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'राजनीति में आया था बदलाव के लिए, धंधे के लिए नहीं': नवजोत सिंह सिद्धू का छलका दर्द

'राजनीति में आया था बदलाव के लिए, धंधे के लिए नहीं': नवजोत सिंह सिद्धू का छलका दर्द

पंजाब की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचाते हुए नवजोत सिंह सिद्धू ने बड़ा बयान दिया है। लगातार यह सवाल उठते रहे हैं कि वे कांग्रेस में कितने सक्रिय हैं और आगामी विधानसभा या लोकसभा चुनावों में उनकी भूमिका क्या होगी। 

Navjot Singh Sidhu: पंजाब की राजनीति में 'शब्दों के सुल्तान' कहे जाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन इस बार वजह कोई चुनावी बयान या तीखा हमला नहीं, बल्कि एक सीधा और आत्ममंथन से भरा बयान है। उन्होंने अपने राजनीतिक सफर को लेकर जो बात कही, वह कहीं न कहीं भारतीय राजनीति के खोखलेपन पर भी सवाल खड़ा करती है।

मैं राजनीति में व्यापार करने नहीं, बल्कि परिवर्तन लाने आया था, सिद्धू ने अपने हालिया बयान में यह कहकर स्पष्ट कर दिया कि वे राजनीति को लाभ और सौदेबाज़ी का मंच नहीं, बल्कि जनसेवा और बदलाव का ज़रिया मानते हैं। यह बयान उस समय आया है जब वे कांग्रेस के कार्यक्रमों से दूरी बनाए हुए हैं और पार्टी ने हाल ही में लुधियाना वेस्ट उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची से उनका नाम भी हटा दिया है।

‘30 साल से माफिया चला रहा पंजाब’: सिद्धू का बड़ा आरोप

नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने बयान में पंजाब की राजनीति पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा, पिछले 30 सालों से पंजाब की सत्ता माफियाओं के इशारे पर चलती रही है। सरकारें चाहे किसी पार्टी की रही हों, असली ताकत परदे के पीछे रही।यह बात सीधे तौर पर राज्य की राजनीतिक व्यवस्था पर हमला करती है, जहां चुनावी वादे और जनहित योजनाएं अक्सर अदृश्य शक्तियों और आर्थिक हितों की बलि चढ़ जाती हैं।

सिद्धू ने अपने आलोचकों पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, मुझ पर आरोप लगते हैं कि मैं ऊंची आवाज़ में बोलता हूं। लेकिन मैं पूछता हूं कि क्या मेरी आवाज़ से ज़्यादा ऊंचा मेरा ज़मीर है या नहीं? मैंने आज तक कोई सौदा नहीं किया, न ही कभी अपने उसूलों से समझौता किया है। उनका यह बयान इशारा करता है कि जहां बहुत से नेता सत्ता की खातिर समझौता कर लेते हैं, वहीं सिद्धू अब भी अपने आदर्शों और आत्मसम्मान को लेकर दृढ़ हैं।

कांग्रेस में हाशिए पर लेकिन रिश्ता बरकरार

सिद्धू का कांग्रेस से रिश्ता भी अब एक जटिल पहेली बन चुका है। 2017 में उन्होंने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस जॉइन की थी और पार्टी ने उन्हें पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष भी बनाया था, लेकिन यह पद उन्होंने सिर्फ दो महीने में ही त्याग दिया। आज भले ही वे पार्टी के किसी पद पर न हों, लेकिन उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल पर अब भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की तस्वीरें हैं। यही नहीं, वे अब भी समय-समय पर कांग्रेस नेतृत्व से मुलाकात करते रहे हैं। इसका मतलब है कि दरवाज़े पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं, लेकिन सिद्धू पार्टी से स्पष्ट नाराज हैं।

यह सवाल अब उठता है कि क्या नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति से पूरी तरह किनारा करने की ओर बढ़ रहे हैं या यह सिर्फ एक आत्ममंथन की प्रक्रिया है?सिद्धू की राजनीति हमेशा से ‘जनभावना’, ‘ईमानदारी’ और ‘बदलाव’ जैसे शब्दों के इर्द-गिर्द रही है। लेकिन व्यावहारिक राजनीति अक्सर इन सिद्धांतों से परे जाती है। शायद यही वजह है कि सिद्धू न तो पूरी तरह कांग्रेस के साथ हैं और न ही किसी और मंच पर सक्रिय।

नवजोत सिंह सिद्धू का राजनीतिक सफर अब तक संघर्षों और असमंजस से भरा रहा है। वे कई बार सत्ता के करीब पहुंचे, लेकिन न तो उन्होंने कभी स्थायित्व चुना, न ही कोई राजनीतिक लाभ उठाया। उनकी आवाज़ गूंजती रही, लेकिन वह मुख्यधारा में अनसुनी भी रही।

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