SEBI ने एआईएफ (Alternative Investment Funds) के लिए नए ड्राफ्ट गाइडलाइंस जारी किए हैं, जिनमें निवेशकों के अधिकारों और फंड वितरण से जुड़ी प्रक्रियाओं को स्पष्ट किया गया है। ड्राफ्ट पर सार्वजनिक सुझाव मांगे गए हैं।
SEBI Draft Guidelines for AIFs: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने शुक्रवार को एक ड्राफ्ट सर्कुलर जारी किया है, जिसका उद्देश्य एआईएफ निवेशकों के अधिकारों और फंड वितरण प्रक्रिया में पारदर्शिता व समानता सुनिश्चित करना है। प्रस्तावित नियमों के तहत क्लोज्ड-एंडेड एआईएफ योजनाओं में निवेशकों के अधिकार कुल प्रतिबद्धता या अप्रयुक्त प्रतिबद्धता राशि से जुड़े होंगे।
सेबी का उद्देश्य: निवेशक अधिकारों और पारदर्शिता पर फोकस
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने शुक्रवार को एआईएफ (Alternative Investment Funds) के संचालन ढांचे को और पारदर्शी बनाने के लिए नया ड्राफ्ट सर्कुलर जारी किया है। इस प्रस्तावित ढांचे का मकसद निवेशकों के अधिकारों को स्पष्ट करना और फंड वितरण की प्रक्रिया में समानता सुनिश्चित करना है।
ड्राफ्ट के अनुसार, क्लोज्ड-एंडेड एआईएफ योजनाओं में निवेशकों के अधिकार उनकी कुल पूंजी प्रतिबद्धता या अप्रयुक्त पूंजी प्रतिबद्धता पर आधारित होंगे। सेबी ने यह भी स्पष्ट किया है कि एक बार फंड स्ट्रक्चर में घोषित पद्धति को योजना के कार्यकाल के दौरान बदला नहीं जा सकेगा।
निवेशकों के हित में ‘प्रो-राटा’ और ‘पैरी पासू’ के स्पष्ट नियम
सेबी के प्रस्ताव में दो अहम सिद्धांतों—‘प्रो-राटा’ और ‘पैरी पासू’—को लेकर विस्तृत दिशानिर्देश दिए गए हैं। प्रो-राटा के तहत निवेशकों को उनके निवेश अनुपात के अनुसार लाभ मिलता है, जबकि पैरी पासू के सिद्धांत के अनुसार सभी निवेशकों को समान अधिकार मिलते हैं, बिना किसी विशेष प्राथमिकता के।
ड्राफ्ट में कहा गया है कि किसी भी एआईएफ योजना में निवेशकों को फंड वितरण का अधिकार या तो उनके निवेश योगदान के अनुपात में या समय-आधारित निवेश योगदान के अनुसार मिलेगा, जैसा कि प्राइवेट प्लेसमेंट मेमोरेंडम (PPM) में पहले से घोषित किया गया है।
ओपन-एंडेड फंड्स के लिए लचीले प्रावधान
ओपन-एंडेड कैटेगरी III एआईएफ के लिए सेबी ने थोड़ी राहत दी है। ऐसे फंड्स में, जहां निवेशक कभी भी प्रवेश या निकास कर सकते हैं, प्रो-राटा ड्रॉडाउन आवश्यक नहीं होगा। हालांकि, निवेशकों को प्राप्त राशि उनके यूनिट होल्डिंग के अनुपात में ही वितरित की जाएगी।
यदि ये फंड्स अनलिस्टेड सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं, तो उनके लिए क्लोज्ड-एंडेड योजनाओं जैसे ही प्रो-राटा सिद्धांत लागू होंगे। सेबी ने यह भी स्पष्ट किया है कि 13 दिसंबर 2024 से पहले किए गए निवेशों पर पहले से तय शर्तें ही लागू रहेंगी।
अनुपालन और पारदर्शिता के लिए सख्त निगरानी
ड्राफ्ट में यह भी कहा गया है कि फंड मैनेजर को मिलने वाला कैरिड इंटरेस्ट या प्रॉफिट शेयर प्रो-राटा नियम के तहत नहीं आएगा। इसके अलावा, एआईएफ मैनेजरों को सभी वितरण और निवेश से संबंधित रिकॉर्ड व्यवस्थित रूप से बनाए रखने होंगे ताकि अनुपालन की पुष्टि की जा सके।
