केरल के पठानों में स्थित सबरीमला मंदिर में प्रतिवर्ष होने वाली ऊषा पूजा न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भक्तों के लिए आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की ओर एक महत्त्वपूर्ण यात्रा का प्रतीक भी बन चुकी है। 2025 की ऊषा पूजा को लेकर विशेष तैयारियां शुरू हो गई हैं और देशभर से भक्त इसमें शामिल होने के लिए श्रद्धा और तपस्या का मार्ग अपना रहे हैं।
क्या है ऊषा पूजा?
सबरीमला मंदिर में ऊषा पूजा सूर्योदय से पहले की जाती है। यह पूजा भगवान अयप्पा को समर्पित होती है और इसमें श्रद्धालु गहरी भक्ति और आस्था के साथ भाग लेते हैं। पूजा के दौरान भगवान अयप्पा की मूर्ति का दूध, शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है, इसके पश्चात भोग, पुष्प और मंत्रोच्चार के माध्यम से भगवान से कृपा की याचना की जाती है।
क्यों है ऊषा पूजा इतनी विशेष?

ऊषा पूजा को लेकर मान्यता है कि यह पिछले जन्मों के पापों को क्षमा कर, भक्त को आध्यात्मिक जागरण की ओर ले जाती है। भक्तों का विश्वास है कि इस पूजा में सम्मिलित होने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, चाहे वह स्वास्थ्य, धन, संतान या जीवन में सफलता से संबंधित क्यों न हो।
ऊषा पूजा से जुड़ी परंपराएं और नियम
• 41 दिन का तप: भक्तों को इस पूजा में भाग लेने से पहले 41 दिनों तक निर्दिष्ट व्रत और नियमों का पालन करना होता है।
• इरुमुदिकट्टू: भक्त अपने सिर पर पवित्र गठरी (इरुमुदिकट्टू) लेकर यात्रा करते हैं, जो भक्ति और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है।
• वस्त्र चयन: इस दौरान भक्त काले या नीले वस्त्र पहनते हैं और साधना में लीन रहते हैं।
• ब्रह्मचर्य और संयम: पूर्ण ब्रह्मचर्य, सात्विक आहार और संयम का पालन पूजा का अनिवार्य हिस्सा है।
2025 में ऊषा पूजा का श्रेष्ठ समय

ऊषा पूजा का सर्वोत्तम समय मंडला कालम (नवंबर–दिसंबर) और मकर संक्रांति (जनवरी) माना जाता है। इस दौरान मंदिर का वातावरण भक्ति, भजन और दिव्यता से भर जाता है। लाखों श्रद्धालु इस समय भगवान अयप्पा के "स्वामी शरणम्" मंत्र का जाप करते हुए मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं।
आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र
सबरीमला की ऊषा पूजा केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि यह एक जीवन दर्शन है जो आत्मा को शुद्ध करता है, जीवन को दिशा देता है और परम सत्य से जोड़ता है। भगवान अयप्पा के चरणों में यह पूजा एक ऐसा अनुभव है, जिसे शब्दों में नहीं, केवल हृदय से अनुभव किया जा सकता है।













