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शीतला षष्ठी 2025: शिव-पार्वती विवाह की याद में मनाया जाने वाला आस्था का पर्व – जानें तिथि और शुभ मुहूर्त

शीतला षष्ठी 2025: शिव-पार्वती विवाह की याद में मनाया जाने वाला आस्था का पर्व – जानें तिथि और शुभ मुहूर्त

भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है जहां प्रत्येक पर्व न केवल एक धार्मिक मान्यता को समर्पित होता है, बल्कि उसके पीछे गहरी पौराणिक कथा और सांस्कृतिक समृद्धि छिपी होती है। ऐसा ही एक विशेष पर्व है शीतला षष्ठी जिसे सीतल षष्ठी भी कहा जाता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 31 मई को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के पवित्र विवाह की स्मृति में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। विशेष रूप से ओडिशा राज्य के संबलपुर क्षेत्र में यह उत्सव कई परंपराओं और सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ संपन्न होता है।

शीतला षष्ठी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

  • षष्ठी तिथि प्रारंभ: 31 मई 2025, रात 8:15 बजे
  • षष्ठी तिथि समाप्त: 1 जून 2025, रात 8:00 बजे
  • अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:51 बजे से दोपहर 12:47 बजे तक
  • अमृत काल: दोपहर 2:49 से शाम 4:23 बजे तक
  • रवि योग: 31 मई, रात 9:07 बजे से 1 जून, सुबह 5:24 बजे तक

इन शुभ मुहूर्तों में पूजा-पाठ और व्रत का विशेष महत्व माना जाता है।

पर्व का सांस्कृतिक पक्ष: संबलपुर की सीतल षष्ठी यात्रा

ओडिशा के संबलपुर में शीतला षष्ठी केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि एक महापर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पांच दिवसीय उत्सव होता है, जिसे 'सीतल षष्ठी यात्रा' के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव की शुरुआत होती है 'पत्रा पेड़ी' नामक अनोखी रस्म से।

  1. पत्रा पेड़ी रस्म: इस परंपरा के तहत, किसी स्थानीय ब्राह्मण परिवार को माता पार्वती के मायके का प्रतीक माना जाता है। वहां से विवाह प्रस्ताव की औपचारिकता की जाती है और विवाह की तैयारियों की शुरुआत होती है।
  2. शिव की बारात: अगले चरण में भगवान शिव की प्रतीकात्मक बारात निकाली जाती है। यह बारात बेहद भव्य होती है और इसमें भगवान हनुमान और भगवान नरसिंह जैसे अन्य देवी-देवताओं के स्वरूप भी शामिल होते हैं। पारंपरिक नृत्य, लोक संगीत, नाटक और कई सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ इस यात्रा को आकर्षक बनाती हैं।
  3. नगर परिक्रमा: विवाह समारोह के अगले दिन पूरी बारात नगर की परिक्रमा करती है जिसे ‘नगर परिक्रमा’ कहते हैं। इसे ही 'सीतल षष्ठी यात्रा' का मुख्य आकर्षण माना जाता है। हजारों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं और नगर की गलियों में भगवान शिव और पार्वती की विवाह यात्रा का आनंद लेते हैं।

पौराणिक मान्यता: तपस्या, प्रेम और विजय की कथा

शीतला षष्ठी की कथा पुराणों में वर्णित है। कथा के अनुसार, देवी सती ने जब अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान होते देखा, तो उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया। इसके बाद उन्होंने पुनः पार्वती रूप में जन्म लिया और कठोर तपस्या के माध्यम से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया, और तभी से यह दिन शिव-पार्वती विवाह की स्मृति में पर्व के रूप में मनाया जाता है।

इतना ही नहीं, भगवान कार्तिकेय का जन्म भी इसी दिन हुआ था। उन्होंने ही दैत्यराज तारकासुर का वध किया था, जो तीनों लोकों में आतंक फैलाए हुए था। इस प्रकार यह दिन भक्ति, शक्ति और विजय का प्रतीक बन गया।

व्रत और नियम: संयम और श्रद्धा का पर्व

शीतला षष्ठी के दिन महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं। कई महिलाएं इस दिन व्रत कर सुखद वैवाहिक जीवन और संतान की लंबी आयु की कामना करती हैं। व्रत के दौरान शिव-पार्वती की पूजा की जाती है और कथाएं सुनी जाती हैं, जिसमें शिव-पार्वती विवाह और पार्वती की तपस्या की महिमा वर्णित होती है।

शीतला षष्ठी की आधुनिक सीख

यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसमें छिपा हुआ संदेश भी अत्यंत प्रेरणादायक है:

  • भक्ति और तपस्या से कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है।
  • सच्चे प्रेम और समर्पण से जीवन में हर संबंध मजबूत होता है।
  • समाज में संस्कृति, परंपरा और लोक मान्यताओं का संरक्षण किया जाना चाहिए।
  • यह पर्व नारी शक्ति, धैर्य और आत्मविश्वास का भी प्रतीक है।

क्यों कहा जाता है 'मानसून वेडिंग'?

चूंकि यह पर्व ज्येष्ठ माह में आता है, जो मानसून की दस्तक का संकेतक होता है, इसे ‘मानसून वेडिंग’ भी कहा जाता है। विवाह जैसा उल्लास और प्रकृति की वर्षा दोनों मिलकर वातावरण को रोमांचक और पवित्र बना देते हैं। शीतला षष्ठी 2025 न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की जीवंतता, आस्था और परंपरा का प्रतीक भी है। शिव-पार्वती के विवाह की कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम, त्याग और तपस्या से हर मनोकामना पूरी हो सकती है। 

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