ट्रस्टीज को अपने समय-समय पर प्रस्तुत किए जाने वाले अनुपालन रिपोर्ट में यह सुनिश्चित करना होगा कि फंड ने सभी निर्धारित प्रावधानों का पालन किया है। सेबी ने इस ड्राफ्ट पर जनता से 28 नवंबर 2025 तक सुझाव और टिप्पणियां मांगी हैं।
एआईएफ सेक्टर: हाई-नेट-वर्थ निवेशकों के लिए वैकल्पिक विकल्प
अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड्स (AIFs) उन निवेशकों के लिए बनाए गए हैं जो पारंपरिक इक्विटी और डेट मार्केट से हटकर विविध निवेश अवसरों की तलाश में हैं। ये फंड्स मुख्य रूप से उच्च-नेट-वर्थ व्यक्तियों (HNIs) और संस्थागत निवेशकों को लक्ष्य करते हैं जो प्राइवेट इक्विटी, वेंचर कैपिटल, रियल एस्टेट, या हेज फंड जैसी श्रेणियों में निवेश करना चाहते हैं।
हालांकि एआईएफ बेहतर रिटर्न और पोर्टफोलियो विविधता प्रदान करते हैं, लेकिन इन निवेशों में जोखिम भी अपेक्षाकृत अधिक होता है। ये आमतौर पर दीर्घकालिक और कम तरल निवेश माने जाते हैं, जिनमें गहराई से समझ और जोखिम सहने की क्षमता आवश्यक होती है।
एआईएफ की तीन श्रेणियां: अलग-अलग निवेश दृष्टिकोण
सेबी के 2012 के नियमों के अनुसार, एआईएफ को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। कैटेगरी I फंड्स समाजिक और आर्थिक विकास वाले क्षेत्रों जैसे वेंचर कैपिटल, इंफ्रास्ट्रक्चर और एसएमई पर केंद्रित हैं। कैटेगरी II फंड्स मुख्य रूप से प्राइवेट इक्विटी, डेट और रियल एस्टेट जैसे सेक्टर में दीर्घकालिक पूंजी वृद्धि के लिए निवेश करते हैं।
वहीं कैटेगरी III फंड्स जटिल निवेश रणनीतियों और हेज फंड जैसी तकनीकों का उपयोग करते हैं। ये शॉर्ट-टर्म रिटर्न पर केंद्रित रहते हैं और लीवरेज का उपयोग कर सकते हैं, जिससे जोखिम और रिटर्न दोनों बढ़ जाते हैं।
को-इन्वेस्टमेंट वीकल: निवेशकों के लिए अतिरिक्त अवसर
सेबी ने जून 2024 में को-इन्वेस्टमेंट वीकल (Co-Investment Vehicle – CIV) मॉडल की शुरुआत की थी, जिससे निवेशकों को एआईएफ के साथ मिलकर किसी पोर्टफोलियो कंपनी में सीधे निवेश करने की सुविधा मिली। यह प्रावधान निवेशकों को अधिक नियंत्रण और पारदर्शिता प्रदान करता है।
प्रत्येक CIV स्कीम के लिए अलग बैंक, डिमैट और पैन अकाउंट रखना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, को-इन्वेस्टमेंट का अवसर केवल मान्यता प्राप्त (accredited) निवेशकों को ही मिलेगा। यह कदम एआईएफ सेक्टर में लचीलापन और निवेशकों की भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
एआईएफ सेक्टर में सेबी के सुधार: संतुलन और सुरक्षा की दिशा में कदम
सेबी के ये नए प्रस्ताव भारत के वैकल्पिक निवेश क्षेत्र में संतुलन, पारदर्शिता और निवेशक सुरक्षा को और मजबूत करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम हैं। इससे न केवल फंड प्रबंधन प्रक्रिया में स्पष्टता आएगी बल्कि निवेशकों के अधिकार भी सुरक्षित रहेंगे।
नियामक का यह दृष्टिकोण भारतीय एआईएफ बाजार को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने और दीर्घकालिक निवेशकों के लिए इसे अधिक विश्वसनीय बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभा रहा है।













