धनतेरस और दिवाली का त्योहार घर, परिवार और खुशियों से जुड़ा होता है। इस खास मौके पर मीडिया ने अभिनेत्री निमरत कौर से बातचीत की। इस दौरान निमरत ने अपने बचपन की दिवाली और परिवार के साथ बिताए खास पलों को साझा किया।
एंटरटेनमेंट न्यूज़: दिवाली और धनतेरस का त्योहार सिर्फ रौशनी और मिठाइयों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह घर, परिवार और अपनों के साथ बिताए खास पलों की याद दिलाता है। बॉलीवुड अभिनेत्री निमरत कौर ने इस त्योहार से जुड़ी अपनी बचपन की यादें और परिवार के साथ बिताए खास पलों को साझा किया। बातचीत में निमरत कौर ने बताया कि उनका बचपन आर्मी कैंट में बीता, इसलिए दिवाली का असली अर्थ था ‘पापा घर आएंगे’।
उन्होंने कहा, बस वही हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी होती थी। हमारे यहां कभी बहुत शोर या पटाखे वाली दिवाली नहीं मनाई जाती थी। हम फुलझड़ियां और चकरी जलाते थे। आज भी जब मैं किसी बच्चे के हाथ में फुलझड़ी देखती हूं, तो पापा की मुस्कान और हमारा छोटा सा घर याद आ जाता है, जो उस समय हमारे लिए पूरे ब्रह्मांड जैसा था।
घर से बड़ा कोई आश्रय नहीं
निमरत कहती हैं कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, दिवाली के मायने और गहराई से समझ आने लगे। आजकल काम की वजह से वे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहती हैं, लेकिन दिवाली के नाम आते ही दिल सिर्फ घर की ओर खिंचता है। मैं चाहे किसी भी शूट में फंसी रहूं, किसी न किसी तरह दिवाली की रात तक नोएडा पहुंच ही जाती हूं। वहां मां-पापा, नानी और वो जानी-पहचानी खुशबू… बस, सब कुछ पूरा हो जाता है। जिंदगी बहुत अनिश्चित है और यही त्योहार हमें याद दिलाते हैं कि असली पूंजी रिश्ते हैं, न कि कोई और चीज।
निमरत ने अपने बचपन का एक खास किस्सा भी साझा किया। उन्होंने बताया कि एक दोस्त की दादी ने उन्हें सालों पहले एक छोटा-सा पर्स दिया था, जिसमें चांदी के मोती और अंदर सौ रुपए का नोट रखा गया था। उन्होंने कहा था कि यह मेरे लिए लक्ष्मी जी का आशीर्वाद है। जब भी उस पर्स को देखती हूं, बुजुर्गों के प्यार और आशीर्वाद की याद ताजा हो जाती है। यह पर्स आज भी मेरे पास है। हर दिवाली मैं इसे अलमारी से निकालकर साफ करती हूं। मेरे लिए वही सबसे कीमती तोहफा है।"
असली धन अपनों का प्यार
धनतेरस की परंपरा और त्योहार की खुशी के बारे में निमरत कहती हैं: हर धनतेरस मां मेरे लिए एक नए कपड़े खरीदती हैं। यह उनका छोटा-सा रिवाज है। मेरे लिए वही सबसे बड़ी समृद्धि है – मां का प्यार और परंपरा।
हमारी दिवाली की परंपरा
अपने घर की परंपरा साझा करते हुए निमरत बताती हैं, हर साल दिवाली की रात हम हॉट चॉकलेट ऑर्डर करते हैं। फिर सब कार में बैठकर नोएडा घूमते हैं और देखते हैं कि दूसरों ने अपने घर कैसे सजाया है। घर लौटकर दीये जलाते हैं, पूजा करते हैं और बस यह सुकून का एहसास ही मेरी दिवाली है। असली रौशनी दीयों में नहीं, बल्कि उन लोगों में होती है जिनके साथ आप ये दीये जलाते हैं।"
निमरत कहती हैं कि त्योहारों का सबसे प्यारा हिस्सा है घर की रसोई। मां के हाथ का राजमा-चावल या कढ़ी-चावल जब दिवाली पर बनता है, तो पूरी रसोई में अलग-सी गर्माहट होती है। इसके अलावा, काजू कतली उनकी कमजोरी है।