भारत में जब भी भक्ति, श्रद्धा और परंपरा की बात होती है, तो ओडिशा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ का भव्य रथ यात्रा उत्सव सबसे प्रमुख स्थान लेता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और रहस्य भी इसे अद्वितीय बनाते हैं। 2025 में यह रथ यात्रा 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई तक चलेगी। हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों को खींचने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं।
रथ यात्रा का पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में रथ यात्रा को अत्यंत शुभ और मोक्षदायक माना गया है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं या भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचते हैं, उनके सारे पाप समाप्त हो जाते हैं और उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह यात्रा भगवान के पुरी स्थित मुख्य मंदिर से शुरू होती है और लगभग तीन किलोमीटर दूर स्थित गुंडीचा मंदिर तक जाती है, जहां भगवान अपनी मौसी के घर नौ दिनों तक विश्राम करते हैं।
बैसी पहाचा: 22 सीढ़ियों का रहस्य
भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालुओं को 22 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं, जिन्हें 'बैसी पहाचा' कहा जाता है। हर सीढ़ी को आध्यात्मिक और पौराणिक दृष्टि से विशेष माना गया है, लेकिन इनमें से तीसरी सीढ़ी को लेकर एक रहस्यात्मक मान्यता जुड़ी हुई है।
तीसरी सीढ़ी पर क्यों नहीं रखा जाता पैर?
जगन्नाथ मंदिर की तीसरी सीढ़ी से जुड़ी एक अत्यंत रोचक कथा प्रचलित है। मान्यता के अनुसार, प्राचीन समय में जब भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन करके लौटते थे, तो उनके सभी पाप समाप्त हो जाते थे। यह देखकर यमराज चिंतित हो गए क्योंकि उनके यमलोक में आने वाले पापी आत्माओं की संख्या घटती जा रही थी।
यमराज ने भगवान जगन्नाथ से अपनी चिंता व्यक्त की। तब भगवान ने कहा कि मंदिर की मुख्य सीढ़ियों में से तीसरी सीढ़ी पर यमराज स्वयं विराजमान हो जाएं। इसके बाद से यह मान्यता बन गई कि यदि कोई भक्त भगवान के दर्शन के बाद तीसरी सीढ़ी पर पैर रखेगा, तो वह यमलोक को प्राप्त करेगा। इसलिए आज भी श्रद्धालु दर्शन के बाद तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखते, बल्कि उसे सम्मानपूर्वक पार करते हैं या स्पर्श करके प्रणाम करते हैं।
धार्मिक रहस्य और मान्यताएं
जगन्नाथ मंदिर और रथ यात्रा से जुड़े ऐसे अनेक रहस्य हैं जो इसे और भी अलौकिक बना देते हैं:
- ध्वजा का उल्टा लहराना: मंदिर के शिखर पर लहराने वाली ध्वजा हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराती है, जो वैज्ञानिक नियमों के विपरीत है।
- सुदर्शन चक्र का अद्भुत दृश्य: मंदिर के ऊपर स्थित सुदर्शन चक्र को आप कहीं से भी देखें, वह हमेशा आपकी ओर ही दिखाई देता है।
- मंदिर की छाया: यह भी मान्यता है कि मंदिर की ऊंचाई होने के बावजूद इसकी कोई छाया धरती पर नहीं पड़ती है।
- रसोई की विशेषता: जगन्नाथ मंदिर की रसोई में 56 प्रकार के भोग बनते हैं, जो हजारों श्रद्धालुओं के बीच बांटे जाते हैं। विशेष बात यह है कि कभी भी वहां बना भोजन कम नहीं पड़ता।
भगवान जगन्नाथ रथों की भव्यता
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए विशेष रूप से तीन विशाल रथ तैयार किए जाते हैं:
- भगवान जगन्नाथ का रथ: इसे 'नंदीघोष' कहा जाता है और इसमें 16 पहिए होते हैं।
- बलभद्र का रथ: 'तालध्वज' नामक इस रथ में 14 पहिए होते हैं।
- सुभद्रा का रथ: इसे 'दर्पदलन' कहा जाता है और इसमें 12 पहिए होते हैं।
ये रथ पूरी तरह से लकड़ी से बनाए जाते हैं और हर साल नए रथों का निर्माण किया जाता है। हजारों कारीगर और सेवक मिलकर इन रथों को तैयार करते हैं।
रथ यात्रा में भाग लेने के लाभ
जगन्नाथ रथ यात्रा को देखने और रथ को खींचने से व्यक्ति के सारे पाप कट जाते हैं। इस यात्रा में भाग लेने वालों को भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही, यह यात्रा समाज में समानता, सेवा और भक्ति का संदेश देती है, क्योंकि यहां कोई जाति, धर्म या वर्ग का भेद नहीं होता। हर कोई एक ही भाव से भगवान के रथ को खींचता है।
पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि आस्था, श्रद्धा और भक्ति का महासंगम है। इससे जुड़ी परंपराएं, रहस्य और मान्यताएं इस यात्रा को और भी विशेष बनाते हैं। विशेषकर मंदिर की तीसरी सीढ़ी से जुड़ी पौराणिक कथा यह बताती है कि भगवान की लीला कितनी गूढ़ और रहस्यमयी हो सकती है। यदि आप इस साल इस दिव्य यात्रा में शामिल हो सकें, तो यह आपके जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव हो सकता है, क्योंकि यहां हर कदम पर भक्ति की ध्वनि और हर सांस में प्रभु का नाम गूंजता है।