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Chhath Sandhya Arghya 2025: आज छठ महापर्व का तीसरा दिन, जानें सूर्य देव को संध्या अर्घ्य देने का सही तरीका

Chhath Sandhya Arghya 2025: आज छठ महापर्व का तीसरा दिन, जानें सूर्य देव को संध्या अर्घ्य देने का सही तरीका

छठ महापर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है, जब व्रती डूबते सूर्य को जल अर्पित कर सुख-समृद्धि और संतान की लंबी आयु की कामना करते हैं। इस अर्घ्य के लिए घाटों पर विशेष पूजा की जाती है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देना कृतज्ञता और संतुलन का प्रतीक माना जाता है।

Chhath Sandhya Arghya: आज छठ महापर्व का तीसरा और सबसे पवित्र दिन है, जब व्रती 36 घंटे के निर्जला उपवास के बाद डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। शाम 4:50 से 5:41 बजे के बीच दिए जाने वाले इस संध्या अर्घ्य में व्रती सूर्य देव और छठी मैया से परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु की प्रार्थना करेंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह अर्घ्य सूर्य की पत्नी प्रत्यूषा को समर्पित होता है और जीवन में संतुलन, संयम और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है।

छठ पूजा का तीसरा दिन

छठ महापर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है, जो इस पर्व का सबसे प्रमुख दिन माना जाता है। आज व्रती 36 घंटे के निर्जला उपवास के बाद अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे। इस अर्घ्य के दौरान व्रती सूर्य देव और छठी मैया से अपने परिवार, संतान और समाज की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। परंपरा के अनुसार, छठ व्रत मुख्य रूप से संतान की दीर्घायु और परिवार की खुशहाली के लिए किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार, छठ पूजा में सूर्य की उपासना से शरीर, मन और आत्मा तीनों शुद्ध होते हैं। सूर्य देव को अर्घ्य देने का उद्देश्य प्रकृति और उसके तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करना है। यही कारण है कि इस दिन व्रती संध्या समय घाटों पर एकत्र होते हैं और डूबते सूर्य को जल अर्पित करते हैं।

क्यों दिया जाता है डूबते सूर्य को अर्घ्य

छठ महापर्व में संध्या अर्घ्य का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, डूबते सूर्य को अर्घ्य देना संतुलन और विनम्रता का प्रतीक माना जाता है। सूर्य के दिन भर के कर्म के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए यह अर्घ्य दिया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया सूर्य देव की बहन हैं। संध्या अर्घ्य सूर्य की पत्नी प्रत्यूषा को समर्पित होता है, जो सूर्य की अंतिम किरण का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह अर्घ्य जीवन में हर उतार-चढ़ाव को स्वीकार करने और कृतज्ञता जताने की भावना का प्रतीक है। इसलिए व्रती पहले डूबते सूर्य और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न करते हैं।

छठ पूजा में अर्घ्य का समय और विधि

इस वर्ष छठ पूजा का संध्या अर्घ्य शाम 4:50 बजे से 5:41 बजे के बीच दिया जाएगा। इस समय व्रती घाटों पर पहुंचकर सूर्य देव की आराधना करेंगे। अर्घ्य देने से पहले व्रती घाट पर स्नान करते हैं और पूजा की टोकरी तैयार करते हैं, जिसमें ठेकुआ, केला, ईख, नारियल, फल और दीपक रखा जाता है।

व्रतियों का यह निर्जला उपवास खरना के दिन शुरू होता है, जब वे प्रसाद ग्रहण कर अगला 36 घंटे बिना अन्न और जल के रहते हैं। संध्या अर्घ्य के बाद ही अगले दिन उषा अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।

सूर्य को अर्घ्य देने के नियम

  • तांबे के लोटे का उपयोग करें: परंपरा के अनुसार, सूर्य देव को अर्घ्य देते समय तांबे के बर्तन का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • पूर्व दिशा की ओर मुख रखें: संध्या अर्घ्य देते समय व्रती का मुख हमेशा पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
  • जल में सुगंधित पदार्थ मिलाएं: अर्घ्य के जल में लाल चंदन, सिंदूर और लाल फूल डालना शुभ माना जाता है।
  • सूर्य मंत्र का जाप करें: अर्घ्य देते समय ॐ सूर्याय नमः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
  • तीन बार परिक्रमा करें: अर्घ्य के बाद सूर्य देव की ओर मुख करके तीन बार परिक्रमा करने की परंपरा है।
  • जल का सही विसर्जन करें: अर्घ्य का जल पैरों में नहीं गिरना चाहिए। इसे किसी गमले या मिट्टी में विसर्जित करना चाहिए।

इन नियमों का पालन कर व्रती सूर्य देव की कृपा प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में ऊर्जा, समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद पाते हैं।

संध्या अर्घ्य का धार्मिक महत्व

छठ पूजा में संध्या अर्घ्य केवल पूजा विधि नहीं, बल्कि श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक भी है। यह अर्घ्य सूर्य देव की पत्नी प्रत्यूषा को समर्पित होता है, जो जीवन में स्थिरता और संयम का प्रतीक मानी जाती हैं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले संकट दूर होते हैं और संतान की रक्षा होती है। सूर्य की अंतिम किरण के साथ दिया गया यह अर्घ्य आत्म-शक्ति और कृतज्ञता का संदेश देता है।

छठ पूजा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

छठ पूजा को सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है। अर्घ्य देते समय जल की धार में सूर्य की किरणें आंखों और शरीर पर पड़ती हैं, जिससे शरीर में विटामिन D का स्तर बढ़ता है और त्वचा को प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है।

इसके अलावा, नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य की ओर जल अर्पित करना मन को स्थिर और शांत बनाता है। यह ध्यान और एकाग्रता का अभ्यास भी है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए व्रत

छठ व्रत का सबसे बड़ा उद्देश्य संतान की लंबी आयु और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करना है। इस व्रत को महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी समान श्रद्धा से करते हैं। संध्या अर्घ्य के दौरान व्रती सूर्य देव से प्रार्थना करते हैं कि उनके घर परिवार में खुशियां बनी रहें और हर संकट से मुक्ति मिले।

व्रती इस दिन किसी भी प्रकार की नकारात्मक भावना या विवाद से दूर रहते हैं। उनका पूरा ध्यान श्रद्धा, शुद्धता और भक्ति में केंद्रित होता है।

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