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स्वामी प्रसाद मौर्य की अगली सियासी चाल! क्या आज़ाद समाज पार्टी बन सकती है नया ठिकाना?

स्वामी प्रसाद मौर्य की अगली सियासी चाल! क्या आज़ाद समाज पार्टी बन सकती है नया ठिकाना?

उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है, और इस बार केंद्र में हैं स्वामी प्रसाद मौर्य। बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसे तीन प्रमुख दलों में अपनी सियासी पारी खेल चुके मौर्य एक बार फिर पार्टी बदलने की तैयारी में नजर आ रहे हैं। 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है, क्योंकि कई दलों का दामन थाम चुके पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य एक बार फिर राजनीतिक पाला बदल सकते हैं। फिलहाल वे अपनी "जनता पार्टी" के अध्यक्ष हैं, लेकिन हाल ही में राजधानी लखनऊ में हुई एक अहम मुलाकात ने नए समीकरणों की अटकलें बढ़ा दी हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्वामी प्रसाद मौर्य और भीम आर्मी के प्रमुख व आज़ाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आज़ाद के बीच लखनऊ के एक निजी स्थान पर लंबी और गंभीर बातचीत हुई। इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने सामाजिक न्याय, दलित और पिछड़े वर्गों को एक मंच पर लाने जैसे अहम मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।

लखनऊ में हुई अहम मुलाकात से बढ़ी हलचल

हाल ही में लखनऊ में स्वामी प्रसाद मौर्य और आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद के बीच हुई लंबी बैठक ने सूबे की सियासत को नई दिशा दे दी है। यह मुलाकात भले ही निजी स्थल पर हुई हो, लेकिन इसका असर सार्वजनिक राजनीति में गूंजने लगा है। सूत्रों की मानें तो दोनों नेताओं के बीच सामाजिक न्याय, दलित और पिछड़ा वर्ग के मुद्दों को लेकर गंभीर बातचीत हुई।

क्या आज़ाद समाज पार्टी बनेगी अगला पड़ाव?

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य जल्द ही चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी में शामिल हो सकते हैं। आज़ाद समाज पार्टी उन्हें उत्तर प्रदेश में संगठनात्मक रूप से बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है, जिससे पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूती मिल सके। मौर्य की पहचान एक अनुभवी पिछड़ा वर्ग नेता के रूप में है, जो दलितों और पिछड़ों के बीच अच्छी पकड़ रखते हैं। ऐसे में अगर वे आसपा (कांशीराम) में आते हैं, तो यह पार्टी के लिए एक बड़ी रणनीतिक बढ़त हो सकती है।

सपा-बसपा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

स्वामी प्रसाद मौर्य के आज़ाद समाज पार्टी में शामिल होने की स्थिति में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। मौर्य का प्रभाव कई सीटों पर है, खासतौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश में। समाजवादी पार्टी के साथ उनका हालिया रिश्ता भले ही ज्यादा सफल नहीं रहा हो, लेकिन उनकी लोकप्रियता और पकड़ अभी भी कई जिलों में बरकरार है।

स्वामी प्रसाद मौर्य का अब तक का सियासी सफर

स्वामी प्रसाद मौर्य का सियासी सफर बेहद दिलचस्प रहा है। उन्होंने अपनी राजनीतिक शुरुआत बहुजन समाज पार्टी से की थी और लंबे समय तक मायावती के करीबी माने जाते थे।

  • वर्ष 2012 में वह पडरौना विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बने।
  • वह 13वीं, 14वीं और 15वीं विधानसभा में भी विधायक रहे।
  • दो दशक तक बसपा में रहने के बाद उन्होंने वर्ष 2016 में पार्टी छोड़ दी।
  • इसके बाद उन्होंने 2017 में भाजपा का दामन थामा और योगी सरकार में मंत्री बने।
  • वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने भाजपा से इस्तीफा देकर सपा जॉइन की और फाजिलनगर से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

जनता पार्टी के अध्यक्ष लेकिन प्रभाव सीमित

भाजपा और सपा छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी नई पार्टी "जनता पार्टी" की स्थापना की। हालांकि यह पार्टी अभी तक कोई बड़ा जनाधार खड़ा नहीं कर सकी है। यही कारण है कि मौर्य अब किसी मजबूत और सक्रिय संगठन की तलाश में हैं, जो उन्हें सामाजिक न्याय के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का मौका दे सके।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर स्वामी प्रसाद मौर्य और चंद्रशेखर आज़ाद की जोड़ी बनी तो यह उत्तर प्रदेश की जातिगत राजनीति में नया समीकरण बना सकती है। 

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