बिहार चुनाव से पहले विपक्षी INDIA गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर टकराव बढ़ गया है। JMM ने 16 सीटों पर दावा ठोका है, जबकि RJD चुप है। कांग्रेस और अन्य दलों की मांगों से असहमति गहराई है।
Jharkhand Politics: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आते ही विपक्षी इंडिया गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर असहमति खुलकर सामने आने लगी है। खासकर झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर गहराता मतभेद गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़ा कर रहा है। झामुमो ने बिहार की 16 सीटों पर दावे के साथ अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है, लेकिन राजद की ओर से अब तक कोई ठोस रुख नहीं सामने आया है। यह स्थिति न केवल गठबंधन की रणनीति को कमजोर कर रही है, बल्कि एनडीए के लिए एक राजनीतिक अवसर भी बनती दिख रही है।
JMM ने 16 सीटों पर ठोका दावा
झामुमो ने बिहार की जिन 16 सीटों पर अपना दावा ठोका है, उनमें कटोरिया, चकाई, ठाकुरगंज, कोचाधामन, रानीगंज, बनमनखी, धमदाहा, रुपौली, प्राणपुर, छातापुर, सोनवर्षा, झाझा, रामनगर, जमालपुर, तारापुर और मनिहारी शामिल हैं। ये सभी सीटें सीमावर्ती इलाके में आती हैं और झारखंड से सटे क्षेत्र में झामुमो का जनाधार भी है।
हालांकि पहले पार्टी ने संकेत दिए थे कि अगर उचित सम्मान और सीटें नहीं मिलीं, तो वह अकेले भी चुनाव लड़ने को तैयार है। लेकिन फिलहाल पार्टी ने सहयोग और तालमेल की दिशा में रुख नरम किया है और राजद के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत कर समाधान निकालने की पहल शुरू की है।
राजद की चुप्पी बनी चिंता की वजह
राष्ट्रीय जनता दल बिहार में महागठबंधन का सबसे बड़ा दल है और विधानसभा में 77 विधायकों के साथ उसकी अहम भूमिका है। लेकिन सीट बंटवारे पर अब तक पार्टी की ओर से न तो कोई बयान आया है और न ही अन्य सहयोगी दलों को कोई ठोस प्रस्ताव दिया गया है। सूत्रों के अनुसार, राजद करीब 155 से 165 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है। ऐसे में अन्य दलों को सीमित संख्या में सीटें मिल सकती हैं।
झारखंड राजद के महासचिव कैलाश यादव ने झामुमो को सार्वजनिक बयानबाजी से बचने की सलाह दी है और कहा है कि यदि पार्टी को बिहार में जनाधार है, तो वह सीधे शीर्ष नेतृत्व से बात करे। इस बयान ने गठबंधन के भीतर सहमति की कमी को और उजागर कर दिया है।
कांग्रेस और अन्य दलों की मांग से पेचीदगी
कांग्रेस ने भी बिहार में 40 से 50 सीटों की मांग रखी है। हालांकि 2020 के चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थीं, लेकिन पार्टी केवल 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी। ऐसे में राजद कांग्रेस को इस बार कम सीटें देने पर विचार कर रहा है।
इसके अलावा वाम दलों में भाकपा (माले) ने 45 से 50 सीटों की मांग की है, जबकि भाकपा और माकपा इस पर सहमत नहीं हैं। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश सहनी ने तो 60 सीटों पर दावा ठोक दिया है, जिसे अव्यवहारिक माना जा रहा है। इन सबके चलते महागठबंधन के भीतर असहमति और जटिलता बढ़ती जा रही है।
एनडीए को मिल सकता है सीधा लाभ
महागठबंधन में आपसी तालमेल की कमी का फायदा एनडीए को मिल सकता है। भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के बीच बेहतर समन्वय दिख रहा है। सीट बंटवारे को लेकर इन दलों के बीच कोई सार्वजनिक मतभेद सामने नहीं आया है।
भाजपा ने तो झामुमो पर तंज कसते हुए कहा है कि राजद और कांग्रेस उसे यूज एंड थ्रो की तरह देख रहे हैं। यह बयान महागठबंधन की एकता पर सवाल उठाने वाला है। अगर इंडिया गठबंधन समय रहते समन्वय नहीं बना पाया, तो भाजपा नीत एनडीए को इसका पूरा फायदा मिल सकता है।
झामुमो का नरम रुख
झामुमो ने स्पष्ट किया है कि वह गठबंधन धर्म निभाना चाहता है और सीट बंटवारे पर बातचीत के लिए तैयार है। हेमंत सोरेन की पार्टी अब राजद के नेता तेजस्वी यादव से औपचारिक वार्ता की योजना बना रही है ताकि स्थिति को सुलझाया जा सके।