दक्षिण भारतीय फिल्मों के रीमेक की फेहरिस्त में अब कालीधर लापता का नाम भी जुड़ गया है। यह फिल्म साल 2019 में रिलीज हुई तमिल फिल्म के.डी का रीमेक है। खास बात यह है कि मूल फिल्म की लेखिका और निर्देशक मधुमिता ने ही इस रीमेक का भी निर्देशन किया है।
- नाम: कालीधर लापता (Kaalidhar Laapata)
- रेटिंग : 3/5
- कलाकार : अभिषेक बच्चन, मुहम्मद जीशान अयूब, दैविक बाघेला, निम्रत कौर
- निर्देशक : मधुमिता
- रिलीज डेट : Jul 04, 2025
- प्लेटफॉर्म : ZEE5 (जी 5)
- भाषा : हिंदी
- बजट : N/A
Kaalidhar Laapata Review: ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर रिलीज़ हुई कालीधर लापता एक ऐसी फिल्म है, जो सामाजिक सच्चाई के साथ भावनाओं का संगम दिखाने की कोशिश करती है। अभिषेक बच्चन ने इस फिल्म में अपने अब तक के करियर का शायद सबसे चुनौतीपूर्ण किरदार निभाया है। मधुमिता के निर्देशन में बनी यह फिल्म 2019 की तमिल फिल्म के.डी का हिंदी रीमेक है।
जहां मूल फिल्म में 80 वर्षीय बुजुर्ग की कहानी थी, वहीं हिंदी संस्करण में इसे उत्तर भारत के परिवेश और संस्कृति में ढाला गया है। फिल्म में कालीधर (अभिषेक बच्चन) नाम का एक व्यक्ति है, जिसे हेलुसिनेशन (भ्रम) की समस्या है। वह अपनी जायदाद और पुश्तैनी घर को किसी कीमत पर बेचना नहीं चाहता, जबकि उसके दोनों छोटे भाई मनोहर (विश्वनाथ चटर्जी) और सुंदर (प्रियंक तिवारी) कर्ज में डूबे हुए हैं और उसे मेले में छोड़कर उसकी गुमशुदगी दर्ज करवा देते हैं ताकि संपत्ति बेच सकें।
कालीधर और बल्लू की दोस्ती बनती है कहानी की आत्मा
कालीधर को उसके भाइयों द्वारा अकेला छोड़े जाने के बाद कहानी एक नया मोड़ लेती है। वह रास्ता भटककर एक अनजान गांव पहुंचता है, जहां उसकी मुलाकात 8 साल के अनाथ बालक बल्लू (दैविक बाघेला) से होती है। पहली झिझक और झगड़े के बाद दोनों में गहरा रिश्ता बनता है। बल्लू, कालीधर की अधूरी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करता है और दोनों के बीच जो दोस्ती पनपती है, वह फिल्म का सबसे सशक्त पहलू है।
बल्लू के रूप में बाल कलाकार दैविक बाघेला कमाल करते हैं। उनका अभिनय इतना सहज है कि वह कई बार कहानी को अभिषेक बच्चन से भी ज्यादा असरदार बना देते हैं।
हिंदी रीमेक में ये रही कमजोरियां
हालांकि, रीमेक करते समय कुछ कड़ियां कमजोर रह गईं। उदाहरण के लिए, फिल्म में दिखाया गया कि कालीधर को हेलुसिनेशन की बीमारी है, लेकिन कई दृश्यों में लेखक जैसे इस बीमारी को भूल ही जाते हैं। खासकर जब कालीधर अपनी पुरानी प्रेमिका से मिलने जाता है, तो उसका व्यवहार पूरी तरह सामान्य लगता है, जबकि बीमारी के कारण कुछ गड़बड़ी दिखनी चाहिए थी।
इसके अलावा कुछ सीन जबरदस्ती ठूंसे हुए लगते हैं, जैसे भंडारे में खाने की जांच करने आए अधिकारी का सीन, या कालीधर के बिरयानी खाने का ओवरड्रामेटिक अंदाज। यह सब कहानी की गति और गंभीरता को थोड़ा कमजोर कर देते हैं।
अभिषेक बच्चन का मेहनती अभिनय, लेकिन...
अभिषेक बच्चन ने हाल के वर्षों में लगातार नए और चुनौतीपूर्ण रोल चुने हैं। कालीधर के रूप में उन्होंने एक परेशान, भ्रमित और दुखी इंसान की छवि को बखूबी उभारा है। उनके चेहरे के हावभाव, संवाद अदायगी और चाल-ढाल में किरदार की तकलीफ नजर आती है। लेकिन कहानी का ढीला स्क्रीनप्ले कभी-कभी उनकी मेहनत को पूरी तरह असरदार नहीं होने देता। फिर भी, अभिषेक की ईमानदारी झलकती है और वह दर्शकों से सहानुभूति पाने में सफल रहते हैं।
सह कलाकारों ने निभाई जिम्मेदारी
सुबोध के रोल में मुहम्मद जीशान अयूब अपनी भूमिका में पूरी ईमानदारी दिखाते हैं। वहीं, मेहमान भूमिका में निम्रत कौर को ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं मिला, लेकिन जितना भी रोल था, उसमें वह असर छोड़ती हैं। फिल्म का संगीत अमित त्रिवेदी ने दिया है, जो कहानी के साथ घुलता-मिलता लगता है। खासकर दिल बंजारा... गीत दिल को छू जाता है। गीत सागर के लिखे शब्द भी भावनाओं को गहराई देते हैं। सिनेमेटोग्राफर गैरिक सरकार ने उत्तर भारतीय गांव की सादगी और खूबसूरती को बखूबी कैमरे में कैद किया है, जो फिल्म का एक मजबूत पक्ष बन जाता है।
भावनाओं का सरल संदेश, लेकिन अधूरा
कालीधर लापता का मूल संदेश सादगी और रिश्तों की अहमियत को दर्शाता है। यह दिखाती है कि किस तरह पैसा और संपत्ति के लालच में अपने ही रिश्तेदार एक इंसान को किस हद तक गिरा सकते हैं, और कैसे एक मासूम बच्चा जीवन को फिर से उम्मीद दे सकता है। मगर पटकथा की कुछ लापरवाहियां और कमजोर संपादन के कारण फिल्म पूरी तरह परफेक्ट नहीं बन पाती। कई बार कहानी बिखरी-बिखरी सी लगती है, जिससे इसका प्रभाव कम होता है।
अगर आप अभिषेक बच्चन का एक अलग रूप देखना चाहते हैं और भावनात्मक कहानी पसंद करते हैं तो कालीधर लापता एक बार जरूर देख सकते हैं। फिल्म में कमियां हैं, पर बल्लू और कालीधर की दोस्ती दिल को छूती है और यही इसे देखने लायक बनाती है।