती है। बाद में पता चलता है कि भर्ती परीक्षा के परिणामों पर रोक लगी है। इस बीच सुधा और चंदन के बीच नजदीकियां बढ़ती हैं और कहानी में ट्विस्ट आता है।

पारिवारिक और आर्थिक मजबूरियों के कारण दोनों को कपड़ों की मिल में काम करना पड़ता है। तभी कोरोना महामारी आती है और लॉकडाउन लागू होता है। घर से दूर जीविकोपार्जन करना कठिन हो जाता है। सामाजिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक घृणा और गरीबी के भारी बोझ के बावजूद, क्या दोनों घर लौट पाएंगे? यह फिल्म का मूल प्रश्न है।

सिनेमाई प्रस्तुति और निर्देशन

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी प्रतीक शाह ने बेहद संवेदनशील और वास्तविक ढंग से पेश की है। चंदन की मां को विरासत में मिली फटी और नुकीली एड़ी, बहन को शिक्षा से वंचित रखना ताकि चंदन पढ़ाई कर सके, या शोएब से एचआर मैनेजर का अपमानजनक व्यवहार—ये दृश्य दर्शकों को झकझोर देते हैं। निर्देशक नीरज घेवन, वरूण ग्रोवर और श्रीधर दुबे के लिखे संवाद फिल्म को ठोस आधार देते हैं। संवाद सिर्फ तालियां बटोरने के लिए नहीं हैं, बल्कि पात्रों की मनःस्थिति और संघर्ष को गहराई से दर्शाते हैं।

होमबाउंड दोस्ती के मायने और समाज में समानता का संदेश देती है। घर वापसी के दौरान शोएब पर पुलिस की बर्बरता और चंदन का अपने नाम को बदलकर सामने आना, दोस्ती और निष्ठा की मिसाल पेश करता है। ईद के अवसर पर दोनों परिवारों का एक साथ बिरयानी खाना सांस्कृतिक एकता और सौहार्द का प्रतीक है।

फिल्म कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की कठिनाइयों, आर्थिक तंगी और घर वापसी में आने वाली सामाजिक व धार्मिक बाधाओं को बारीकी से दिखाती है। कई दृश्य ऐसे हैं जो सोचने पर मजबूर करते हैं और भावनाओं को गहराई से छूते हैं।

ईशान खट्टर और विशाल जेठवा ने अपने पात्रों की मनःस्थिति, संघर्ष और द्वंद्व को बेहद प्रामाणिक रूप से निभाया है। उनकी अदाकारी हर दृश्य में प्रभाव छोड़ती है। जाह्नवी कपूर ने सीमित स्क्रीन टाइम में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और पात्र में मजबूती दिखाई। सहयोगी कलाकारों ने भी फिल्म में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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