रिलायंस ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम पर ट्रेडमार्क के लिए आवेदन किया। 7 मई को एक ही दिन में चार आवेदन फाइल हुए, जिनमें फिल्म और मीडिया से जुड़ी सेवाएं शामिल हैं।
Reliance: भारत द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Operation-Sindoor) के तहत आतंकी ठिकानों पर की गई सख्त कार्रवाई के कुछ ही घंटों बाद इस नाम पर ट्रेडमार्क को लेकर बड़ी हलचल शुरू हो गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 7 मई को एक ही दिन में चार अलग-अलग ट्रेडमार्क आवेदन फाइल किए गए, जिनमें सबसे पहले फाइलिंग करने वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज है।
सबसे पहले रिलायंस ने किया आवेदन
‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Operation-Sindoor) नाम का ट्रेडमार्क रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance-Industries) ने सबसे पहले फाइल किया। इसके बाद तीन और लोगों ने इसी नाम के लिए आवेदन दिए – मुंबई के मुकेश चेतराम अग्रवाल, भारतीय वायुसेना के रिटायर्ड ग्रुप कैप्टन कमल सिंह ओबेरॉय और दिल्ली के वकील आलोक कोठारी। सभी आवेदनों में इस नाम को “प्रपोज्ड टू बी यूज्ड” बताया गया है, जिससे साफ है कि भविष्य में इसके कमर्शियल इस्तेमाल की योजना है।
किस कैटेगरी में हुआ आवेदन?
चारों आवेदन नाइस क्लासिफिकेशन की क्लास 41 के अंतर्गत किए गए हैं, जो इन सेवाओं को कवर करता है:
- शैक्षणिक और प्रशिक्षण सेवाएं
- फिल्म और डिजिटल मीडिया प्रोडक्शन
- लाइव इवेंट और सांस्कृतिक कार्यक्रम
- डिजिटल पब्लिकेशन और ब्रॉडकास्टिंग
इससे ये अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि 'ऑपरेशन सिंदूर' को भविष्य में एक फिल्म, वेब सीरीज या डॉक्यूमेंट्री का रूप दिया जा सकता है।
रिलायंस का मीडिया में मजबूत आधार
रिलायंस :(Reliance) का मीडिया इंडस्ट्री में पहले से ही बड़ा प्रभाव है। इसके पास Viacom18, Network18, Reliance Entertainment, और कई अन्य मीडिया कंपनियों में हिस्सेदारी है। ऐसे में, यह ट्रेडमार्क रिलायंस के मीडिया प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बन सकता है।
क्या ट्रेडमार्क मिलना तय है?
भारत में सैन्य अभियानों के नामों को अपने आप कोई IPR सुरक्षा नहीं मिलती। रक्षा मंत्रालय आमतौर पर इन नामों को ट्रेडमार्क नहीं कराता। ऐसे में, कोई भी संस्था इसे रजिस्टर कराने की कोशिश कर सकती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पहले आवेदनकर्ता को नाम मिल ही जाएगा।
भारतीय ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के अनुसार, अगर कोई नाम भ्रामक है, सरकार से झूठा जुड़ाव दिखाता है, या जनभावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है, तो रजिस्ट्रार आवेदन को खारिज कर सकता है। इसके अलावा, विरोध की स्थिति में ट्रेडमार्क मिलने की प्रक्रिया लंबी और कानूनी हो सकती है।