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₹1 लाख करोड़ का समुद्री निर्यात लक्ष्य फेल! जानिए क्यों नहीं पहुंच सका भारत

₹1 लाख करोड़ का समुद्री निर्यात लक्ष्य फेल! जानिए क्यों नहीं पहुंच सका भारत

भारत सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2025 के लिए तय किया गया एक लाख करोड़ रुपये का समुद्री निर्यात लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। इस लक्ष्य से चूकने के पीछे प्रमुख कारण वैश्विक स्तर पर आई आर्थिक मंदी और अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों की कड़ी चुनौतियाँ रहीं, जिनसे भारतीय निर्यातकों को जूझना पड़ा। 

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत केंद्र सरकार ने साल 2024-25 तक समुद्री उत्पादों के निर्यात को एक लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह उद्देश्य हासिल नहीं हो सका। हालिया आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 में समुद्री उत्पादों का निर्यात केवल 62,625.09 करोड़ रुपये रहा, जो निर्धारित लक्ष्य से करीब 37,374 करोड़ रुपये कम है।

2018-19 से दोगुना करने की थी योजना

जब 2018-19 में भारत का समुद्री निर्यात 46,613 करोड़ रुपये के आसपास था, तब सरकार ने इसे दोगुना करने का लक्ष्य तय किया था। इसके लिए PMMSY को लॉन्च किया गया और कई तरह की योजनाएं बनाई गईं। लेकिन जमीन पर इन योजनाओं के क्रियान्वयन में आई रुकावटों ने निर्यात की रफ्तार को धीमा कर दिया।

दुनिया भर की मांग में गिरावट

एक्सपर्ट्स के अनुसार, वैश्विक आर्थिक सुस्ती और प्रमुख आयातक देशों में महंगाई के चलते समुद्री उत्पादों की मांग में गिरावट देखी गई। अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे बड़े ग्राहक देशों में उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति घटी, जिससे भारत से होने वाले निर्यात पर असर पड़ा।

ढांचागत कमी बनी बड़ी चुनौती

निर्यात को प्रभावित करने वाले कारणों में ढांचागत सुविधाओं की कमी भी अहम रही। तटीय राज्यों में प्रोसेसिंग यूनिट, बंदरगाह सुविधाएं और कोल्ड स्टोरेज जैसे जरूरी ढांचे पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा कंटेनरों की कमी और माल ढुलाई की बढ़ी हुई लागत ने भी प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचाया।

नीतिगत समस्याएं भी रहीं आड़े

जलीय कृषि क्षेत्र में वित्तीय सहायता को लेकर भी चुनौतियां बनी रहीं। एक्वाकनेक्ट के संस्थापक राजामनोहर सोमसुंदरम ने बताया कि किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) जैसी योजनाएं पारंपरिक खेती के लिए तो ठीक हैं, लेकिन जलीय कृषि में निवेश के लिए इनकी सीमा पर्याप्त नहीं है। इससे इस क्षेत्र में नई परियोजनाओं को गति नहीं मिल पाई।

बाजार विस्तार की जरूरत पर जोर

सोमसुंदरम ने सुझाव दिया है कि भारत को नए निर्यात बाजारों पर ध्यान देना चाहिए, जैसे कि मध्य पूर्व और दक्षिण कोरिया जैसे देश जहां अभी पूरी तरह से अवसरों का दोहन नहीं हुआ है। इसके अलावा उच्च मूल्य वाली मछली प्रजातियों पर भी ध्यान केंद्रित करना जरूरी है, ताकि निर्यात की गुणवत्ता और कीमत दोनों बेहतर हो सकें।

अमेरिका की नई नीति से बढ़ी चिंता

एक नई चुनौती के तौर पर अमेरिका द्वारा संभावित टैरिफ बढ़ोतरी की खबरें सामने आई हैं। अगर 9 जुलाई के बाद अमेरिका जवाबी शुल्क लगाता है, तो इससे भारतीय समुद्री उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी और अमेरिकी उपभोक्ताओं का रुझान कम हो सकता है। इससे भारत के इस सेक्टर को गहरा झटका लग सकता है।

PMMSY को मिला भारी बजट समर्थन

सरकार ने वित्त वर्ष 2025 के बजट में PMMSY योजना के लिए 2,352 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। यह मत्स्य पालन मंत्रालय के कुल बजट का 89.8 फीसदी हिस्सा है। यानी केंद्र ने इस योजना को प्रमुख प्राथमिकता दी है, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए हैं।

MPEDA और मंत्रालय की चुप्पी

निर्यात में आई गिरावट और योजनाओं के आंशिक क्रियान्वयन को लेकर जब मीडिया ने समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA) और मत्स्य पालन मंत्रालय से संपर्क किया, तो कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया। यह भी चिंता का विषय बना हुआ है कि सरकार इस नाकामी पर किस तरह की समीक्षा कर रही है।

बाजार में अस्थिरता से जूझ रहे निर्यातक

निर्यात से जुड़े व्यापारी और कंपनियां लगातार बाजार में अस्थिरता और नीतिगत अस्पष्टता से जूझ रही हैं। वैश्विक आर्थिक हालात और घरेलू स्तर पर ढांचागत सीमाएं दोनों ने मिलकर समुद्री निर्यात को पिछाड़ दिया है।

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