2008 मालेगांव ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया। पीड़ित परिवारों की अपील पर कोर्ट ने NIA और सात बरी आरोपियों को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा।
Malegaon Blast Case: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2008 के मालेगांव विस्फोट से जुड़े एक अहम मामले में बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने पीड़ित परिवारों की उस अपील को स्वीकार कर लिया है जिसमें साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सात आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
हाईकोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और सभी बरी किए गए आरोपियों को नोटिस जारी किया है। अदालत ने उन्हें छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इसके बाद मामले की सुनवाई होगी।
क्या कहा गया अपील में
पीड़ित परिवारों की ओर से दायर अपील में कहा गया कि विशेष एनआईए अदालत द्वारा दिया गया 31 जुलाई का फैसला कानूनी रूप से सही नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि जांच में खामियां होना या कुछ सबूतों की कमी होना आरोपियों को बरी करने का आधार नहीं हो सकता।
अपील में यह भी कहा गया कि विस्फोट की साजिश गुप्त रूप से रची गई थी, इसलिए इसके प्रत्यक्ष सबूत न मिलना स्वाभाविक है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी निर्दोष हैं।
याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलील
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 31 जुलाई को विशेष अदालत ने सात आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया, लेकिन यह आदेश तथ्यात्मक और कानूनी दोनों स्तरों पर गलत है। उन्होंने मांग की है कि अदालत इस आदेश को रद्द करे और केस की पुनः सुनवाई सुनिश्चित करे।
कब हुआ था मालेगांव ब्लास्ट
मालेगांव ब्लास्ट की घटना 29 सितंबर 2008 की है। महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में, जो मुंबई से करीब 200 किलोमीटर दूर है, एक मस्जिद के पास खड़ी मोटरसाइकिल में बम विस्फोट हुआ था।
इस धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हुए थे। घटना के बाद पूरे इलाके में दहशत फैल गई थी और देशभर में इस मामले ने राजनीतिक और कानूनी बहस को जन्म दिया था।
केस की अब तक की स्थिति
शुरुआत में इस मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस (ATS) ने की थी, लेकिन बाद में इसे एनआईए (NIA) को सौंप दिया गया। एनआईए ने 2011 में चार्जशीट दायर की थी और कई लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित भी शामिल थे।
हालांकि, लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद 31 जुलाई 2024 को विशेष एनआईए अदालत ने सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इस फैसले का पीड़ित परिवारों ने विरोध किया और अब बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की है।