प्रधानमंत्री मोदी ने नवरात्रि के पहले दिन त्रिपुरा के उदयपुर में पुनर्निर्मित माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का उद्घाटन किया। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है और महाराजा धन्य माणिक्य ने 1501 ईस्वी में बनवाया था। यहां देवी की दो प्रतिमाएं हैं और कछुए के आकार की पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर धार्मिक और पर्यटन दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
Tripura Sundari Temple: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवरात्रि के पहले दिन त्रिपुरा के उदयपुर में 51 शक्ति पीठों में से एक, माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का उद्घाटन किया। यह मंदिर महाराजा धन्य माणिक्य ने 1501 ईस्वी में बनवाया था। गर्भगृह में मां त्रिपुरा सुंदरी और मां चंडी की प्रतिमाएं हैं, मंदिर कछुए के आकार की पहाड़ी पर स्थित है और धार्मिक, सांस्कृतिक एवं पर्यटन केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण है।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
माना जाता है कि इसी स्थान पर देवी सती का दाहिना चरण गिरा था, जब भगवान शिव तांडव कर रहे थे। मंदिर का निर्माण 1501 ईस्वी में महाराजा धन्य माणिक्य ने करवाया था। बताया जाता है कि महाराजा को स्वप्न में देवी त्रिपुरेश्वरी ने उदयपुर नगर के पास पहाड़ी पर पूजा आरंभ करने के लिए कहा। बार-बार स्वप्न आने के बाद उन्होंने माता की प्रतिमा स्थापित की और मंदिर का निर्माण करवाया।
मंदिर वैष्णव और शाक्त परंपराओं का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। यहां भगवान विष्णु की पूजा शालग्राम शिला के रूप में होती है। किसी शक्ति पीठ या काली मंदिर में देवी के साथ विष्णु की पूजा का यह दुर्लभ उदाहरण है। यह मंदिर शिव और शक्ति के अद्वितीय संगम का प्रतीक भी माना जाता है।
मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएँ
मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है और बंगाली ‘एक-रत्न’ शैली में निर्मित है। यह पहाड़ी कछुए (कूर्म) के आकार की प्रतीत होती है, इसलिए इसे ‘कूर्म पीठ’ कहा जाता है। गर्भगृह में देवी की दो काले पत्थर की प्रतिमाएं स्थापित हैं। बड़ी प्रतिमा मां त्रिपुरा सुंदरी की है, जिसकी ऊंचाई 5 फीट है। छोटी प्रतिमा मां चंडी की है, जिसे प्रेमपूर्वक ‘छोटो-मा’ कहा जाता है। कहा जाता है कि त्रिपुरा के राजा युद्ध या शिकार के समय इस छोटी प्रतिमा को साथ रखते थे।
मंदिर में देवी के चरणों के नीचे पत्थर पर अंकित श्री यंत्र है, जो पूरे ब्रह्मांड और स्त्री-पुरुष ऊर्जा के दिव्य मिलन का प्रतीक है। यह दर्शन या पूजा करने को अनेक पुण्य कर्मों के समान फलदायी माना जाता है।
पूजा और प्रसाद
मंदिर में देवी शक्ति की पूजा मां त्रिपुरा सुंदरी के रूप में और भैरव की पूजा त्रिपुरेश के रूप में होती है। लोक मान्यता के अनुसार देवी को लाल गुड़हल का फूल चढ़ाना अत्यंत शुभ होता है। मंदिर में प्रमुख प्रसाद पेड़ा है। हर साल दीपावली मेले के अवसर पर देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। यह दो दिवसीय मेला त्रिपुरा की बहु-सांस्कृतिक छवि को दर्शाता है।
मंदिर परिसर का विकास
मंदिर परिसर का नवीनीकरण और विकास पीआरएएसएडी (PRASAD) योजना के तहत किया जा रहा है। इसमें संगमरमर की फर्श, नए रास्ते, प्रवेश द्वार, बाड़, उचित जल निकासी, तीन मंजिला परिसर, पेड़ा स्टॉल, ध्यान कक्ष, अतिथि आवास, कार्यालय कक्ष और पेयजल कियोस्क शामिल हैं। यह परियोजना केवल मंदिर तक सीमित नहीं है, बल्कि उदयपुर को धार्मिक पर्यटन केंद्र बनाने की दिशा में भी कदम है।
पर्यटन और रोजगार को बढ़ावा
वर्तमान में प्रतिदिन लगभग 3000–3500 श्रद्धालु और पर्यटक मंदिर में आते हैं। परियोजना के पूरा होने के बाद यह संख्या बढ़कर 5000–7000 तक पहुंचने की उम्मीद है। इससे स्थानीय समुदायों, होटलों, गाइड्स, टैक्सी मालिकों और अन्य हितधारकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा।
मंदिर परिसर विकास परियोजना की कुल लागत 54.04 करोड़ रुपये है। इसमें 34.43 करोड़ रुपये केंद्र सरकार और 17.61 करोड़ रुपये राज्य योजना से दिए गए हैं। परियोजना में स्थानीय लोगों के लिए दुकानें, फूड कोर्ट, शौचालय ब्लॉक, नई टेरेस फ्लोर, पुजारियों/स्वयंसेवकों/प्रबंधकों के लिए आवासीय क्षेत्र, श्रद्धालुओं के लिए प्रतीक्षा कक्ष और माताबाड़ी गैलरी बनाई जा रही है।
कछुए की पूजा और धार्मिक महत्व
माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर की पूरी संरचना ऊपर से देखने पर कछुए जैसी प्रतीत होती है। कछुआ मंदिर में पवित्र पशु के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।