जम्मू-कश्मीर में सरकारी स्कूलों में वंदे मातरम अनिवार्य किया गया। मुस्लिम धर्मगुरुओं ने विरोध जताते हुए कहा कि कुछ बोल इस्लाम के खिलाफ हैं। प्रशासन का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति बढ़ाने के लिए लिया गया।
Jammu-Kashmir: जम्मू-कश्मीर में सरकारी स्कूलों में वंदे मातरम को अनिवार्य करने के फैसले को लेकर विवाद तेज हो गया है। केंद्र शासित प्रदेश की सरकार ने निर्णय लिया है कि सात नवंबर 2025 से सात नवंबर 2026 तक स्कूलों में वंदे मातरम का पाठ अनिवार्य होगा और विभिन्न संगीत एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस पहल का मकसद छात्रों और युवाओं में देशभक्ति और राष्ट्रीय गौरव की भावना को मजबूत करना बताया गया है।
हालांकि, इस निर्णय पर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि वंदे मातरम के कुछ बोल इस्लाम की मान्यताओं के खिलाफ हैं और इसे मुस्लिम छात्रों पर अनिवार्य करना उनके धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप है।
मुस्लिम धर्मगुरुओं ने जताई आपत्ति
मुत्तहिदा मजलिस ए उलेमा की अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर में हुई बैठक में इस्लामिक धर्मगुरुओं ने वंदे मातरम के अनिवार्य पाठ पर आपत्ति जताई। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने कहा कि इस्लाम हर मुस्लिम को अपने वतन से प्रेम करना और समाज की सेवा करना सिखाता है, लेकिन उसे ऐसी गतिविधियों से दूर रहना चाहिए जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हों।
धर्मगुरुओं का कहना है कि वंदे मातरम के कुछ बोल इस्लाम के खिलाफ हैं। इसलिए इसे मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य करना उचित नहीं है और यह उनके धार्मिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप माना जाएगा। उन्होंने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उपराज्यपाल मनोज सिन्हों से आग्रह किया कि इस फैसले में तत्काल हस्तक्षेप किया जाए और इसे रद्द कराया जाए।

राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ
वंदे मातरम का यह कदम राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ पर उठाया गया है। केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन का मानना है कि इससे युवाओं में देशभक्ति की भावना को प्रोत्साहन मिलेगा। इसके तहत सात नवंबर 2025 से सात नवंबर 2026 तक संगीत, सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि यह निर्णय सभी छात्रों को एकजुट करने और देशभक्ति की भावना जागृत करने के उद्देश्य से लिया गया है। हालांकि, विवादित इलाके और धार्मिक बहुलता वाले क्षेत्रों में इस फैसले को लेकर विरोध की संभावना बनी हुई है।
मुस्लिम संगठनों का तर्क
मुत्तहिदा मजलिस ए उलेमा ने इस फैसले को विवादास्पद बताते हुए कहा कि यह कदम एक दल विशेष के एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास प्रतीत होता है। उनके अनुसार, वंदे मातरम के कुछ बोल इस्लाम के सिद्धांतों के विपरीत हैं और इसे मुस्लिम छात्रों पर अनिवार्य कराना उनके धार्मिक अधिकारों में अनावश्यक हस्तक्षेप है।
धर्मगुरुओं का मानना है कि मुस्लिम छात्रों को देशभक्ति और राष्ट्रीय गौरव सिखाया जा सकता है, लेकिन ऐसा तरीका अपनाया जाना चाहिए जो उनकी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ न हो।












