झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में हेमंत सोरेन सरकार एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कदम उठाने की तैयारी में है। सरकार विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने की योजना बना रही है।
रांची: झारखंड में राजनीतिक तापमान एक बार फिर चढ़ा हुआ है। राज्य की हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार ने केंद्र सरकार की “विशेष गहन पुनरीक्षण” (Special Intensive Revision - SIR) प्रक्रिया के खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया है। सरकार मानसून सत्र के दौरान चार अगस्त को विधानसभा में एसआईआर के विरोध में प्रस्ताव पारित कर इसे केंद्र को भेजेगी।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस प्रक्रिया को लोकतंत्र पर सीधा हमला करार देते हुए कहा है कि यह मताधिकार का हनन है और कमजोर तबकों को मतदान से वंचित करने की साजिश है।
क्या है SIR और क्यों उठ रहा है विरोध?
एसआईआर (SIR) या विशेष गहन पुनरीक्षण, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूचियों का गहन विश्लेषण और अद्यतन किया जाता है। हालांकि, झारखंड सरकार का आरोप है कि यह अभ्यास एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे गरीब, आदिवासी और दलित समुदायों के मताधिकार को प्रणालीगत रूप से समाप्त करने की कोशिश हो रही है। महागठबंधन का कहना है कि यह अभ्यास भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा गैर-भाजपा शासित राज्यों में लोकतांत्रिक संतुलन बिगाड़ने की एक साजिश है।
महागठबंधन की बैठक में बनी रणनीति
गुरुवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई महागठबंधन की संयुक्त बैठक में यह तय किया गया कि एसआईआर के खिलाफ एकजुट होकर कदम उठाया जाएगा। इस बैठक में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), और अन्य घटक दलों के कई प्रमुख विधायक व मंत्री शामिल हुए। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि:
- 4 अगस्त को विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया जाएगा
- सभी सत्तारूढ़ विधायक उस दिन सदन में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहेंगे
- प्रस्ताव पारित होने के बाद इसे केंद्र सरकार को भेजा जाएगा
- इसे राष्ट्रीय मंच पर उठाकर जनता में जागरूकता फैलाई जाएगी
कांग्रेस और सहयोगी दलों का समर्थन
इससे पहले कांग्रेस विधायक दल की बैठक में भी एसआईआर को लेकर चर्चा हुई थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो कमलेश और वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर सहित अन्य नेताओं ने इसे संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मिले मताधिकार के खिलाफ बताया। बैठक में कहा गया कि यह प्रक्रिया चुनिंदा वर्गों को लक्षित कर उनके नाम मतदाता सूची से हटाने का प्रयास है, जिससे भाजपा को चुनावी लाभ मिले। महागठबंधन इसे जनविरोधी नीति बताते हुए व्यापक जनआंदोलन की चेतावनी दे रहा है।
जहां केंद्र सरकार इसे मतदाता सूची को अद्यतित और निष्पक्ष बनाए रखने का प्रयास बता रही है, वहीं झारखंड सरकार इसे "राजनीतिक षड्यंत्र" मान रही है। बिहार में भी इसी तरह की प्रक्रिया का विरोध किया जा चुका है और वहां की सरकार ने इसे संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध बताया था।
हेमंत सोरेन ने कहा:
'हम झारखंड की जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह प्रक्रिया कमजोर और वंचित तबकों के खिलाफ एक साजिश है, जिसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।'
प्रस्ताव के जरिए राष्ट्रीय बहस की तैयारी
मुख्यमंत्री ने सभी विधायकों को निर्देश दिया है कि वे मानसून सत्र के दौरान पूर्ण उपस्थिति सुनिश्चित करें और विपक्ष के किसी भी प्रोपेगैंडा का तथ्यों और एकता से मुकाबला करें। उन्होंने कहा कि सरकार की उपलब्धियों को भी जनता तक पहुंचाना जरूरी है ताकि विपक्ष द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम को तोड़ा जा सके। 4 अगस्त को लाया जाने वाला प्रस्ताव सिर्फ राज्य विधानसभा तक सीमित नहीं रहेगा।
इसे केंद्र सरकार को भेजकर इस मुद्दे को राष्ट्रीय विमर्श में लाने की कोशिश की जाएगी। झारखंड सरकार चाहती है कि देश के अन्य गैर-भाजपा शासित राज्य भी इस प्रस्ताव का समर्थन करें और संविधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हों।
बैठक में शामिल प्रमुख नेता
इस महत्वपूर्ण बैठक में कई बड़े नेता शामिल रहे:
- हेमंत सोरेन (मुख्यमंत्री)
- केशव महतो कमलेश (प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष)
- डॉ. सीरीबेला प्रसाद (प्रदेश सह प्रभारी)
- वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर
- कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की
विधायक अनूप सिंह, हेमलाल मुर्मू, सुरेश पासवान, संजय प्रसाद यादव, मथुरा प्रसाद महतो, सविता महतो, निशत आलम, निरल पूर्ति, मंगल कालिंदी सहित कई अन्य
यह उपस्थिति महागठबंधन की एकजुटता और तैयारी को दर्शाती है, जो इस प्रस्ताव को लेकर पूरी तरह गंभीर है।