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उत्तराखंड के गांव में अनोखी पहल: सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहा है AI टीचर 'ECO'

उत्तराखंड के गांव में अनोखी पहल: सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहा है AI टीचर 'ECO'
अंतिम अपडेट: 21-04-2025

जहां 4G सिग्नल भी मुश्किल से मिलता है, वहां AI रोबोट से पढ़ाई होना सबको हैरान करता है। इंटरनेट की कमी के बावजूद ये संभव हो पाया एक समर्पित शिक्षक की मेहनत और जुगाड़ से, जिसने बच्चों के भविष्य को तकनीक से जोड़ा।

AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बातें शहरों या बड़ी टेक कंपनियों के बारे में ही सुनी होंगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि देश के एक सुदूर गांव में भी AI रोबोट से पढ़ाई हो सकती है? वो भी एक सरकारी स्कूल में? जी हां, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के एक छोटे से गांव जाजर चिंगरी में कुछ ऐसा ही हो रहा है।

यह गांव नेपाल सीमा के पास बसा है, जहां मोबाइल नेटवर्क मिलना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। 4G तो दूर, कई बार फोन सिग्नल भी नहीं आता। लेकिन इस गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में एक AI रोबोट बच्चों को पढ़ा रहा है, जिसका नाम है ECO।

शिक्षक की अनोखी सोच बनी बच्चों की उम्मीद

इस पूरे बदलाव के पीछे हैं स्कूल के समर्पित शिक्षक चंद्रशेखर जोशी। उन्होंने गांव के बच्चों को तकनीक से जोड़ने और उन्हें बेहतरीन शिक्षा देने के उद्देश्य से AI रोबोट तैयार किया है। खास बात यह है कि उन्होंने यह काम किसी सरकारी मदद से नहीं बल्कि खुद की मेहनत और संसाधनों से किया है।

शिक्षक चंद्रशेखर जोशी ने बताया कि AI का दौर तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में उन्होंने सोचा कि क्यों न गांव के बच्चों को भी इसी तकनीक से जोड़ दिया जाए। इस सोच को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने अपने बेटे के विदेश में रहने वाले दोस्तों से संपर्क किया। चीन में रहने वाले एक इंजीनियर दोस्त ने रोबोट के पार्ट्स भेजे और वीडियो कॉल व व्हाट्सएप की मदद से इसे असेंबल करने में सहयोग किया।

4 लाख रुपये में तैयार हुआ ECO

करीब 4 लाख रुपये की लागत से तैयार हुए इस रोबोट को नाम दिया गया है ECO। यह रोबोट स्कूल के बरामदे में बच्चों को पढ़ाता है, जहां थोड़ी बहुत इंटरनेट कनेक्टिविटी मिल जाती है। ECO न सिर्फ बच्चों के सवालों का जवाब देता है, बल्कि इंटरएक्टिव तरीके से पढ़ाई भी कराता है। इस तकनीक से बच्चे काफी उत्साहित हैं और उनमें पढ़ाई को लेकर एक नई रुचि जाग गई है।

तकनीकी बाधाओं को किया पार

सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह स्कूल उस क्षेत्र में है जहां अब भी नेटवर्क की भारी समस्या है। इसके बावजूद ECO रोबोट का काम करना एक बड़ी उपलब्धि है। शिक्षक चंद्रशेखर बताते हैं कि उन्होंने इंटरनेट की सीमित उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए इस रोबोट को खास तरह से डिजाइन किया है। जब नेटवर्क मिलता है, तब ही इसका उपयोग किया जाता है और पहले से लोडेड कंटेंट का भी इस्तेमाल किया जाता है।

पूरे गांव में चर्चा का विषय बना ECO

अब ECO सिर्फ एक रोबोट नहीं रहा, वह गांव की शान बन गया है। स्कूल में बच्चों के साथ-साथ बुजुर्ग और माता-पिता भी इसे देखने आते हैं। लोग हैरान हैं कि उनके गांव में ऐसा कुछ हो सकता है। यह पहल न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई को नया रूप दे रही है, बल्कि गांववालों की सोच को भी बदल रही है।

शिक्षा का नया चेहरा: जोश, जुनून और जमीनी जुगाड़

ECO रोबोट आज उन हजारों सरकारी स्कूलों के लिए मिसाल बन चुका है, जहां संसाधनों की कमी है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि यह मॉडल अगर देशभर में लागू किया जाए, तो शिक्षा की तस्वीर ही बदल सकती है।

इस एक प्रयोग से बच्चों को न सिर्फ विज्ञान, गणित और अंग्रेजी की समझ मिल रही है, बल्कि वे तकनीक के इस्तेमाल, डिजिटल लर्निंग और आत्मनिर्भरता जैसी अहम चीजें भी सीख रहे हैं।

क्यों खास है ये पहल?

  • देश का पहला सरकारी स्कूल जहां AI रोबोट बच्चों को पढ़ा रहा है।
  • सीमित नेटवर्क और संसाधनों के बावजूद उच्च तकनीक का सफल प्रयोग।
  • पूरी तरह शिक्षक की निजी मेहनत और जुनून पर आधारित पहल।
  • ग्रामीण बच्चों को डिजिटल शिक्षा से जोड़ने का बेहतरीन तरीका।
  • बाकी सरकारी स्कूलों के लिए आदर्श मॉडल बनने की क्षमता।

हर गांव में पहुंचे ECO

चंद्रशेखर जोशी की ये कोशिश यहीं नहीं रुकने वाली। उनका सपना है कि ECO जैसे AI रोबोट्स देश के हर स्कूल तक पहुंचे—चाहे वो शहर में हो या किसी सुदूर गांव में। उनका मानना है कि 'हर बच्चा डिजिटल शिक्षा का हकदार है, चाहे वो कहीं भी क्यों न हो।'

जाजर चिंगरी गांव की ये कहानी सिर्फ तकनीक की नहीं, बल्कि एक शिक्षक के संकल्प की है। चंद्रशेखर जोशी ने दिखा दिया कि बदलाव के लिए संसाधनों की नहीं, इच्छाशक्ति और सोच की जरूरत होती है।

AI रोबोट ECO अब सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि उन बच्चों की आशा बन चुका है, जो अब तक पहाड़ियों में इंटरनेट और टीचर्स की कमी के बीच पढ़ाई करने को मजबूर थे। ECO ने यह साबित कर दिया है कि असली क्रांति वहां से शुरू होती है, जहां इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है।

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