पितृपक्ष 2025 की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा पर हुई। इस दिन स्नान, दान और तर्पण कर पितरों को श्राद्ध अर्पित किया जाएगा। ब्राह्मणों को भोजन कराना और गरीबों को दान देना शुभ माना जाता है।
Pitru Paksha 2025: भाद्रपद मास की पूर्णिमा पर पितृपक्ष 2025 की शुरुआत हो गई है। इस बार यह दिन और भी विशेष बन रहा है क्योंकि भाद्रपद पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन स्नान, दान और व्रत करने से विशेष फल मिलता है। पितृपक्ष पर आज का दिन पितरों के प्रति श्रद्धा और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
पितृपक्ष का महत्व
पितृपक्ष में पूर्वजों की स्मृति में जल अर्पित करना, उनके लिए भोजन, वस्त्र और दान देना अनिवार्य माना जाता है। इसे करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और परिवार के सदस्यों पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। इस समय किए गए अनुष्ठान पुण्य और मंगलकारी माने जाते हैं।
भाद्रपद पूर्णिमा 2025 का संयोग
इस वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण का संयोग बन रहा है। यह संयोग पितृपक्ष की शुभता को और बढ़ा देता है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि इस दिन स्नान, दान और तर्पण से पितरों का आशीर्वाद घर पर विशेष रूप से आता है। यह तिथि पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
पितृपक्ष में अनुष्ठान के मुहूर्त
पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने के लिए मुहूर्त महत्वपूर्ण होते हैं।
- कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:54 से दोपहर 12:44 तक
- रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:44 से दोपहर 1:34 तक
- अपराह्न मुहूर्त: दोपहर 1:34 से 4:05 तक
भाद्रपद पूर्णिमा स्नान और दान का मुहूर्त सुबह 4:31 से लेकर 5:16 तक रहेगा। इसी समय पितरों के श्राद्ध की विधि भी की जाएगी। चंद्रोदय शाम 6:26 पर होगा और पूर्णिमा तिथि रात 11:38 तक रहेगी।
भाद्रपद पूर्णिमा पर पितरों का श्राद्ध करने की विधि
सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनें। मन में यह संकल्प लें कि आज का दिन पितरों के लिए समर्पित है। एक पात्र में जल लें और उसमें काले तिल, कुशा और थोड़ा दूध मिलाएं। इस जल को पितरों के नाम तर्पण करें और इसे दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित करें।
घर में सात्विक भोजन तैयार करें और इसे पितरों के स्मरण में अर्पित करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा देकर विदा करें। साथ ही अन्न, वस्त्र और मिठाई गरीबों को दान करना भी आवश्यक है।
श्राद्ध का महत्व
पूर्णिमा के दिन किए गए श्राद्ध का अर्थ है पितरों के प्रति प्रेम और सम्मान व्यक्त करना। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह अनुष्ठान परिवार के सभी सदस्यों के लिए मंगलकारी होता है।
कौन कर सकता है तर्पण?
पितृपक्ष में तर्पण करने का अधिकार सामान्यतः घर के वरिष्ठ पुरुष सदस्य को होता है। यदि वरिष्ठ पुरुष सदस्य उपलब्ध न हों तो परिवार का कोई अन्य पुरुष सदस्य, पौत्र या नाती भी तर्पण कर सकता है। वर्तमान समय में महिलाएं भी तर्पण कर सकती हैं, लेकिन पितृपक्ष के नियमों का पालन करते हुए ही अनुष्ठान करें।
पितृपक्ष के नियम और विधि
पितृपक्ष में नियमित रूप से जल अर्पित करना चाहिए। जल दक्षिण दिशा की ओर मुख करके देना चाहिए और उसमें काले तिल मिलाना अनिवार्य है। हाथ में कुश लेकर जल अर्पित करें। यदि किसी पूर्वज की देहांत तिथि पितृपक्ष के दौरान आती है तो उस दिन अन्न और वस्त्र का दान भी करें।
तर्पण का सही समय और तरीके
स्नान-दान और तर्पण का समय सुबह का सर्वोत्तम माना जाता है। इस दौरान मन में शांति और पितरों के प्रति श्रद्धा का संकल्प होना चाहिए। पात्र में जल, कुशा, तिल और दूध मिलाकर पितरों को अर्पित करने के बाद घर के सात्विक भोजन और ब्राह्मणों को भोजन कराना अनिवार्य है।