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उत्तराखंड विधानसभा का विशेष सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित, 20 घंटे 23 मिनट चली ऐतिहासिक कार्यवाही

उत्तराखंड विधानसभा का विशेष सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित, 20 घंटे 23 मिनट चली ऐतिहासिक कार्यवाही

उत्तराखंड विधानसभा का तीन दिवसीय विशेष सत्र राज्य स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। यह सत्र कुल 20 घंटे 23 मिनट की कार्यवाही के बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।

देहरादून: उत्तराखंड राज्य स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय विशेष सत्र गुरुवार को 20 घंटे 23 मिनट की ऐतिहासिक कार्यवाही के बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। इस सत्र में राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़े अहम मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई। सत्र के दौरान राज्य की राजधानी गैरसैंण का मुद्दा, पलायन, कमीशनखोरी, मूल निवास की अवधि निर्धारण, और राज्य के विकास का रोडमैप जैसे विषयों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने खुलकर अपने विचार रखे।

सदन में दिखा अभूतपूर्व उत्साह, अवधि एक दिन बढ़ी

संसदीय कार्य मंत्री सुबोध उनियाल ने जानकारी दी कि विशेष सत्र में सभी विधायकों ने सक्रिय भागीदारी की और चर्चा का स्तर बेहद उत्साहजनक रहा। उन्होंने बताया कि सदन में अभूतपूर्व उत्साह और जनहित से जुड़े मुद्दों पर गहन विमर्श को देखते हुए सत्र की अवधि पहली बार एक दिन बढ़ाई गई। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 वर्षों में केंद्र सरकार से उत्तराखंड को लगभग ₹2 लाख करोड़ की सहायता मिली है, जिससे राज्य में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवाओं और औद्योगिक विकास को नई दिशा मिली है।

सुबोध उनियाल ने इस सत्र को “ऐतिहासिक और भविष्य के लिए मार्गदर्शक” बताते हुए कहा कि यह चर्चा राज्य की विकास यात्रा को नई गति देने में मदद करेगी।

विपक्ष ने सरकार पर साधा निशाना

हालांकि, सत्र के दौरान विपक्ष ने सरकार पर जमकर निशाना साधा। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने सरकार पर आरोप लगाया कि विशेष सत्र में जो उपलब्धियों का ब्यौरा पेश किया गया, वह “झूठ का पुलिंदा” है। उन्होंने कहा कि 25 वर्षों की उपलब्धियों के मूल्यांकन में निष्पक्षता नहीं बरती गई और राज्य के असली मुद्दों बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा और पलायन पर कोई ठोस चर्चा नहीं हुई।

आर्य ने कहा, अगर उत्तराखंड के 25 साल के सफर का सच्चा मूल्यांकन करना है तो कांग्रेस के 10 साल और भाजपा के 13 साल की नीतियों की निष्पक्ष तुलना करनी होगी। केवल आत्मप्रशंसा से राज्य का भविष्य सुरक्षित नहीं होगा।

राज्य स्थापना के 25 वर्ष: आत्ममंथन और आकांक्षाओं का संगम

यह विशेष सत्र सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि राज्य की उपलब्धियों और चुनौतियों का आत्ममंथन भी था। 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर बने उत्तराखंड ने 25 वर्षों में अनेक क्षेत्रों में प्रगति की है — शिक्षा, पर्यटन, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। लेकिन साथ ही पलायन, रोजगार संकट और पर्यावरणीय असंतुलन जैसे मुद्दे अब भी राज्य के सामने बड़ी चुनौतियां बने हुए हैं। इन विषयों पर सत्र में विभिन्न विधायकों ने विस्तृत सुझाव दिए और आने वाले 25 वर्षों के लिए ठोस नीति ढांचे की मांग की।

सत्र के दौरान गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने का मुद्दा एक बार फिर गरमाया। कई विधायकों ने कहा कि पहाड़ी राज्य की आत्मा पर्वतीय क्षेत्र में बसती है और गैरसैंण को राजधानी घोषित करना राज्य की भावनाओं का सम्मान होगा। हालांकि, सरकार की ओर से इस पर कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई, लेकिन चर्चा ने राजनीतिक तापमान जरूर बढ़ा दिया।

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