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स्कंद षष्ठी व्रत में छिपा है संतान सुख का राज, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

स्कंद षष्ठी व्रत में छिपा है संतान सुख का राज, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

श्रावण मास को भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है और इस पूरे महीने में तरह-तरह के व्रत और पर्व मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक है स्कंद षष्ठी, जो भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित होती है। इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में सुख-शांति, संतान सुख और शौर्य की प्राप्ति होती है। भगवान कार्तिकेय को देवताओं के सेनापति और ज्ञान व पराक्रम के देवता के रूप में पूजा जाता है।

कब मनाई जाएगी स्कंद षष्ठी

पंचांग के अनुसार, स्कंद षष्ठी व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इस बार यह तिथि 30 जुलाई 2025, बुधवार को मनाई जाएगी। षष्ठी तिथि का प्रारंभ 30 जुलाई को सुबह 12 बजकर 46 मिनट से होगा और इसका समापन 31 जुलाई को सुबह 2 बजकर 41 मिनट पर होगा। ऐसे में 30 जुलाई को ही व्रत और पूजा का उत्तम समय रहेगा।

पूजा के लिए शुभ मुहूर्त क्या है

स्कंद षष्ठी के दिन पूजा के लिए कई शुभ योग बन रहे हैं। विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 18 मिनट से लेकर 3 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा इस दिन रवि योग भी बन रहा है, जो शाम 5 बजकर 24 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 53 मिनट तक प्रभावी रहेगा। इन समयों में पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

कैसे करें स्कंद षष्ठी की पूजा

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा करने से पहले भगवान कार्तिकेय का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर को साफ करें और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि कार्तिकेय की मूर्ति उपलब्ध न हो तो शिव-पार्वती और गणेश जी की मूर्तियों के साथ भी पूजा की जा सकती है।

पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और वहां घी का दीपक जलाएं। भगवान कार्तिकेय को चंदन, रोली, अक्षत, धूप, दीप, फल और मिठाई अर्पित करें। उन्हें लाल गुड़हल का फूल विशेष रूप से चढ़ाएं क्योंकि यह फूल उन्हें प्रिय है। मोर पंख भी भगवान कार्तिकेय को अर्पित किया जा सकता है, क्योंकि उनका वाहन मोर माना जाता है।

इसके बाद स्कंद षष्ठी की व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। भगवान की आरती करें और उनके मंत्रों का जाप करें। दिनभर व्रत रखें। कुछ लोग फलाहारी भोजन करते हैं जबकि कुछ लोग निर्जला व्रत रखते हैं। शाम को पुनः पूजा करने के बाद व्रत का पारण करें और प्रसाद को परिवार में बांटें।

कार्तिकेय की पूजा का विशेष महत्व

हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान कार्तिकेय की पूजा से संतान सुख प्राप्त होता है। जिन दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति में समस्या हो, उनके लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना जाता है। साथ ही यह व्रत संतान के अच्छे स्वास्थ्य, लंबी उम्र और सफलता के लिए भी रखा जाता है।

भगवान कार्तिकेय को युद्ध कौशल, पराक्रम और तेजस्विता का प्रतीक माना गया है। उनकी आराधना करने से मनुष्य को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में आत्मबल की वृद्धि होती है। जीवन में अगर बार-बार बाधाएं आ रही हों तो कार्तिकेय की पूजा करने से वह दूर हो जाती हैं।

दक्षिण भारत में विशेष उत्साह

हालांकि स्कंद षष्ठी पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन दक्षिण भारत में इसका विशेष महत्व है। तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में भगवान कार्तिकेय को ‘मुरुगन’ के नाम से जाना जाता है और वहां यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मुरुगन मंदिरों में इस दिन विशेष आयोजन होते हैं, जिसमें भक्त दूर-दूर से आकर हिस्सा लेते हैं।

तमिल संस्कृति में मुरुगन पूजा का विशेष स्थान है और स्कंद षष्ठी के अवसर पर विशाल शोभायात्राएं और धार्मिक आयोजन होते हैं। कई जगहों पर भक्त उपवास रखकर, पैदल चलकर या कावड़ लेकर मुरुगन मंदिरों तक पहुंचते हैं।

उत्तर भारत में भी बढ़ रहा महत्व

पहले जहां यह पर्व मुख्य रूप से दक्षिण भारत तक सीमित था, वहीं अब उत्तर भारत में भी भगवान कार्तिकेय की पूजा का चलन बढ़ा है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अब स्कंद षष्ठी व्रत रखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। खासकर वो लोग जिनके परिवार में संतान की कामना है या जो अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करते हैं, वे इस दिन विशेष रूप से व्रत रखते हैं।

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