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नीलांबुर उपचुनाव 2025: TMC की एंट्री से बढ़ी हलचल, ममता बनर्जी ने कांग्रेस-लेफ्ट को दी खुली चुनौती

नीलांबुर उपचुनाव 2025: TMC की एंट्री से बढ़ी हलचल, ममता बनर्जी ने कांग्रेस-लेफ्ट को दी खुली चुनौती

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने केरल की राजनीति में बड़ा कदम उठाते हुए नीलांबुर उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है। यह विधानसभा सीट वायनाड लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है।

कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने एक बार फिर अपने राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन करते हुए दक्षिण भारत की राजनीति में अहम प्रवेश की कोशिश की है। केरल के मलप्पुरम जिले की नीलांबुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने पीवी अनवर को उम्मीदवार घोषित किया है। यह फैसला केवल एक उपचुनाव की घोषणा नहीं है, बल्कि इसके जरिए ममता ने कांग्रेस और लेफ्ट दोनों को एक तीखा राजनीतिक संदेश दिया है।

वायनाड से ममता का जवाबी हमला

नीलांबुर विधानसभा सीट वायनाड लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जहां से हाल ही में प्रियंका गांधी वाड्रा ने संसद में प्रवेश किया है। ऐसे में टीएमसी का यहां चुनाव लड़ना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। ममता बनर्जी ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी अब केवल बंगाल तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के पारंपरिक गढ़ों में भी चुनौती पेश करेगी।

पीवी अनवर का टीएमसी में आना

58 वर्षीय पीवी अनवर का लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) से इस्तीफा और टीएमसी में शामिल होना नीलांबुर उपचुनाव को बेहद रोचक बना देता है। अनवर एक प्रभावशाली नेता रहे हैं और इस क्षेत्र में उनकी मजबूत पकड़ है। वे पहले भी नीलांबुर से विधायक रह चुके हैं और स्थानीय स्तर पर काफी लोकप्रिय हैं। अनवर का कांग्रेस, IUML और लेफ्ट के साथ जुड़ाव रहा है, लेकिन अब उन्होंने ममता बनर्जी का हाथ थामा है।

टीएमसी ने न केवल उन्हें उम्मीदवार बनाया, बल्कि उन्हें पार्टी का केरल संयोजक भी नियुक्त किया है। यह संकेत है कि ममता बनर्जी उन्हें राज्य में पार्टी विस्तार की ज़िम्मेदारी सौंप चुकी हैं।

लेफ्ट और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती

अनवर की टीएमसी में एंट्री से कांग्रेस और लेफ्ट दोनों के सामने असहज स्थिति बन गई है। लेफ्ट के लिए यह झटका इसलिए बड़ा है क्योंकि अनवर एक समय पर उनके भरोसेमंद नेता थे और उन्होंने नीलांबुर को लेफ्ट का गढ़ बनाने में योगदान दिया था। अब जब वे विरोधी खेमें में शामिल हो चुके हैं, तो एलडीएफ को यहां अपनी पकड़ बनाए रखने में कठिनाई हो सकती है।

वहीं कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है क्योंकि यह प्रियंका गांधी वाड्रा के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। ममता बनर्जी का यहां उम्मीदवार उतारना कांग्रेस नेतृत्व को सीधी चुनौती देने जैसा है।

धार्मिक और सामाजिक समीकरण भी अहम

नीलांबुर एक मिश्रित जनसंख्या वाला क्षेत्र है। यहां मुस्लिम, हिंदू और ईसाई समुदायों की संख्या लगभग समान है। अनवर की छवि एक धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक रूप से सक्रिय नेता की है। वे लंबे समय से सांप्रदायिक सौहार्द की बात करते आए हैं, जिससे उन्हें सभी वर्गों का समर्थन मिलता रहा है। उनकी यह छवि टीएमसी के लिए फायदेमंद हो सकती है क्योंकि पार्टी को यहां स्थानीय समर्थन की आवश्यकता है। अनवर यदि विभिन्न समुदायों के बीच संतुलन साधने में सफल होते हैं तो टीएमसी को पहली बार केरल में विधानसभा की सीट मिल सकती है।

पश्चिम बंगाल में मजबूत जनाधार रखने वाली तृणमूल कांग्रेस अब लगातार अन्य राज्यों में विस्तार की कोशिश कर रही है। गोवा, त्रिपुरा, असम के बाद अब केरल जैसे राज्य पर नजर है, जहां मुस्लिम और ईसाई समुदायों की संख्या अधिक है और जहां ममता की धर्मनिरपेक्ष राजनीति को संभावनाएं दिखाई देती हैं।टीएमसी की यह रणनीति भारतीय राजनीति के बदलते परिदृश्य का संकेत देती है, जहां क्षेत्रीय दल अब अपने राज्य से बाहर भी अपने पंख फैला रहे हैं।

 

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